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जब ससुराल के पियक्कड़ को 'फ्री लिफ्ट' पड़ी महंगी – एक चुटीली कहानी

मोबाइल घर में परिवार की कार्टून-शैली 3D चित्रण, पुरानी यादों और हास्य का अनुभव कराता है।
यह मजेदार कार्टून-3D चित्रण 24 साल पहले के एक यादगार पल को दर्शाता है, जिसमें एक परिवार अपने मोबाइल घर में है। छोटे शहर की जिंदगी के अप्रत्याशित खर्चों और यादगार सैर की हास्य कहानी में डूबें!

छोटे शहरों की जिंदगी में बड़ी कहानियाँ छुपी होती हैं, और जब बात ससुराल या रिश्तेदारों की हो, तो मसाला खुद-ब-खुद बढ़ जाता है। आज की कहानी बिल्कुल ऐसी ही है – जिसमें एक पियक्कड़ जीजा ने रात में ससुराल वालों की नाक में दम कर दिया, लेकिन आखिर में उसे "फ्री की सवारी" भी जेब पर भारी पड़ गई।

सोचिए – एक ओर मासूम बच्ची गहरी नींद में सो रही है, दूसरी ओर टीवी पर पति-पत्नी चैन से बैठे हैं, तभी दरवाजे पर खटखटाहट होती है। रात के सन्नाटे में ऐसी हलचल किसे पसंद आएगी? लेकिन असली फिल्म तो इसके बाद शुरु होती है!

छोटे शहर, बड़े किस्से और वो कुख्यात जीजा

यह किस्सा 24 साल पुराना है। एक छोटा सा कस्बा – जहाँ एक भी ट्रैफिक सिग्नल नहीं, और जहाँ सब एक-दूसरे को नाम से जानते हैं। हमारे नायक (कहानी के लेखक) अपनी पत्नी और नवजात बेटी के साथ ससुराल के डबल-वाइड मोबाइल घर में रह रहे थे। सासू माँ का बॉयफ्रेंड – यानी जीजा – पूरे शहर में "शराबी जी" के नाम से मशहूर था। उनका रोज़ का रूटीन था – एक बार से निकाले जाते, दूसरे में पहुँचते, और वहाँ से भी निकाले जाने के बाद घर लौटते और धड़ाम से सो जाते।

रात की शांति में बवाल – दरवाजे से खिड़की तक

उस रात, जब सब कुछ शांत था, अचानक दरवाजे पर ज़ोरदार दस्तक हुई। पति-पत्नी दोनों समझ गए – जरूर वही पियक्कड़ जीजा होगा, इसलिए अनसुना कर दिया। लेकिन शराबी जी ने हार कहाँ मानी! एक दरवाजा, फिर दूसरा; फिर खिड़कियों पर भी दस्तक। हद्द तो तब हो गई जब वो बिना पूछे दरवाजा खोलकर अंदर आने लगे – क्योंकि गलती से उस रात दरवाजा लॉक करना भूल गए थे।

अब तो सब्र का बांध टूट गया। पत्नी ने कहा – "पुलिस को फोन करो, ये हद कर रहे हैं।" 911 पर कॉल की, और जैसे ही नाम बताया, डिस्पैचर बोली – "अरे, इनका नाम तो सुना हुआ है!" छोटे शहर की पुलिस और शराबी जी – दोनों एक-दूसरे के लिए नए नहीं थे।

पुलिस का जलवा, और "लिफ्ट" की कीमत

पुलिस चौकी घर से बस एक मील दूर थी, तो पूरी नाइट शिफ्ट और काउंटी शेरिफ की टीम फौरन पहुँच गई। शराबी जी दरवाजा खोल ही रहे थे कि पुलिस वालों ने घेर लिया। सबकी आँखों में एक ही सवाल – "अब क्या करें?"

