जब होटल की घंटी नहीं रुकती: रिसेप्शनिस्ट की एक दिन की कहानी
कभी-कभी जिंदगी में ऐसे पल आते हैं जब लगता है जैसे सबकुछ एक साथ हो रहा हो—और आप अकेले ही सब संभाल रहे हों। होटल के रिसेप्शन पर काम करने वाले हर शख्स ने महसूस किया होगा कि फोन की घंटी मानो आज रुकने का नाम ही नहीं ले रही! सोचिए, आप दो दिन की छुट्टी के बाद एकदम तरोताजा होकर लौटते हैं, और फिर सामने है—बोर्डिंग पर लोगों की लाइन और फोन की लगातार घंटियाँ।
होटल रिसेप्शन: जरा सोचिए, यहां थकना मना है!
जैसे ही मैं पहली शिफ्ट पर लौटा, एहसास हुआ कि असली थकान तो अब शुरू होगी। दो दिन में 90% वक्त नींद में बिताया था, लेकिन होटल का रिसेप्शन जगह ही ऐसी है, जहां चैन से बैठना किस्मत वालों को ही मिलता है। आज मेरी दूसरी ही शिफ्ट थी जब मुझे Hold 1 और Hold 2 दोनों का सहारा लेना पड़ा। सोचिए, तीन महीने में पहली बार ये हुआ, तो कुछ तो खास था!
पहला कॉल था किसी थर्ड पार्टी एजेंट का—वो बेचारा एक गेस्ट की मोबाइल चेक-इन की जिद लेकर बैठा था, पर खुद ही कन्फ्यूज़ था। दूसरा कॉल था हमारे होटल के वीआईपी मेहमान का, जिनकी शिकायत थी—“मोबाइल चेक-इन तो करना है, मगर ऐप से नहीं!” अब इन्हें कौन समझाए कि ऐप से नहीं करेंगे तो सिस्टम में कैसे होगा भाई?
"इंसीडेंटल्स" मतलब क्या? – होटल की हिंदी क्लास
Hold 1 उठाया, तो थर्ड पार्टी एजेंट बोल पड़ा—“गेस्ट प्री-अराइवल चेक-इन करना चाहता है, कर नहीं पा रहा। आखिर करना क्या है?” अब मैं सोच रहा था, भैया, तुम खुद एजेंट हो, इतनी बेसिक बात नहीं पता? खैर, मैंने समझाया कि गेस्ट ने थर्ड पार्टी से बुकिंग की है, और वो मेंबर भी नहीं है। फिर भी, अगर होता भी, तो भी रिसेप्शन आकर कार्ड स्वाइप करना ज़रूरी है, ताकि इंसीडेंटल्स के लिए सिक्योरिटी डिपॉजिट ले सकें।
एजेंट फिर पूछ बैठा, “ये इंसीडेंटल्स क्या है, कोई फीस है क्या?”
अब मुझे याद आया, कितनी बार हमारे देश में लोग होटल में एडवांस डिपॉजिट या सिक्योरिटी के नाम पर चौंक जाते हैं। मैंने बड़े धैर्य से समझाया, “ये तो बस सुरक्षा के लिए है, हर रात 20 डॉलर का डिपॉजिट।” मन तो किया बोलूं, “अरे भाई, अमेरिका के हर होटल में ऐसा ही है!” मगर खुद को रोक लिया।
वीआईपी मेहमान और ‘पॉइंट्स रिज़र्वेशन’ की गुत्थी
अब Hold 2 लिया तो सामने थे हमारे हाई टियर मेंबर। ये वो लोग होते हैं, जो अक्सर होटल स्टाफ को ‘हम खास हैं’ का एहसास दिलाते रहते हैं। रिज़र्वेशन पत्नी के नाम थी, और पति साहब पूछ रहे थे, “हम एक घंटे में आ रहे हैं, चेक-इन कर दो।”
मैंने बताया, “अगर मोबाइल चेक-इन करते तो चाबी बना देता, मगर पॉइंट्स रिज़र्वेशन है, आपको रिसेप्शन आना पड़ेगा, कार्ड स्वाइप ज़रूरी है।”
पति साहब बोले, “हमारे कार्ड की डिटेल तो तुम्हारे पास है, बस चेक-इन कर दो! हम तो ‘ब्रांड नेम’ के खास मेंबर हैं!”
