जब सैनिक ने युद्ध से मना किया: एक अफसर की चालाकी और Reddit की बहस
अगर आपके ऑफिस में किसी ने कहा हो कि "मुझे ये काम नहीं करना, मेरी भावनाएँ आहत होंगी", तो क्या आपने कभी सोचा है कि बॉस क्या करेगा? अब सोचिए, यही बात अगर जंग के मैदान में हो जाए! आज की कहानी है 1969 के वियतनाम युद्ध की, जहाँ एक सैनिक ने युद्ध में लड़ने से मना कर दिया, और उसके अफसर ने उसके लिए कुछ ऐसा किया कि Reddit की पूरी दुनिया बहस में पड़ गई!
"बुद्धिस्ट हूँ, युद्ध नहीं कर सकता" – सैनिक का बयान
1969, वियतनाम। एक अफसर के पास नया भर्ती हुआ जवान आया और बोला – "साहब, मैं बौद्ध धर्म का अनुयायी हूँ, और मुझे किसी भी तरह की हिंसा करना मना है।" हिंदुस्तान में जैसे कोई कह दे, "मैं व्रत पर हूँ, आज मीट नहीं खाऊँगा", वैसे ही उस सैनिक ने अपने धर्म का हवाला दिया। अफसर ने मुस्कुराकर कहा – "चिंता मत करो, तुम्हारे लिए भी सेवा का रास्ता है।"
अब यहाँ पर Reddit वाले कहेंगे – "वाह, कितना समझदार अफसर!" लेकिन कहानी में ट्विस्ट है।
अफसर की 'मालिशियस कंप्लायंस' – ड्यूटी ऐसी कि पसीना छूट जाए
अफसर ने उस जवान को युद्ध से बचने का विकल्प दिया, लेकिन ऐसी ड्यूटी दी कि शेर का भी दिल काँप जाए! वियतनाम में उस समय 'वियतकोंग' नाम की सेना ज़मीन के नीचे सुरंगें खोदती थी – बिलकुल वैसे जैसे हमारे यहाँ गाँव में लोग कुएँ या बंकर खोदते हैं। इन सुरंगों का नक्शा बनाना बेहद खतरनाक काम था; अंदर साँप, बिच्छू, दुश्मन, और खो जाने का डर – सबकुछ मौजूद।
अफसर ने उस जवान से कहा, "तुम्हें बस ये सुरंगें जाकर देखनी हैं, नक्शा बनाओ – हथियार चलाने की जरूरत नहीं।" जवान ने हाँ कर दी। लेकिन एक हफ्ते के अंदर ही उसकी हालत ऐसी हो गई कि वापस आकर बोला, "साहब, मुझे सामान्य सैनिक बना दो, ये सुरंगों का काम नहीं करना!"
यहाँ Reddit के एक कमेंट ने बड़ा मजेदार तंज कसा – "बाकी लोग कॉफी मशीन में पानी ज़्यादा डाल देते हैं, और ये अफसर बेचारे को मौत की गुफा में भेज देता है!" एक और ने लिखा, "अरे वाह, तुम तो इस बात पर गर्व कर रहे हो!"
Reddit की महाभारत: नैतिकता, मज़ाक और गुस्सा
इस कहानी पर Reddit की दुनिया दो हिस्सों में बंट गई। कुछ ने अफसर को जमकर कोसा – "तुम्हें अपने सैनिकों की परवाह नहीं थी?", "क्या धर्म के नाम पर जान जोखिम में डालना सही है?" एक कमेंट में लिखा गया, "सैनिक ने अपनी जान बचाने के लिए झूठ बोला, इसमें बुरा क्या है? आखिरकार, कोई भी वहाँ अपनी मर्जी से नहीं आया था!"
वहीं, कुछ ने हकीकत की ज़मीन पर भी बात रखी – "जंग में हर किसी की जान दाँव पर होती है, और जरूरी काम तो करने ही पड़ते हैं। अगर कोई सामान्य ड्यूटी नहीं करना चाहता, तो उसे बाकी सबसे खतरनाक काम मिल सकता है।" एक कमेंट ने तो यहाँ तक कहा – "भारत में जैसे ऑफिस में कोई काम टालता है, बॉस उसे ऐसा काम पकड़ा देता है कि दोबारा मुँह न खोले!"
किसी ने सीधा सवाल भी उठाया – "युद्ध कौन जीता? अफसर या वो जवान? असल में तो सब हारे, क्योंकि जंग में कोई नहीं जीतता।"
भारतीय नज़रिए से: धर्म, कर्तव्य और बॉस की चालाकी
अगर यही किस्सा हिंदुस्तान में हुआ होता, तो शायद जवान के माता-पिता थाने पहुँच जाते, या मंत्री को फोन लग जाता – "हमारा बेटा पूजा-पाठ करता है, उसे मत सताo!" लेकिन यहाँ अफसर ने नियमों का पालन करते हुए 'मालिशियस कंप्लायंस' दिखाई – नियम तो मान लिया, लेकिन काम ऐसा पकड़ा दिया कि सोच बदल गई।
कई बार हमारे यहाँ भी दफ्तर या घर में कोई काम के नाम पर बहाना बनाता है, तो बुज़ुर्ग लोग कहते हैं – "ठीक है बेटा, ये आसान काम छोड़, अब ये मुश्किल वाला कर के दिखा!" यही अफसर ने किया।
निष्कर्ष: क्या सीखा, किसका पक्ष सही?
इस कहानी से एक बात बिल्कुल साफ है – जंग हो या दफ्तर, अगर आप काम टालना चाहेंगे, तो बॉस के पास आपके लिए हमेशा कोई न कोई 'सुरंग' तैयार होती है! Reddit की बहस ने दिखा दिया कि हर कहानी के दो पहलू होते हैं – एक नैतिकता और दूसरा हकीकत।
क्या अफसर ने सही किया? क्या जवान का बहाना सही था? या फिर युद्ध जैसी परिस्थिति में हर किसी को जो भी काम मिले, उसे करना ही पड़ता है? आपकी राय क्या है? नीचे कमेंट में ज़रूर बताइए – और अगर आपके साथ भी कभी बॉस ने ऐसी चालाकी की हो, तो वो किस्सा भी सुनाइए!
युद्ध की कहानी हो या दफ्तर की, 'मालिशियस कंप्लायंस' का जलवा हर जगह है – बस फर्क इतना है, यहाँ सुरंगें हैं, वहाँ फाइलें!
मूल रेडिट पोस्ट: Draftee doesn't want to fight? Okay.