जब होटल की कर्मचारी ने पुलिस को दो बार बुलाया: टीम वालों की मस्ती का अंत
होटल में काम करने वाले लोगों की ज़िंदगी बाहर से जितनी आसान लगती है, असल में उतनी ही रंगीन और चुनौतीपूर्ण होती है। खासकर जब होटल में कोई बड़ा खेल टूर्नामेंट या शादी पार्टी ठहरती है, तो हालात किसी मसालेदार हिंदी फिल्म से कम नहीं होते। आज की कहानी एक ऐसी ही होटल कर्मचारी की है, जिसने नियमों की धज्जियाँ उड़ाने वालों से निपटने के लिए वो किया, जो शायद ही कोई सोच सके – पुलिस को दो बार बुलाया!
होटल के पुराने ज़माने का 'राजा ग्राहक' और नया नियम
पहले होटल मैनेजर के लिए ग्राहक भगवान से कम नहीं थे – चाहे अंदर हंगामा हो, फर्नीचर टूटे, या पूरा होटल मैदान-ए-जंग बन जाए, जब तक तीन से ज़्यादा मेहमान शिकायत न करें, तब तक स्टाफ को चुप रहना पड़ता था। सोचिए, एक तरफ कमाई का लालच, दूसरी तरफ कर्मचारियों की हालत पतली!
लेकिन जब नए मालिक ने होटल खरीदा, तो सीन बदल गया। अब नियम साफ था: "जब तक मेहमान ठीक हैं, रहने दो। लेकिन अगर परेशानी बढ़े, तो politely बाहर का रास्ता दिखाओ।" कर्मचारी ने सोचा, अब तो मजा आएगा – लेकिन असलियत में जिम्मेदारी और बढ़ गई।
शुक्रवार की शांति और शनिवार का तूफ़ान
शुक्रवार की रात को होटल का माहौल थोड़ा मेला सा था, पर सब संभल गया। लेकिन शनिवार आते-आते होटल में मानो कोई बवंडर आ गया हो। दो किशोरी लड़कियाँ बार-बार रिसेप्शन पर आकर चाबी और कैंची मांगती रहीं। नियम था कि 16 साल से कम बच्चों को माता-पिता के साथ रहना चाहिए। लेकिन बच्चों की शरारत और माता-पिता की लापरवाही – दोनों का मिला-जुला असर होटल के गलियारों में साफ दिख रहा था।
जब किसी गेस्ट ने शिकायत की कि "हॉलवे में बच्चों की पार्टी चल रही है," तो कर्मचारी का सब्र जवाब दे गया। सबको वापस कमरों में भेजने की कोशिश की, तो माओं ने तगड़ा विरोध किया – "ये बच्चे हमारे नहीं!" और तो और, एक माँ ने तो उल्टा पुलिस बुलाने की धमकी दे दी – "हिम्मत है तो बुलाइए!"
पुलिस की एंट्री और माओं की हार
यह सुनकर कर्मचारी ने पूरा हिंदी सीरियल वाला स्वैग दिखाया – "ठीक है, बुलाते हैं!" पुलिस आई, माओं ने अपने-अपने तर्क दिए, लेकिन पुलिस ने साफ कहा – "ये प्राइवेट प्रॉपर्टी है, होटल चाहे तो आपको बाहर कर सकता है।" माओं ने तो रिफंड की भी मांग कर डाली! कर्मचारी ने मुस्कराकर, बिना कोई भाव दिए, "ना" बोल दिया। अंदर ही अंदर, उनकी जीत की खुशी लड्डू की तरह फूटी जा रही थी।
यहाँ एक कमेंट बहुत मजेदार था – "कभी-कभी सिर्फ धमकी देना काफी नहीं होता, टीम को सीधा बोल दो – अभी अपने कमरों में जाओ, नहीं तो पूरी टीम को बाहर निकाल देंगे, बिना रिफंड के!" एक और पाठक ने लिखा, "खेल संघ को बता दो, ताकि भविष्य में ऐसे मेहमानों पर बैन लगे।"
फिर मच गया हंगामा, और पुलिस दोबारा बुलानी पड़ी
पुलिस के जाने के दस मिनट बाद ही, वही माएँ और कुछ लड़कियाँ फिर से रिसेप्शन पर आकर चिल्लाने लगीं। इस बार मामला इतना बिगड़ गया कि कर्मचारी आपा खो बैठी और सामने से 'फ्लिप' कर दिया (अश्लील इशारा)। हालांकि कुछ पाठकों ने इस पर नाराजगी जताई – "ऐसा करना प्रोफेशनलिज्म के खिलाफ है, भले ही दिल को सुकून मिले।" तो वहीं कुछ ने हौसला बढ़ाया – "कभी-कभी इंसान भी थक जाता है, हर बार धैर्य रखना आसान नहीं।"
फिर दोबारा पुलिस आई, इस बार दो माओं और उनके परिवारों को होटल से बाहर कर दिया गया। पता चला, एक माँ तो सामने वाले होटल में ठहरी थी! कर्मचारी का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था – शायद नौकरी चली जाए, मगर दिल में संतोष था कि इस बार न्याय हुआ।
होटल इंडस्ट्री के लिए सबक: इज्जत और नियम दोनों ज़रूरी
कई अनुभवी होटल कर्मचारियों ने कमेंट में लिखा – "टीम वाले गेस्ट सबसे ज़्यादा सिरदर्द देते हैं, और उनके माता-पिता जिम्मेदारी लेने को राज़ी ही नहीं होते। अब हमने भी टीम बुकिंग से तौबा कर ली है, क्योंकि कुछ पैसों के लिए बाकी मेहमानों और स्टाफ के अनुभव खराब नहीं कर सकते।"
कुछ ने यह भी जोड़ा – "हमारे यहाँ तो पुलिस वाले खुद स्टाफ के रिश्तेदार हैं, इसलिए किसका पक्ष लेंगे, समझा जा सकता है!"
पाठकों के लिए सवाल
सोचिए, अगर आपकी जगह होती – क्या आप भी ऐसे मेहमानों से सख्ती से निपटते? या फिर 'अतिथि देवो भव:' के नाम पर सब सह लेते? क्या होटल वालों को कमाई के चक्कर में नियम ताक पर रखना चाहिए? या सबकी भलाई के लिए कभी-कभी डंडा चलाना ज़रूरी है?
नीचे कमेंट में अपने विचार ज़रूर लिखें – क्या आप भी ऐसे किसी किस्से का हिस्सा रहे हैं, तो वो भी साझा करें!
मूल रेडिट पोस्ट: They begged me to call the cops, so I did. Twice.