जब सुपरमार्केट में किसी ने लाइन तोड़ी: एक छोटी सी बदला कहानी
समझिए, आप लंबी खरीदारी के बाद थके-हारे सुपरमार्केट की लाइन में खड़े हैं। हाथ में टोकरी, दिमाग में अगले पकवान की रेसिपी, और बस उम्मीद है कि जल्दी से घर पहुंचें। तभी आपके पीछे खड़ी कोई "आंटी" या "अंकल" बिना कुछ कहे अपने सामान बेल्ट पर रखने लगते हैं – जब आप अभी आधा सामान भी नहीं निकाल पाए! ऐसे में गुस्सा आए तो गलत नहीं है, लेकिन कभी-कभी बदला भी बड़ा मजेदार हो सकता है।
सुपरमार्केट की लाइन: सब्र का इम्तिहान और छोटा बदला
इस Reddit कहानी के नायक के साथ हुआ कुछ ऐसा ही। एक बुजुर्ग महिला ने ऐसे बर्ताव किया मानो सामने वाला अदृश्य हो! वह अपनी खरीदारी का सामान बेल्ट पर रखने लगीं, जबकि सामने वाला अभी अपनी आधी गाड़ी भी खाली नहीं कर पाया था। जब उन्हें टोका, तो बस हल्की-सी बड़बड़ाहट, लेकिन सामान नहीं हटाया... बस बेल्ट के आगे-पीछे खिसकाती रहीं।
अब भाई, जिसने भी "बदला" शब्द सुना है, उसे पता है कि असली मजा तो वहीं है जहां थोड़ा तड़का लगे। हमारे नायक ने बाकी सामान एक-एक कर के, धीरे-धीरे बेल्ट पर फैलाना शुरू कर दिया। बेल्ट चलती रही, वह आंटी अपना सामान पीछे खींचती रहीं। ऊपर से, कैशियर से लंबी गपशप, नकद में भुगतान (जो आमतौर पर कार्ड से करते थे, पर आज मौका मिला!), और सामान की पैकिंग में भी पूरी बारीकी—"कुछ भी दबना नहीं चाहिए!"
जब आखिर में नायक ने जाते-जाते उस आंटी को मुस्करा कर देखा, तो वो तो गुस्से में फूली नहीं समा रही थीं!
'बूमर' बनाम 'मिलेनियल': क्या सच में उम्र की बात है?
कई पाठकों ने Reddit पर लिखा कि ऐसी हरकतें उम्र से नहीं, बल्कि इंसान के स्वभाव से होती हैं। एक यूज़र ने तो लिखा—"भाई, ये 'बूमर' या 'जनरेशन Z' की बात नहीं, ये तो बस 'मैं-मैं' करने वालों की फितरत है।" किसी ने लिखा, "बुजुर्गों का दो ही स्पीड होता है—खुद के लिए फास्ट, और दूसरों के लिए स्लो!"
हमारे देश में भी यह नजारा आम है—किराने की दुकान पर, बैंक की कतार में, या रेलवे प्लेटफॉर्म पर; कोई न कोई तो लाइन तोड़ने की कोशिश करता ही है। कई बार बहाना बनता है, "बेटा, बस दो आइटम हैं, पहले करवा दो..." और अगर मना करो तो, "बड़े-बुजुर्ग की इज्जत नहीं करते!"
एक Reddit यूज़र ने तो इसका सीधा इलाज बताया—अगर कोई पीछे से सामान बेल्ट पर डाल दे, तो अपने सामान के साथ मिला दो और काउंटर पर कहो, "ये सब मेरा है।" जिसने लाइन तोड़ी, वो तो चौंक कर कहेगा, "ये मेरा सामान है!"—लेकिन बिल तो आपके नाम कट चुका होगा! है ना देसी जुगाड़?
दुकानदार और ग्राहकों के बीच की 'स्प्रैचेट' जंग
कई लोगों ने एक और मजेदार समस्या बताई—अक्सर लोग बेल्ट पर सामान अलग करने वाली छड़ी (divider या ‘स्प्रैचेट’) रखना भूल जाते हैं। नतीजा—सामान मिक्स हो जाता है और फिर काउंटर पर बहस। जैसे एक कमेंट में था, "अगर तुमने डिवाइडर नहीं रखा, तो मैं अपना सामान वहीं रख दूंगा, फिर तुम्हें ही बिल भरना पड़ेगा!"
हमारे यहां ये छड़ी की जगह, दुकानदार और ग्राहक की जुबानी जंग ज्यादा होती है—"आपका सामान किधर है, उनका किधर?" कभी-कभी तो काउंटर वाला खुद ही "रिश्ता जोड़" देता है, "लगता है आप लोग साथ आए हैं!"
एक और यूज़र ने लिखा, "मैं अपनी गाड़ी को हमेशा अपने और अगले ग्राहक के बीच रखती हूं, ताकि कोई बेल्ट तक पहुंच ही न पाए।" कोरोना के समय ये आदत और भी काम आई—दूरी भी बनी रही, और लाइन भी।
'छोटी-सी बदला' की सीख: विनम्रता से बड़ा कोई धर्म नहीं
इन कहानियों में चाहे कितनी भी हंसी-मजाक हो, असल संदेश यही है—सब्र और विनम्रता हर जगह काम आती है। लाइन तोड़ने की जल्दी में आप खुद की और दूसरों की भी फजीहत करा सकते हैं। एक पाठक ने तो बड़े प्यार से लिखा, "मैं भी बुजुर्ग हूं, लेकिन मुझे ऐसे 'बूमर' लोग बहुत चिढ़ाते हैं।"
तो अगली बार जब कोई लाइन तोड़े, तो सोचिए—क्या आपको भी बदले में वही करना है, या थोड़ा धैर्य और मजाकिया अंदाज दिखा सकते हैं? आखिरकार, "सब्र का फल मीठा होता है", और कभी-कभी "मीठा बदला" सबक भी सिखा देता है!
आपकी राय क्या है?
क्या आपके साथ भी कभी ऐसी 'लाइन-ब्रेकिंग' या 'बदला' वाली घटना हुई है? क्या आपने कभी किसी को शराफत से सबक सिखाया? या खुद कभी गलती से लाइन तोड़ बैठे? नीचे कमेंट में अपनी मजेदार कहानी जरूर साझा करें—शायद अगला ब्लॉग आपकी कहानी पर ही बन जाए!
शुभ खरीदारी और सबको थोड़ी विनम्रता बांटते रहिए!
मूल रेडिट पोस्ट: Start putting your groceries on the belt behind mine while I still have half a cart to unload? I hope you're not in a rush...