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जब साफ़-साफ़ लिखा था 'मत छोड़िए ये स्टेप', पर फिर भी लोग छोड़ गए!

एक निराश आईटी सपोर्ट कर्मचारी सॉफ्टफोन ऐप की समस्या हल करने का प्रयास करते हुए, कार्टून चित्रण।
इस जीवंत कार्टून-3D दृश्य में, एक आईटी सपोर्ट कर्मचारी को एक उपयोगकर्ता द्वारा सॉफ्टफोन ऐप में समस्या का सामना करते हुए दिखाया गया है। यह क्षण तकनीकी सहायता में सामान्य निराशाओं को दर्शाता है, जो सही दिशा-निर्देशों का पालन करने के महत्व को उजागर करता है।

कंप्यूटर और मोबाइल के मामले में हम भारतीयों की एक खास आदत है – अगर कोई चीज़ सीधी-सादी लगे तो हम फटाफट शुरू कर देते हैं, बिना पूरी बात पढ़े या सुने। "कौन पढ़े ये लंबा-चौड़ा दस्तावेज़!" सोचकर अक्सर सीधा 'नेक्स्ट-नेक्स्ट-फिनिश' कर देते हैं। लेकिन कई बार ये जल्दबाज़ी उल्टा पड़ जाती है, और फिर टेक्निकल सपोर्ट वालों की शामत आ जाती है। आज की कहानी इसी जल्दबाज़ी के बारे में है, जो Reddit के 'TalesFromTechSupport' से ली गई है।

"एक स्टेप छोड़ दिया, फिर पूछते हैं – क्यों नहीं चल रहा?"

ये किस्सा है एक बड़े आईटी सर्विस डेस्क का, जहाँ एक यूज़र का फोन आया – "भैया, मेरा softphone app खुल नहीं रहा!" टेक्नीशियन ने फटाफट रिमोट एक्सेस से कम्प्यूटर देखा, ऐप को रीइंस्टॉल भी कर दिया, लेकिन दिक्कत जस की तस। तभी यूज़र बोला, "सर, मुझे इंस्टॉलेशन की एक डॉक्यूमेंट दी गई थी।" टेक्नीशियन ने उस डॉक्यूमेंट को मंगवाया, ध्यान से पढ़ा, तो पहली लाइन में मोटे लाल अक्षरों में लिखा था – "इसे छोड़े बिना आगे बढ़ना मना है, ये स्टेप जरूरी है!"

अब टेक्नीशियन ने यूज़र से पूछा, "भाई साहब, आपने ये पहला स्टेप किया?" यूज़र बोला, "नहीं, छोड़ दिया था।" जैसे कुछ गलत किया ही नहीं! अब बताइए, जिस पर साफ-साफ लिखा हो – "इसे छोड़ना मना है", वही छोड़ दिया।

फिर क्या, टेक्नीशियन ने ऐप को पूरी तरह से अनइंस्टॉल किया, सारे स्टेप्स डॉक्यूमेंट के हिसाब से ठीक-ठाक किए, और अबकी बार ऐप एकदम सही चल पड़ा।

क्यों छोड़ देते हैं लोग स्टेप्स – 'कुर्सी और कीबोर्ड के बीच का मसला'

इस पोस्ट पर कम्यूनिटी में भी बहुत मज़ेदार चर्चा हुई। एक कमेंट करने वाले ने कहा, "भाई, ये तो कोई नई बात नहीं है, जब से कंप्यूटर दफ्तरों में आए हैं, लोग स्टेप्स छोड़ते आ रहे हैं!" एक और ने तंज कसा – "मशीनें आई तो लोग बोले – 'पंप चलाने से पहले पानी डालना है? छोड़ो, सीधा चालू कर देते हैं!'"

