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जब सेल्स डायरेक्टर ने होटल स्टाफ की नींद उड़ा दी: एक होटल रिसेप्शनिस्ट की व्यथा

क्या आपने कभी सोचा है कि होटल में काम करने वाला रिसेप्शनिस्ट कितनी अजीब-अजीब मुश्किलों से जूझता है? खासकर जब किसी ‘सेल्स डायरेक्टर’ के दिमाग में कोई नया आइडिया कौंध जाए, और पूरा स्टाफ उसकी वजह से सिर पकड़ कर बैठ जाए! आज की कहानी ऐसी ही एक ‘सुपरहिट प्रमोशन’ की है, जब होटल के रिसेप्शन पर काम करने वाले कर्मचारी को समझ ही नहीं आया कि आखिर माजरा क्या है।

पुराने ज़माने की मार्केटिंग और सेल्स डायरेक्टर का 'खास अंदाज़'

ये वो दौर था जब इंटरनेट, WhatsApp, या Online Booking जैसी चीज़ें सपनों में भी नहीं थीं। तब मार्केटिंग का मतलब था – रंगीन पर्चे छपवाओ, उनमें धमाकेदार ऑफर और स्कीम्स लिखवाओ, और फिर डाकिये या कुरियर वालों से उन्हें पूरे शहर में बंटवा दो। और बाप रे! ग्राहक भी कैसे-कैसे सवाल पूछते थे – फोन घुमाकर (वो भी गोल डायल वाला), सीधे होटल के रिसेप्शन पर कॉल करके।

अब हमारे होटल में एक सेल्स डायरेक्टर थीं – उनका काम था नए-नए ऑफर निकालना और उन्हीं के दम पर होटल के कमरे भरना। लेकिन, दिक्कत ये थी कि वो अपने ही ऑफिस वालों को इन ऑफर्स के बारे में बताना भूल जाती थीं! पर्चे छपवा दिए, बंटवा दिए, और स्टाफ को भनक तक नहीं। नतीजा? शाम की 3-11 शिफ्ट में रिसेप्शनिस्ट के पास अचानक फोन आने शुरू – “भैया, आपके होटल में जो XYZ ऑफर है, उसका क्या रेट है? उसमें क्या-क्या मिलता है?” स्टाफ बेचारा खुद उलझन में – ये ऑफर है क्या बला, कौन सा सामान, कौन सी छूट?

सवालों का महा-मंथन: 'क्या-क्या मिलता है?'

अब जरा ये देखिए, जब ऐसे-ऐसे सवालों की बौछार होती, तो स्टाफ के पास जवाब होता – “सर, ये शायद हमारे दूसरे होटल का ऑफर है... या फिर पुराना ऑफर है... आप अपना नंबर दीजिए, हम कल बताते हैं।” और अगले दिन, मैनेजर पूछे – “अरे, ये ऑफर किसने निकाला?” तो जवाब – “अरे, मैंने ही भेजे थे पर्चे। कुछ खास ऑफर थे। सामान-वामान मिलना है, टिकट्स भी हैं।”

अब जब पूछा गया – “कौन सा सामान?” – तो जवाब, “जैसा ऑफर वैसा सामान।”
“कितने ऑफर हैं?” – “दो-तीन होंगे।”
“रेट क्या है?” – “बस, इतना-इतना।”
“टैक्स शामिल है?” – “हां, सब मिलाकर।”
“अगर कमरे में तीसरा या चौथा आदमी है?” – “अलग से चार्ज कर दो।”
“एक ही आदमी है, पर दो टिकट्स मिल रहे?” – “वो दो दिन चले जाए, या किसी को दे दे।”

मतलब, न तो रेट पता, न आइटमाइजेशन, न कोई सिस्टम में डाला गया पैकेज – सब उलझन में। PMS (Property Management System) में कोई इंट्री ही नहीं। आखिरकार, रिसेप्शनिस्ट को ओवरटाइम करके, खुद ही सब हिसाब लगाना पड़ता – कौन सा ऑफर, क्या कीमत, कौन-कौन सी चीजें मिलेंगी... और तब जाकर अगले हफ्ते से रिजर्वेशन लेना शुरू होता।

पाठकों की प्रतिक्रिया और मजेदार कमेंट्स

इस कहानी को पढ़कर Reddit पर कई लोग हंसी नहीं रोक पाए। एक पाठक ने मजाकिया ढंग में पूछा – “भाई, आपके पास ‘Exploding Head’ वाली कहानी का क्या रेट है? उसमें क्या-क्या मिलेगा? एक Reddit यूज़र के लिए रेट बताइए, दो के लिए अलग है क्या?”

दूसरे ने कहा – “आपने ‘Stripping Bartenders’ का जिक्र किया और वहीं छोड़ दिया? कम से कम नाम तो बता देते, चाहे वो बोरिंग ओटमील जैसा ही क्यों न हो!”

कोई बोला – “भाई, मैं भी नाइट शिफ्ट करता था, लेकिन अस्पताल में। हमें भी ऐसे ही बिना बताए सब करना पड़ता था। सबक तो रिसेप्शनिस्ट को ही मिलता है!”

एक और ने जोड़ा – “लगता है होटल की दुनिया में कम्युनिकेशन आज भी वैसा ही है – कोई किसी को कुछ बताता ही नहीं!”

हमारे दफ्तरों में भी ऐसी कहानियाँ आम हैं...

अगर आप भी किसी ऑफिस में काम करते हैं, तो ये कहानी बहुत अपनी सी लगेगी – बॉस ने कोई नया प्रोजेक्ट शुरू कर दिया, टीम को बताया ही नहीं, क्लाइंट कॉल करने लगे, और फिर सब एक-दूसरे से पूछते रह गए – “भाई, ये फाइल किसने बनाई? रेट क्या है? सबका हिस्सा कितना है?”

हमारे देश में भी, चाहे कोई सरकारी दफ्तर हो या प्राइवेट कंपनी, सूचना का संचार (communication) अक्सर भगवान भरोसे ही चलता है। ऊपर से, जब कोई ‘खास’ प्रमोशन, पैकेज या स्कीम आती है – तो स्टाफ की हालत ऐसी ही हो जाती है, जैसे होटल के इस बेचारे रिसेप्शनिस्ट की थी।

अंत में...

तो दोस्तों, अगली बार जब आप किसी होटल में कॉल करें और रिसेप्शनिस्ट थोड़ा उलझा हुआ लगे, तो समझ जाइए – शायद उसके पास भी कोई ‘सेल्स डायरेक्टर’ है, जो बिना बताए, नए-नए ऑफर निकाल देता है!

क्या आपके साथ भी ऑफिस में कभी ऐसा हुआ है जब आपको बिना बताए कुछ नया थमा दिया गया हो? या जब कस्टमर के सवालों के जवाब खुद मैनेजमेंट को भी न पता हों? अपनी मजेदार कहानियाँ कमेंट में ज़रूर साझा कीजिए। कौन जाने, अगली पोस्ट आपकी कहानी पर ही बन जाए!


मूल रेडिट पोस्ट: Sales Directors...God Help Us All