जब 'सीनियर गैस्ट्रोनॉमी ऑफिसर' ने मैनेजर को उसकी औकात दिखा दी: छुट्टी के लिए जंग
कितनी बार आपने अपने बॉस से छुट्टी मांगी है और उन्होंने टका सा जवाब दे दिया हो? सोचिए, अगर हर साल आप महीनों पहले छुट्टी माँगते हैं, और फिर भी आपको न मिलती हो, जबकि नए-नवेले कर्मचारियों को आराम से छुट्टी मिल जाती है! आज की कहानी ऐसी ही एक ऑफिस की है, जहाँ एक पुराने कर्मचारी ने अपने बॉस की दोगली पॉलिसी का जबरदस्त जवाब दिया—और वो भी पूरी मस्ती के साथ!
जब सीनियरिटी का मतलब ही बदल गया
कहते हैं ना, "जहाँ चाह, वहाँ राह!" हमारे नायक (मान लीजिए उनका नाम 'राकेश' है) एक फास्ट फूड रेस्टोरेंट में चार साल से काम कर रहे थे। हर साल क्रिसमस पर अपने परिवार के पास जाने की इच्छा लिए वो छुट्टी की अर्जी देते, पर बॉस हमेशा 'सीनियरिटी बेस्ड शेड्यूलिंग' का हवाला देकर मना कर देता। मज़ा देखिए, इस साल तो राकेश खुद बॉस के बाद सबसे पुराने कर्मचारी थे—बाकी सब या तो जा चुके थे, या निकलवा दिए गए!
राकेश ने अगस्त में ही छुट्टी मांगी थी, लेकिन बॉस ने फिर मना कर दिया। इस बार बहाना था—"जो नए लोग हैं, उनके छोटे बच्चे हैं, तुम्हारी तो फेमिली नहीं, टीम प्लेयर बनो!" अब भैया, 'सीनियरिटी' का मतलब अगर बच्चों की गिनती से बदल जाए, तो फिर काम का क्या?
जुगाड़ और जिद्द—भारतीय तड़का
यहाँ राकेश ने किया असली कमाल! उन्होंने कंपनी की पॉलिसी पढ़ी—जाहिर है, उसमें 'सीनियर स्टाफ' को प्राथमिकता देने की बात थी, पर 'सीनियर' की कोई परिभाषा नहीं थी। फिर क्या था, राकेश ने अपने लिए विजिटिंग कार्ड छपवा लिए—'सीनियर गैस्ट्रोनॉमी ऑफिसर' के नाम से! नाम की नेमप्लेट पर भी 'Sr.' जोड़ लिया, और व्हाट्सऐप ग्रुप में हर बार "सीनियर टीम मेंबर" लिखकर मैसेज करने लगे।
बॉस को चिढ़ तो हुई, लेकिन नियम तो नियम है! राकेश ने अगले दो महीने बॉस की हर शिफ्ट भी कवर की, ताकि 'सीनियर मैनेजमेंट केपेसिटी' में आ जाएँ—कंपनी के नियम अनुसार ऐसे कर्मचारियों को छुट्टी में प्राथमिकता मिलती है। आखिरकार, उन्होंने 12 पेज की फाइल तैयार कर दी, जिसमें हर तरीके से खुद को सबसे सीनियर साबित किया। बॉस के पास कोई चारा नहीं बचा—आखिरकार छुट्टी अप्रूव करनी ही पड़ी!
कम्युनिटी की राय: "बॉस को उसकी ही दवा पिलाई"
रेडिट कम्युनिटी में इस कहानी पर बवाल मच गया! कई लोगों ने कहा—"ये तो हिंदुस्तानी जुगाड़ है, भाई!" एक यूज़र ने मज़ाक में लिखा, "राकेश ने 'रंग दे बसंती' वाला अंदाज दिखाया—व्यवस्था बदलनी हो तो अंदर से ही बदलो!"
एक टीचर रहे यूज़र ने बताया, "बहुत बार मैंने देखा है कि अच्छे, भरोसेमंद कर्मचारियों को ही छुट्टी नहीं मिलती, क्योंकि मैनेजर चाहता है कि वही लोग मुश्किल वक्त में काम पर रहें।" यानी, भारत में भी अक्सर यही होता है—जो मेहनत करता है, उसी से सबसे ज़्यादा उम्मीदें बाँध ली जाती हैं।
किसी ने सलाह दी—"अगर ऑफिस या दुकान वाले आपकी मेहनत को नहीं समझते, तो लिखित में बात करें या यूनियन की मदद लें।" एक और ने कहा, "छुट्टी माँगना अधिकार है, एहसान नहीं।" कईयों ने ये भी कहा कि इन छोटे-मोटे जॉब्स में आजकल नौकरी पाना भी मुश्किल हो गया है, इसलिए युवा कर्मचारी अक्सर 'ना' कहने से डरते हैं।
छुट्टी के अधिकार की लड़ाई हर जगह
भारत में भी अक्सर देखा जाता है कि छुट्टियों के नाम पर मैनेजर अपनी मनमानी करता है। कभी सीनियरिटी, कभी 'फैमिली जिम्मेदारी', तो कभी 'बिजनेस की जरूरत' का बहाना बन जाता है। लेकिन ये कहानी दिखाती है कि अगर आप नियम जानते हैं, थोड़ा सा आत्मविश्वास और हास्य का तड़का लगा दें, तो बड़े से बड़ा बॉस भी झुक सकता है।
यहाँ तो राकेश ने जैसे ऑफिस में खुद की 'राजा हरिश्चंद्र' वाली छवि बना ली—हर मीटिंग में, हर नए कर्मचारी को बड़े गर्व से बताते, "मैं यहाँ का सबसे सीनियर हूँ!" और आखिर में, अपनी मेहनत और होशियारी से जीत भी हासिल की।
निष्कर्ष: "जुगाड़ से ही जीत है!"
आखिर में यही कहना चाहूँगा—चाहे ऑफिस हो या दुकान, अगर आपके साथ अन्याय हो रहा है, तो चुप मत बैठिए। नियमों को जानिए, अपने अधिकारों के लिए खड़े रहिए, और ज़रूरत पड़े तो राकेश की तरह थोड़ा सा 'जुगाड़' भी लगाइए! क्या पता, अगली छुट्टी आपकी हो!
क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है कि बॉस ने छुट्टी देने से मना कर दिया? या आपने भी कभी किसी अजीब पॉलिसी का मज़ेदार जवाब दिया हो? अपनी कहानी नीचे कमेंट में ज़रूर साझा करें—शायद अगली बार आपकी कहानी यहाँ छपे!
जय हो जुगाड़ की, जय हो सीनियरिटी की!
मूल रेडिट पोस्ट: I'm pretty sure my boss hates me and has been denying my breaks.