एक और मजेदार कमेंट था – "समस्या कुर्सी और कीबोर्ड के बीच में है!" यानी असली गड़बड़ इंसान की लापरवाही या आलस्य में है, न कि मशीन में। कुछ ने तो ये भी कहा कि चाहे आप हज़ार बार, बड़े-बड़े लाल अक्षरों में लिख दो – "जरूरी है", फिर भी लोग उस हिस्से को ही नजरअंदाज कर देंगे।

हमारे दफ्तरों में भी यही होता है – हर कोई चाहता है कि सबकुछ दो मिनट में हो जाए, बिना गाइड पढ़े, बिना समझे। जैसे पुराने ज़माने में लोग मसाला डालना भूल जाते थे, फिर कहते थे – दाल में स्वाद ही नहीं आया!

'इंस्ट्रक्शन ब्लाइंडनेस' – इंसान की पुरानी बीमारी!

एक यूज़र ने बड़ा दिलचस्प अनुभव साझा किया – "जब मैं अपने साथियों को कंप्यूटर सिखाता था, उनसे कहता था – स्क्रीन पर जो लिखा है, पढ़ो। लेकिन 75% लोग बीच की लाइनें पढ़ते ही नहीं।" यानी इंस्ट्रक्शन ब्लाइंडनेस (निर्देश न पढ़ने की आदत) कोई नई बात नहीं है, ये तो इंसानियत के साथ ही चली आ रही है।

सोचिए, हमारे यहां भी कितनी बार होता है – 'रसोई गैस के रेगुलेटर को ऑन करना है', पर लोग सीधा बर्नर घुमा देते हैं, फिर बोलते हैं – 'गैस नहीं आ रही!' या फिर डॉक्टर की दवा के साथ लिखा होता है – 'खाना खाने के बाद लें', पर हम अपनी मर्जी से सुबह-सुबह ही गटक जाते हैं।

टेक्निकल सपोर्ट वालों की मजबूरी – 'सबको spoon-feeding चाहिए'

कई कमेंट्स में टेक्निकल सपोर्ट वालों ने अपने दिल की बात रखी – "हर सपोर्टकर्मी को हजार बार ऐसे कॉल्स आते हैं, तब कहीं जाकर प्रमोशन मिलता है!" एक ने लिखा – "अब तो हम सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करने की पूरी जिम्मेदारी खुद ले लेते हैं, यूजर्स को एक्सेस ही नहीं देते, ताकि स्टेप्स छोड़ने की नौबत ही न आए!"

कुछ ने ये भी माना कि कभी-कभी गाइडलाइन इतनी लंबी और उलझी हुई होती है कि पढ़ने का मन ही नहीं करता – "अगर डॉक्यूमेंट 200 पेज का हो, तो कौन पढ़ेगा भाई?" यहां हमारी भारतीय आदत फिर से दिखती है – 'लंबा-लंबा पढ़ने से अच्छा है, किसी जानकार से फटाफट पूछ लो!'

निष्कर्ष: 'जल्दबाज़ी में काम बिगड़ता है'

इस पूरी चर्चा से एक बात तो साफ हो गई – चाहे इंडिया हो या विदेश, इंसान की फितरत एक सी है। हम सब कभी न कभी स्टेप्स छोड़ देते हैं, सोचते हैं 'ये तो छोटी बात है'। पर छोटी-छोटी बातें ही बड़ा फर्क ला देती हैं।

तो अगली बार जब भी कोई ऐप इंस्टॉल करें, या कोई तकनीकी काम करें, तो 'नेक्स्ट-नेक्स्ट-फिनिश' की बजाय दो मिनट रुककर पूरी गाइड पढ़ लें। नहीं तो टेक्निकल सपोर्ट वाले भी यही कहेंगे – "भाई साहब, जिस पर लिखा है 'मत छोड़िए', वही छोड़ आए!"

क्या आपके साथ भी ऐसा हुआ है? क्या आपने कभी जल्दी में कोई जरूरी स्टेप छोड़ दिया? अपने किस्से कमेंट में जरूर साझा करें – क्योंकि 'गलतियां सब करते हैं, सीख वही पाते हैं जो मानते हैं!'


मूल रेडिट पोस्ट: Wonder why it's not working