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जब होटल का कंप्यूटर सिस्टम बैठ गया: कागज-कलम का ज़माना लौट आया

होटल के फ्रंट डेस्क पर पेन और कागज के साथ अराजकता, पीएमएस की विफलता के दौरान मेहमानों का प्रबंधन करना।
इस सिनेमाई दृश्य में, देखिए एक रात के ऑडिटर की व्याकुलता जब वे केवल पेन और कागज के सहारे 35 मेहमानों को समायोजित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अप्रत्याशित चुनौतियों की एक रात, सहनशीलता और संसाधनशीलता की परीक्षा बन जाती है!

सोचिए, आप रात के दो बजे होटल के रिसेप्शन पर अकेले खड़े हैं। सब कुछ रोज़ जैसा शांत है, मेहमान आने वाले हैं, और तभी – धड़ाम! – होटल का सारा कंप्यूटर सिस्टम बंद हो जाता है। न बुकिंग दिख रही, न कमरा पता, न पैसे लेने का कोई साधन। और ऊपर से अगले छह घंटे में 35 मेहमान आने वाले हैं! ये कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि एक होटल की रात की हकीकत है।

पुराने ज़माने की याद: जब सब कुछ कागज-कलम से चलता था

उस रात होटल के फ्रंट डेस्क की ज़िम्मेदारी एक अकेले नाइट ऑडिटर के कंधे पर थी। आमतौर पर, कंप्यूटर सब संभाल लेता है – कौन सा कमरा खाली है, किसकी बुकिंग कब है, कितने पैसे लेने हैं। लेकिन सिस्टम ने अचानक छुट्टी ले ली! न कोई रजिस्टर, न कोई फाइल, सबकुछ बस याददाश्त पर।

अब सोचिए, भारत के किसी छोटे शहर की बात हो, जहां बिजली चली जाए तो दुकानदार पुराने रजिस्टर निकालकर हिसाब जोड़ने लगते हैं। वैसा ही मंजर होटल में था। हर कमरे के बाहर जाकर देखना पड़ा कि "डू नॉट डिस्टर्ब" का साइन है या नहीं। कमरे याद रखकर बांटने पड़े – कहीं कोई गड़बड़ न हो जाए!

क्रेडिट कार्ड मशीनें भी बंद हो गईं, तो 90 के दशक वाला तरीका अपनाना पड़ा – कार्ड की कागज़ पर इम्प्रिंट लेना। यहाँ तक कि टैक्स भी खुद कैलकुलेट करना पड़ा, वो भी रात के तीन बजे! कल्पना करिए, हमारे होटल वाले अंकल-जी शायद बोले होते – "बेटा, कंप्यूटर तो गया, अब पुराने तरीके से सब लिख ले!"

जुगाड़ और सीख: जब मजबूरी में दिमाग चलता है तेज़

ऐसी मुश्किल घड़ी में "जुगाड़" ही काम आता है, चाहे भारत हो या अमेरिका। हमारे किस्से के हीरो ने स्टोर रूम से सारे नोटपैड निकाल लिए और मैन्युअल लॉग तैयार कर दिया। एक-एक मेहमान का नाम, कमरा, फोन नंबर – सब कागज पर। याददाश्त और हाउसकीपिंग की रिपोर्ट के भरोसे कमरे बाँटे गए। किसी ने सही कहा है, "मुसीबत में जो रास्ता सूझे, वही सही!"

इसी कहानी के कमेंट्स में एक सज्जन ने लिखा, "हम तो हर शिफ्ट में सारी बुकिंग्स और कमरों की डिटेल प्रिंट कर लेते हैं, ताकि सिस्टम बैठ भी जाए तो हाथ में सब कुछ रहे। भला देर रात लोगों के दरवाज़े खटखटाने का रिस्क कौन ले!"

सच कहें तो, हमारे यहां भी पुराने होटल या लॉज में आज भी कई जगह ये रजिस्टर वाला सिस्टम चलता है – कंप्यूटर तो कई बार धोखा दे जाता है, पर कागज-कलम का क्या भरोसा!

सुबह की सच्चाई: जब बैकअप भी निकला बेकार

सुबह IT टीम आई, तो पता चला कि जिस बैकअप सिस्टम पर सबको भरोसा था, वो तो 18 महीने से अपडेट ही नहीं हुआ! ऊपर से सपोर्ट टीम विदेशी थी, हमारी ज़रूरतें समझ ही नहीं पाई। पूरे 14 घंटे लगे सिस्टम को फिर से चालू करने में। सोचिए, अगर किसी शादी या त्यौहार के सीज़न में ऐसा हो जाए, तो क्या हाल हो!

एक पाठक ने बड़ा मज़ेदार कमेंट किया – "IT का गोल्डन रूल: बैकअप टेस्ट कब करते हैं? जब पिछला IT वाला नौकरी छोड़ चुका हो!" यानी, जो ज़िम्मेदारी छोड़ दे, उसके बाद ही असली हाल पता चलता है।

कई लोगों ने बताया कि वे हर कुछ घंटे में "कंटिंजेंसी रिपोर्ट" प्रिंट करते हैं – किसका कमरा खाली, किसकी बुकिंग, कौन चेकइन-चेकआउट कर रहा है। एक ने तो यहाँ तक लिखा, "हमारा डाउनटाइम रिपोर्ट 60 पेज का होता है, हर दो घंटे में छापते हैं।"

सीख और आगे की राह: टेक्नोलॉजी पर भरोसा, मगर तैयारी पूरी

इस हादसे के बाद होटल वालों ने तय किया कि सिर्फ महंगे सिस्टम या चमक-धमक वाली सर्विस देखकर सौदा नहीं करेंगे। असली बात है – सिस्टम का भरोसेमंद होना, सपोर्ट टीम का फुर्तीला होना, और सबसे ज़रूरी – रेगुलर बैकअप और एमरजेंसी प्लानिंग।

हमारे यहां भी अक्सर बड़े-बड़े बैंक, रेलवे या सरकारी दफ्तरों में कंप्यूटर बैठ जाए तो अफरा-तफरी मच जाती है। ऐसे में पुराने स्टाफ की याददाश्त और रजिस्टर ही काम आते हैं। इस कहानी से यही सीख मिलती है – टेक्नोलॉजी ज़रूरी है, पर "बैकअप" और "जुगाड़" भारतीय दिमाग की असली ताकत है। कभी भी, कहीं भी, कोई भी सिस्टम फेल हो सकता है – असली हीरो वही है जो संकट में भी हिम्मत न हारे!

आपकी राय: क्या आपके साथ भी ऐसा कुछ हुआ है?

तो दोस्तो, क्या आपने कभी ऑफिस, होटल, या किसी और जगह ऐसा तकनीकी फेलियर झेला है? आपके पास क्या जुगाड़ था? कमेंट में ज़रूर बताइए! और हाँ, अगली बार होटल बुक करें तो रिसेप्शन वाले से पूछ लीजिए – "भाईसाहब, बैकअप है ना?"

इस किस्से ने एक बात तो पक्की कर दी – कागज-कलम का जमाना कभी पुराना नहीं होता!


मूल रेडिट पोस्ट: the night our pms crashed and we had to run a 60-room hotel with pen and paper