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जब सहकर्मी ने बैंक जाने की ज़िम्मेदारी थोप दी: ऑफिस राजनीति की एक चटपटी कहानी

सहकर्मी बैंक के काम के लिए मांग करता है, कार्यस्थल संघर्ष और कर्मचारी निराशा को दर्शाते हुए।
इस सिनेमाई चित्रण में, हम कार्यालय की गतिशीलता के तनाव को देखते हैं जब एक सहकर्मी दूसरे से बैंक का काम करने के लिए कहता है। यह परिदृश्य कार्यस्थल में उत्पन्न होने वाली निराशा और संघर्ष को दर्शाता है, खासकर जब मुश्किल सहकर्मियों का सामना करना हो।

कभी-कभी ऑफिस में ऐसा लगता है जैसे कोई टीवी सीरियल चल रहा हो—हर दिन नया ट्विस्ट, नए किरदार, और कभी-कभी तो ऐसी राजनीति कि आप सोचें कि 'कौन बनेगा बॉस' का रियल वर्जन यही है! आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिसमें एक सहकर्मी ने अपने 'बॉसगिरी' के चक्कर में एक नए ड्राइवर को बैंक जाने की जिम्मेदारी थमा दी। लेकिन आगे जो हुआ, वो पढ़कर आप हँसते-हँसते लोटपोट हो जाएंगे।

ऑफिस का असली ड्रामा: 'ए' दीदी की अनोखी फरमाइश

हमारे नायक/नायिका की कहानी एक शराब की दुकान से शुरू होती है, जहाँ एक सहकर्मी 'ए' हैं, जिनकी छवि ऑफिस में 'रौबदार लेकिन आलसी' के नाम से प्रसिद्ध है। 'ए' दीदी इतनी 'लाडली' हैं कि उनके व्यवहार की वजह से ना केवल कर्मचारी, बल्कि ग्राहक भी दुकान आना छोड़ चुके हैं। ऊपर से, मैनेजर बनने का इतना शौक कि बिना पद के ही हुक्म चलाती रहती हैं।

अब हुआ यूँ कि दुकान के मालिक जब भी उपलब्ध नहीं होते, तो रोज़ाना बैंक में जमा करने वाली रकम ले जाना 'ए' दीदी की ड्यूटी थी। लेकिन जैसे ही हमारी कहानी की नायिका/नायक (जिन्होंने अभी-अभी ड्राइविंग लाइसेंस लिया था) दुकान पर आए, 'ए' दीदी ने अपना काम उनकी झोली में डाल दिया—बिल्कुल वैसे जैसे घर में कोई बर्तन धोने से बचने के लिए छोटा भाई बहन को मना ले!

नायक/नायिका ने पहले तो मना किया क्योंकि नए-नए लाइसेंस के साथ, वो भी भारी ट्रैफिक और कंस्ट्रक्शन वाले रास्ते से, डरना लाजिमी था। लेकिन 'ए' दीदी ने तो जैसे ठान ही लिया था—'जा बेटा, बैंक जा!'

चुपचाप बदला: जब 'मालिकाना आदेश' उल्टा पड़ गया

अब कहानी ने मोड़ लिया। 'ए' दीदी को लगा था कि बैंक जाना सबसे 'बोरिंग' काम है, इसलिए उन्होंने ये जिम्मेदारी दूसरों पर डाल दी। लेकिन हमारे नायक/नायिका ने इस मौके का पूरा फायदा उठाया—आधे घंटे ऑफिस के काम से छुट्टी, थोड़ा ड्राइविंग का एडवेंचर, और सबसे बड़ी बात—'ए' दीदी की नज़र से दूर रहना!

धीरे-धीरे 'ए' दीदी को एहसास हुआ कि बैंक जाने की जिम्मेदारी छोड़ना उनके लिए घाटे का सौदा है। अब वो खुद कहने लगीं—'आज मैं चली जाऊँगी, तुम मत जाओ।' लेकिन नायक/नायिका ने भी बड़े मासूमियत से जवाब दिया, "अरे, इसमें कौन-सी बड़ी बात है!"—कुछ-कुछ वैसे जैसे घर में सब्जी काटने की बारी बार-बार खुद ही ले लें ताकि झाड़ू-पोछा ना करना पड़े।

आखिरकार 'ए' दीदी ने शिकायत मैनेजर से कर डाली, लेकिन मैनेजर भी समझदार निकले—"जब तुमने कहा था, तब तो ठीक था, अब दिक्कत क्या है?" बस, ऑफिस की राजनीति में यह पल 'प्यादे का वजीर बनना' था!

