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जब सैंडविच बना बदला: हॉस्टल लाइफ की छोटी मगर तीखी कहानी

एक समूह दोस्तों का, जो अपने विश्वविद्यालय के घर में सैंडविच पर हंसते हुए, साझा यादें संजो रहे हैं।
इस चलचित्रीय दृश्य में, चार दोस्त अपने विश्वविद्यालय के दिनों को याद करते हैं, हंसी और मेज के नीचे भूला हुआ सैंडविच के बीच। सह-शिक्षण के दौरान उनका बंधन मजबूत हुआ, अपने प्यारे पुराने घर में यादें बनाते हुए।

कॉलेज की हॉस्टल लाइफ में मस्ती, दोस्ती और छोटी-मोटी तकरारें आम बात हैं। हर कोई कभी न कभी ऐसी स्थितियों से गुज़रा है जब रूममेट या सीनियर ने अपनी लापरवाही का बोझ दूसरों पर डाल दिया हो। लेकिन जब बदले का मौका मिले, तो कई बार मज़ा दुगुना हो जाता है। आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है – जहां एक सड़ा हुआ सैंडविच बना अद्भुत बदले का हथियार!

हॉस्टल का हाल – जैसे 'धोबी का कुत्ता', न घर का न घाट का

बात एक बड़े और महंगे शहर की है, जहां रहना किसी सपने से कम नहीं, मगर जेब की हालत देखकर सपना अक्सर बुरा सपना बन जाता है। हमारे कहानी के हीरो और उनके तीन दोस्त हर को-ऑप टर्म में एक ही पुराना, जर्जर मकान किराए पर लेते थे। मकान मालिक भी किसी फिल्मी विलेन से कम नहीं – मकान को देखे बिना ही किराया वसूलता था।

हर टर्म, एक ग्रुप जाता और दूसरा आता, लेकिन घर की हालत वही ढाक के तीन पात। एक बार जब हमारे दोस्त और उनके साथी लौटे, तो उन्हें लगा जैसे कोई भूचाल आ गया हो – बाथटब काला, घर से अजीब सी बदबू और सबसे बड़ा सरप्राइज़, सेंटर टेबल के नीचे पड़ा हुआ सड़ा-सड़ा सैंडविच! सोचिए, अगर आपकी मां ये देख लेती तो 'ये क्या गंद मचा रखी है!' कहकर झाड़ू उठा लेतीं।

बदले की नई रेसिपी: 'सैंडविच वापसी योजना'

अब आप सोच रहे होंगे कि हमारे हीरो ने क्या किया? आमतौर पर कोई भी उस सैंडविच को उठाकर फेंक देता, लेकिन ये तो बदले की कहानी है! उन्होंने और उनके साथियों ने तय किया कि उस सैंडविच को वहीं रहने देंगे, ताकि जब अगली बार वो लापरवाह लड़के लौटें, तो उन्हीं का छोड़ा हुआ 'विरासत' उनका स्वागत करे। तीन महीने तक वो सैंडविच टेबल के नीचे पड़ा रहा, जैसे किसी फिल्म में विलेन धीरे-धीरे अपना बदला लेता है।

यहां एक कमेंट करने वाले ने बड़ा मज़ेदार तंज कसा – 'जानवर भी इतनी गंदगी में नहीं रहते, ये तो अपनी मर्जी से ऐसा कर रहे हैं!' वहीं एक अन्य ने कहा, 'सुअर तो बड़े साफ रहते हैं, असल में ये लोग तो शहर के कूड़े में रहने वाले गिद्ध जैसे हैं।' सोचिए, हमारी संस्कृति में भी सफाई को लेकर कितनी कहावतें हैं – 'सफाई आधा ईमान' या 'जहां सफाई, वहां भगवान' – लेकिन यहां तो मामला उल्टा था।

क्या सच में फर्क पड़ा? या सब बेअसर?

अब सवाल उठता है – क्या अगली बार जब वो लापरवाह ग्रुप लौटा, तो उन्हें अपनी करनी की सज़ा मिली? कमेंट्स पढ़कर तो लगता है, शायद उन्हें फर्क ही नहीं पड़ा होगा! किसी ने लिखा – 'पता नहीं, वो लड़के लौटकर उस सैंडविच को देखकर भी कुछ महसूस करते होंगे या नहीं, इतने गंदे लोग थे!' वहीं किसी और ने पूछा – 'इतनी गंदगी के बाद घर में कॉकरोच या चूहे नहीं पनप गए?' एक और कमेंट में यह भी कहा गया कि ऐसे लोगों के लिए अच्छा सबक है, लेकिन क्या पता, ये सबक उनके सिर के ऊपर से निकल गया हो!

यहां पर OP (मूल लेखक) ने खुद भी माना – 'सभी लड़के एक नंबर के गंदगी पसंद थे, कोई शक नहीं!' अब सोचिए, जब खुद कहानी का हीरो यह मान जाए, तो मामला कितना गंभीर होगा!

हमारी संस्कृति में सफाई की भूमिका

हमारे यहां तो बचपन से ही सिखाया जाता है – 'जहां साफ-सफाई, वहां लक्ष्मी का वास'। मां-पापा हर त्योहार पर घर की सफाई में लग जाते हैं। यहां तक कि भगवान के मंदिर में भी पहले झाड़ू लगती है, फिर पूजा होती है। शायद यही कारण है कि जब कोई इस तरह की लापरवाही करता है, तो हमें अंदर ही अंदर बहुत गुस्सा आता है – और कभी-कभी, जैसे इस कहानी में, लोग बदला लेने का भी तरीका ढूंढ ही लेते हैं!

क्या आपने भी किया है ऐसा बदला?

तो दोस्तों, क्या आपके साथ भी कभी किसी रूममेट या सहकर्मी ने ऐसी गंदी हरकत की है? या फिर आपने भी कभी बदला लेने का कोई 'जुगाड़ू' तरीका अपनाया है? ऐसे किस्से तो हर हॉस्टल, पीजी या ऑफिस में होते हैं। आखिरकार, छोटी-छोटी शरारतें ही तो यादें बन जाती हैं!

अब आपकी बारी है – नीचे कमेंट करके बताएं, आपकी सबसे मजेदार बदला कहानी कौन सी है? और ये भी बताएं, अगर आप होते तो उस सैंडविच के साथ क्या करते?

साफ-सफाई रखें, लेकिन कभी-कभी हल्का-फुल्का बदला लेने में कोई हर्ज़ नहीं... आखिर, मज़ा भी तो जिंदगी का हिस्सा है!


मूल रेडिट पोस्ट: You left your sandwich under the table? Cool.