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जब सोसायटी अध्यक्ष की 'गर्मी' ने सबको पसीना-पसीना कर दिया: एक मज़ेदार कहानी

न्यूयॉर्क सिटी के एक कोंडो बिल्डिंग का सिनेमाई चित्र, जिसमें शरद ऋतु में तापमान के उतार-चढ़ाव को दर्शाया गया है।
जैसे-जैसे पत्ते बदलते हैं और तापमान में उतार-चढ़ाव होता है, इस कोंडो में गर्मी की कमी एक प्रबंधकीय चुनौती और निवासियों की सुख-सुविधा की कहानी बन जाती है।

सोचिए, आप एक अपार्टमेंट में रहते हैं जहाँ हर मौसम में मौसम का मज़ा लेना भी किसी जंग से कम नहीं। न्यूयॉर्क की सर्दी और गर्मी का हाल तो आपने सुना ही होगा, लेकिन वहाँ की सोसायटी राजनीति और तकनीकी झंझटों का स्वाद अगर देखना है, तो आज की ये कहानी आपके लिए है।

यह किस्सा है एक न्यूयॉर्क कॉन्डो (फ्लैट सोसायटी) का, जहाँ सबकुछ शांतिपूर्वक चल रहा था—जब तक कि सोसायटी अध्यक्ष जी को ठंड लग गई! अब आगे जो हुआ, वो हँसी छूटवा देगा…

गर्मी की ज़िद, सर्दी की आफत

अक्सर हमारे यहाँ मोहल्ले या सोसायटी की मीटिंग्स में किसी न किसी को कुछ न कुछ शिकायत रहती ही है—कभी पानी का प्रेशर कम, कभी लिफ्ट बंद, तो कभी सिक्योरिटी गार्ड की ड्यूटी। लेकिन इस न्यूयॉर्क की सोसायटी में मामला कुछ अलग था।

यहाँ सेंट्रल A/C सिस्टम है, जिसमें या तो गर्मी (हीटिंग) चलेगी या ठंडी (कूलिंग)। एक बार सिस्टम सर्दी के लिए बदल दिया तो फिर वसंत (स्प्रिंग) तक वापस ठंडी नहीं चल सकती। नियम के अनुसार 1 अक्टूबर से हीटिंग चालू करनी होती है, लेकिन वहां के मेंटेनर (प्रबंधक) समझदारी से काम लेते थे—असल ठंड आने तक इंतज़ार करते, ताकि सबका आराम बना रहे।

सालों से सब ठीक चल रहा था, लेकिन पिछले साल सोसायटी की अध्यक्ष महोदया का सब्र जवाब दे गया। एक हल्की सी ठंडी शाम को वो भड़क गईं और तुरंत ईमेल भेजकर आदेश दे डाला—"हीटिंग अभी चालू करो! और आगे से 1 अक्टूबर को ही चालू रहनी चाहिए, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता बाकी लोगों को गर्मी लगे या नहीं। मैं अध्यक्ष हूँ, मुझे अपने फ्लैट में आराम चाहिए!"

'ऑर्डर' का कमाल, 'गर्मी' का बवाल

अब जो आदेश जैसा, उसी पर अमल हुआ। अगले साल 1 अक्टूबर आते ही हीटिंग ऑन! बाहर मौसम का मिजाज़ बदल रहा था—कभी ठंड, कभी गर्म, लेकिन अंदर तो जैसे भट्ठी जल उठी। बाकी सोसायटी वाले परेशान—"ये सिस्टम एकदम गड़बड़ कैसे हो गया? पहले तो सब ठीक था!"

सालाना मीटिंग में लोग अपनी भड़ास निकालने लगे। अध्यक्ष जी तो प्रबंधक पर ही बरस पड़ीं—"तुम्हारी लापरवाही के कारण सब गड़बड़ हो गया!"

अब यहाँ कमाल देखिए—प्रबंधक ने बॉस से इजाज़त ली, और मीटिंग में प्रोजेक्टर पर अध्यक्ष जी की वही ईमेल दिखा दी जिसमें उन्होंने हीटिंग की ज़िद की थी। सबके सामने उन्हीं के शब्द, उन्हीं के आदेश। अध्यक्ष जी का चेहरा देखने लायक था—एकदम सफेद, सबकी नजरें उन्हीं पर! पहली बार वो एकदम चुप।

कम्युनिटी की राय: 'सबूत रखो, वरना फँसोगे!'

रेडिट के कमेंट्स में एक यूज़र ने बड़ा ही काम की बात लिखी—"व्यापार का पहला नियम है—अपने ऊपर कोई आफत न आने दो, हर बात लिखित में रखो।" (हमारे यहाँ भी तो कहते हैं, सबूत रखो, नहीं तो फँस जाओगे!)

एक और ने लिखा, "अगर किसी को बुरा इंसान बनना है, तो कम से कम लिखित में मत छोड़ो।" और एक मज़ेदार सुझाव—"हर मौखिक आदेश के बाद एक ईमेल भेज दो, जिससे बाद में कोई मुकर न सके!"

कुछ लोगों ने तकनीकी पहलू पर रोशनी डाली—पुराने सेंट्रल सिस्टम में एक साथ ही गर्मी या ठंडी चल सकती है, बार-बार बदलना मुमकिन नहीं। भारत के कई पुराने सरकारी दफ्तरों या हॉस्टलों में भी ऐसा ही हाल रहता है—या तो हीटर चलेगा या कूलर, दोनों साथ नहीं।

एक कमेंट में तो मज़ाकिया अंदाज में लिखा गया, "ऊपर वाले फ्लैट में लोग पसीने में भीग रहे हैं, नीचे वाले रजाई डाल रहे हैं—ऐसी व्यवस्था में तो 'करन' (अध्यक्ष) को स्वेटर पहन लेना चाहिए था!"

अंत भला, तो सब भला

मीटिंग के बाद अध्यक्ष जी का जादू खत्म—चुनाव में हार गईं। नये अध्यक्ष ने प्रबंधक की समझदारी की तारीफ की और उनका कॉन्ट्रैक्ट पांच साल और बढ़ा दिया।

कई लोगों ने सुझाव भी दिए—"अगर सारे सदस्य मिलकर तय कर लें कि कब हीटिंग चालू हो, तो नियम की आड़ में किसी की मनमानी नहीं चलेगी।" कुछ ने तो ये भी कहा कि ऐसे सिस्टम को अपग्रेड करना चाहिए ताकि हर फ्लैट को अपनी मर्जी से तापमान चुनने का हक मिले। मगर भाई, वो खर्चा सबको ही उठाना पड़ेगा—और भारतीय समाज में खर्चा सुनते ही मीटिंग में बहस शुरू हो जाती है!

आपकी सोसायटी में भी 'करन' है?

तो, इस कहानी से क्या सीख मिलती है? चाहे न्यूयॉर्क हो या नोएडा, सोसायटी की राजनीति और अजीब फरमाइशें हर जगह आम हैं। सबूत संभाल कर रखो, वरना किसी की ज़िद पूरी करने के चक्कर में सबको पसीना आ जाएगा!

क्या आपकी सोसायटी में भी कभी ऐसा कुछ हुआ है? या कोई 'करन' है जिसे अपनी मनमानी चलानी है? कमेंट में जरूर बताइए—आपकी कहानियाँ भी पढ़ना बड़ा मज़ा आता है!


मूल रेडिट पोस्ट: HOA President wanted heat!