पाठक बोले: छोटे-छोटे बदले, बड़ी संतुष्टि

Reddit की इस कहानी पर लोगों ने खूब मजेदार और काम की बातें भी शेयर कीं। एक यूज़र ने सलाह दी, "अगर आप अपनी गाड़ी ऑफिस के काम में इस्तेमाल करते हैं तो पेट्रोल का पैसा और गाड़ी के खर्च की भरपाई ज़रूर कराओ!"—कुछ-कुछ वैसे जैसे भारत में लोग ऑफिस के लिए बाहर जाते समय 'TA/DA' की मांग करते हैं।

दूसरे ने चेतावनी दी—"भई, काम के लिए गाड़ी चलाते समय बीमा का ध्यान रखना। कहीं एक्सीडेंट हो गया तो बीमा कंपनी बहाना बना सकती है!" इस पर और भी लोगों ने मज़ेदार तर्क दिए—"अगर ऑफिस के काम से जा रहे हो तो कम से कम पेट्रोल और मेंटेनेंस तो बनता है!"

एक और यूज़र ने अपनी चिंता जताई—"अगर कभी जमा की गई राशि कम निकली तो सारा शक उसी पर आएगा जो बैंक गया था।" ये तो वैसे ही है जैसे 'सब्जी में नमक कम है' तो सीधा किचन में खड़े इंसान पर इल्ज़ाम!

'ए' दीदी क्यों नहीं जातीं? मालिक का जवाब भी कमाल का!

कई पाठकों ने सवाल उठाया कि ऐसी सहकर्मी को नौकरी से निकाल क्यों नहीं देते? दुकान के मालिक का जवाब कुछ-कुछ बॉलीवुड फिल्म के डायलॉग जैसा था—"कम से कम आती तो है, एक शरीर तो है दुकान में!" बाद में ये भी पता चला कि 'ए' दीदी ने मालिक से कर्ज लिया हुआ है, इसलिए मालिक भी मजबूरी में उन्हें रखे हुए हैं। कुछ पाठकों ने सलाह दी, "भैय्या, जितना नुकसान वो ग्राहक भगाकर करा रही हैं, उतना कर्ज भी क्या वसूल होगा?"

छोटी-छोटी जीतें, बड़ी राहत

इस पूरी कहानी का असली मज़ा तो 'छोटी-छोटी जीतों' में है। ऑफिस में जब माहौल टेढ़ा हो, तो ऐसे छोटे बदले (जैसे नायक/नायिका ने लिया) दिल को बड़ी राहत देते हैं। एक पाठक ने लिखा, "ऐसे लोग तो आसपास होने से ही चिढ़ जाते हैं, बस मुस्कुराकर अपना काम करते रहो।"

निष्कर्ष: क्या आपके ऑफिस में भी 'ए' दीदी हैं?

जैसी रंगीन और हँसी-ठिठोली से भरी ये कहानी है, वैसे ही ऑफिस की जिंदगी भी छोटी-छोटी चालाकियों और बदले से रंगीन हो सकती है। अगर आपके ऑफिस में भी कोई 'ए' दीदी या 'मिस्टर बॉसगिरी' हैं, तो उनकी हरकतों को दिल पर मत लीजिए—थोड़ी चतुराई, थोड़ी हँसी, और थोड़ा 'मालिकाना आदेश' आपके दिन को आसान बना सकता है।

आपके ऑफिस में भी ऐसी कोई कहानी है? कमेंट में ज़रूर बताएं! और हाँ, अगली बार बैंक जाएं तो पेट्रोल का पैसा लेना न भूलें!


मूल रेडिट पोस्ट: Coworker demands I go to the bank in her place