शराबी जी बार-बार यही बोल रहे थे – "मुझे तो बस घर जाना है, कोई मुझे छोड़ दो।" कहानी के लेखक मुस्कुरा कर बोले – "हाँ, तुम्हारी सवारी आ रही है।"

पुलिस की महिला अफसर ने पत्नी से कहा – "आप चाहें तो इनके खिलाफ केस कर सकती हैं।" लेकिन पत्नी ने सिर हिलाकर कहा – "नहीं, बस इन्हें दूर रखिए।" अफसर भी बोली – "शुक्र है बच्ची नहीं जागी, वरना जेल सीधी तय थी।"

अब असली ट्विस्ट! शराबी जी ने फिर सवारी मांगी, तो पुलिस ने कहा – "हम तो नहीं छोड़ेंगे, लेकिन ये (लेखक) अगर पैसे दें तो छोड़ सकते हैं।" पत्नी झट बोली – "मुफ्त में तो बिल्कुल नहीं!" पूछताछ हुई – जेब में करीब 40-60 डॉलर निकले। पुलिस ने साफ कहा – "सारे पैसे इन्हें दो, तभी घर छोड़ेंगे, वरना जेल जाना पड़ेगा।" बेचारे जीजा – घर पहुंचने के लिए अपनी पूरी दारू की कमाई गंवा बैठे!

कम्युनिटी की मजेदार प्रतिक्रियाएँ: "शेमलेस" स्टाइल में!

रेडिट पर इस किस्से को पढ़कर कई लोगों को मशहूर टीवी शो "शेमलेस" के फ्रैंक गैलेघर की याद आ गई। एक पाठक ने लिखा – "मुझे तो सीधा फ्रैंक की याद आ गई, फर्क बस इतना है कि फ्रैंक के पास कभी पैसे नहीं होते!"

लेखक ने भी हँसते हुए जवाब दिया – "मैंने तो वो शो देखा ही नहीं, क्या देखना चाहिए?" एक और पाठक बोले – "हाँ, देखो! लेकिन बच्चों के सामने मत देखना, बहुत ज्यादा बवाल है उसमें।"

किसी ने पूछा – "क्या जीजा दोबारा भी लिफ्ट मांगने आए?" लेखक ने बड़े मजाकिया अंदाज में लिखा – "नहीं, उसके बाद कभी नजर नहीं आए। शायद समझ गए कि यहाँ मुफ्त की दारू और सवारी दोनों मुश्किल हैं!"

एक पाठक ने तो ये भी सलाह दी – "अगली बार सीधा जंगल में छोड़ आओ, तब अक्ल आ जाएगी।"

"फ्री में नहीं मिलेगा कुछ भी!" – कहानी की सीख

इस किस्से में जो सबसे मजेदार बात रही, वो थी पत्नी की चुटकी – "मुफ्त में तो बिल्कुल नहीं!" हमारे यहाँ भी अक्सर कहा जाता है – "सस्ता रोये बार-बार, महंगा रोये एक बार।" शराबी जी ने एक ही बार में सब समझ लिया!

यह किस्सा छोटे शहरों की उस हकीकत को भी दिखाता है, जहाँ हर किसी की हरकत पर सबकी नजर होती है, और पुलिस और जनता – दोनों को एक-दूसरे की खूब पहचान होती है।

कई बार रिश्तेदारी में लिहाज होता है, मगर जब हदें पार हों, तो थोड़ा सा "पेटी रिवेंज" (छोटी बदला) भी जरूरी है – ताकि अगली बार कोई ऐसी हरकत न करे।

निष्कर्ष: आपकी क्या राय है?

तो दोस्तों, अगर आपके साथ भी कभी किसी रिश्तेदार ने मुफ्त की लिफ्ट या कोई और फ्री की चीज़ लेने की कोशिश की हो, तो आपकी "पेटी रिवेंज" क्या रही? नीचे कमेंट में जरूर बताइए!

और हाँ, याद रखिए – चाहे शहर छोटा हो या बड़ा, मुफ्तखोरी हर जगह महंगी पड़ सकती है।


मूल रेडिट पोस्ट: You just want a ride? OK, but it's going to cost you