मैंने शांति से कहा, “सर, हमारे सिस्टम में कार्ड ऑन फाइल से डिपॉजिट नहीं लिया जा सकता, ब्रांड की पॉलिसी है।”
इसके बाद पति साहब का तर्क-वितर्क शुरू हो गया, “ये तो सरासर बेवकूफी है! हम कोई सड़क चलते लोग नहीं हैं, जो होटल के नियम ना जानते हों!”
मन ही मन सोचा—‘इतने बड़े मेंबर होकर भी पॉइंट्स रिज़र्वेशन की बेसिक बात नहीं समझते…’ मगर बाहर से बस मुस्कुराकर पॉलिसी दोहरा दी।
फिर फरमाइश आई, “कम से कम हमारी पसंद का कमरा तो रिज़र्व कर दो!”
मैंने बताया, “सर, आपके पसंद का कमरा पहले ही ब्लॉक कर दिया है।”
“अच्छा, ये तो ठीक है। बाकी आकर देखेंगे…” कहकर फोन रख लिया। अब मैं सोच रहा था—ये तो बस शुरुआत है, असली मेला तो अभी बाकी है!
कमेंट्स की दुनिया: दुख, हंसी और धीरज
रेडिट पर लोगों ने भी खूब मजेदार प्रतिक्रियाएँ दीं। एक पाठक ने लिखा, “दो घंटे हो गए, क्या दूसरा कॉल अब भी जारी है या ओपी अभी भी उसी में उलझा है?”
ओपी ने खुद जवाब दिया—“अरे, मेहमान आए और आते ही अपग्रेड माँग लिया। मैंने बेमन से दे दिया। फिर पत्नीजी ने एक्स्ट्रा पिलो माँगी, मगर खुद ही बाद में लेने का वादा किया। अच्छा हुआ, अभी तक दोबारा नहीं पूछी!”
फिर एक भावुक अपडेट भी आया—असल में पति का व्यवहार थोड़ा चिढ़चिढ़ा इसलिए था क्योंकि उनका बेटा सड़क हादसे में गुजर गया था, और वे यहाँ अंतिम संस्कार के लिए आए थे। लौटते वक्त पति ने मुस्कुराकर धन्यवाद भी कहा।
यहाँ एक पाठक ने बड़ा गहरा कमेंट किया—“कभी-कभी लोग ऊपर से जितने कठोर दिखते हैं, भीतर से उतने ही टूटे हुए होते हैं। आपके धैर्य की सराहना करनी चाहिए।”
होटल की घंटी, धैर्य और हिंदुस्तानी तड़का
होटल रिसेप्शन की दुनिया भी किसी छोटे शहर के बस स्टैंड जैसी है—हर कोई अपनी-अपनी उलझनों के साथ आता है, और रिसेप्शनिस्ट वो कंडक्टर है, जो सबको उनकी मंज़िल तक पहुँचाने की कोशिश करता है।
जैसे हिंदुस्तान में बारात में बैंड हमेशा बजता रहता है, वैसे ही होटल में फोन की घंटी बजती रहती है। लेकिन असली बात तो ये है कि हर कॉल, हर मेहमान, कहीं न कहीं हमें धैर्य, सहानुभूति और कभी-कभी मुस्कान भी सिखा ही देता है।
अंत में—आपकी क्या राय है?
क्या आपके साथ कभी ऐसा अनुभव हुआ है, जब आपको किसी को उनका ही काम समझाना पड़ा हो? क्या होटल के रिसेप्शन की ये अफरा-तफरी आपको अपने ऑफिस या परिवार की याद दिलाती है?
कमेंट में जरूर बताइए, और अगर कहानी पसंद आई तो शेयर करना मत भूलिए! होटल की घंटी तो बजती ही रहेगी, पर आपकी राय हमारे लिए सबसे खास है।
मूल रेडिट पोस्ट: The Phone Won't Stop Ringing