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जब सफाई बन गई सज़ा: एक अंतहीन चक्कर, मैनेजमेंट की मूर्खता और कर्मचारियों की मजबूरी

अराजकता से भरे सम्मेलन केंद्र का दृश्य, प्रबंधन और सफाई कर्मचारियों की समस्याओं को उजागर करता है।
इस सिनेमाई चित्रण में हम सम्मेलन केंद्र की सफाई के अनवरत चक्र में प्रवेश करते हैं, जहां प्रबंधन की अराजकता के बीच कर्मचारियों की परेशानियाँ और मजेदार घटनाएँ सामने आती हैं। देखें कैसे वे अपनी दैनिक चुनौतियों का सामना करते हैं, जब सब कुछ गलत होता दिखता है।

कभी-कभी ऑफिस में ऐसे-ऐसे नियम बन जाते हैं कि दिल करता है सिर पीट लें। ऊपर से अगर बॉस MBA हो और खुद को अकल का ठेकेदार समझे, तो कर्मचारियों की शामत आना तय है। आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है – जहां एक इवेंट सेंटर के कर्मचारियों को मैनेजमेंट की 'महान' योजनाओं का शिकार होना पड़ा, और सफाई उनके लिए सज़ा बन गई।

मैनेजमेंट की "जनरल नॉलेज" और कर्मचारियों की फजीहत

मान लीजिए, आप एक बड़े कन्वेंशन सेंटर में काम करते हैं। काम—इवेंट्स की सेटिंग, उतारना-चढ़ाना, और अब सफाई भी, क्योंकि कंपनी ने सफाई वालों को हटाकर आपकी ड्यूटी में ही सब जोड़ दिया है। ऊपर से आपके बॉस वो लोग हैं, जिन्हें लगता है कि MBA की डिग्री मिलते ही सारी दुनिया की समझ उनकी जेब में आ गई है।

ऐसे ही 'महान' मैनेजमेंट ने एक दिन आदेश जारी किया—"कर्मचारी कभी भी फालतू न बैठें, हर समय सफाई करते रहें। चाहे कोई हॉल खाली हो या बंद, सफाई का चक्कर चलता रहना चाहिए। दूसरी बात—सफाई का सामान (झाड़ू, वैक्यूम, ट्रॉली, वगैरह) हमेशा बेसमेंट के स्टोररूम में रखा जाएगा, कहीं और दिखना नहीं चाहिए। अगर किसी और काम के लिए बुलाया जाए, तो पहले सारा सामान वापस रखो, फिर काम करो।"

यह सुनकर कर्मचारियों के चेहरे पर वही भाव आया, जो चाय में नमक देखकर आता है—"क्या ही कहें!"

जब आदेशों का पालन बना आफत

अब आप सोचिए – कर्मचारी सफाई करते हैं, तभी किसी ने आवाज़ दी – "भैया, ज़रा कुर्सियां लगा देना!" लेकिन भाई, सफाई का सामान पहले बेसमेंट में रखना है। तो सब समेटो, लिफ्ट पकड़ो, सामान नीचे रखो, फिर ऊपर आओ, कुर्सियां लगाओ। इसी में 10-15 मिनट निकल जाते।

कर्मचारियों ने इसी नियम का पूरी ईमानदारी से पालन किया। जो काम पहले 10 मिनट में हो जाता था, वही अब आधे घंटे में होने लगा। ग्राहक परेशान, इवेंट आयोजक नाराज़, मैनेजमेंट को शिकायतें—"इतना टाइम क्यों लग रहा है?"

कर्मचारी मुस्कुरा कर जवाब देते, "सर, आपकी ही तो नीति है – सफाई पहले, सामान बेसमेंट में, फिर बाकी काम।"

ऑफिस की राजनीति: 'काम' से ज़्यादा 'काम दिखाना'

यह कहानी सिर्फ एक सेंटर की नहीं, बल्कि भारत के कई दफ्तरों की भी है। यहाँ भी अक्सर मैनेजमेंट को यह भ्रम होता है कि जो कर्मचारी दिख रहे हैं, वही काम कर रहे हैं। एक कमेंट में किसी ने लिखा, "ये वही दकियानूसी सोच है – काम हो या न हो, कर्मचारी फालतू न दिखे।"

दूसरे ने मज़ाक में कहा, "MBA = Mediocre But Arrogant (औसत, पर घमंडी)।" भारत में भी अक्सर सुनने को मिलता है—"बड़े साहब ने कहा है तो करना ही पड़ेगा, चाहे दिमाग का दही हो जाए।"

एक और कर्मचारी ने अपने पुराने कॉल सेंटर का किस्सा साझा किया—"जब काम कम था, तो बॉस ने सबको टाइम पास करने के लिए बिना मतलब का टेस्ट पकड़ा दिया, ताकि लगे कि सब व्यस्त हैं।" सोचिए, हमारे यहाँ भी जब सरकारी दफ्तरों में फाइलें इधर-उधर घूमती रहती हैं, असल में होता कुछ नहीं, पर दिखता बहुत है!

नतीजा: सबकी बर्बादी, कंपनी की भी

इतनी बेवकूफी भरी नीतियों का नतीजा क्या हुआ? कंपनी ने 'काम' दिखाने के चक्कर में कर्मचारियों को थका डाला। ऊपर से ब्रेक रूम भी छीन लिया, ताकि कोई आराम न कर सके—"आराम हराम है" का असली रूप!

फिर आई महामारी, कंपनी ने सरकार से PPP लोन (सरकारी सहायता) ली, जिसका मकसद था—कर्मचारियों की नौकरी बचाना। लेकिन कंपनी ने सबको निकाल दिया, पैसा जेब में डाल लिया।

एक पाठक ने गुस्से में लिखा—"PPP लोन का मतलब था कर्मचारियों को न निकालना, फिर भी इन्हें निकाल दिया!" दूसरे ने तंज कसा—"कंपनी ने बस खुद को 'आवश्यक कर्मचारी' मानकर बाकी सबको चलता कर दिया।"

सीख: काम की इज़्ज़त, कर्मचारियों की अहमियत

OP ने भी कहा, "ज़िंदगी अब भी आसान नहीं, पर कम से कम उस आफत से निकल आया हूँ।" और सच मानिए, ऐसी जगह से निकलना ही असली जीत है।

हमारे यहाँ भी अक्सर देखा जाता है—ऊपरवाले सोचते हैं कि बस आदेश दो, नीचेवाले झेल लें। पर हकीकत यह है कि फालतू की पॉलिसियों से न सिर्फ काम रुकता है, बल्कि कर्मचारी भी परेशान होकर कंपनी छोड़ देते हैं।

निष्कर्ष: क्या आपके साथ भी हुआ है ऐसा?

दोस्तों, क्या आपके ऑफिस में भी कभी ऐसे अजीब नियम बने हैं? क्या आपको भी कभी मैनेजमेंट की मूर्खता का शिकार होना पड़ा है? अपनी कहानी नीचे कमेंट में ज़रूर शेयर करें। और हाँ, अगली बार जब बॉस बिना सिर-पैर का आदेश दें, तो यह कहानी याद रखना—कभी-कभी आदेश का पालन ही सबसे बड़ा विरोध होता है!

आशा है, आपको यह कहानी पसंद आई होगी। पढ़ते रहें, मुस्कुराते रहें, और अपने ऑफिस के किस्से हमसे बांटते रहें!


मूल रेडिट पोस्ट: The Endless Cleaning Loop