विषय पर बढ़ें

जब साइकिल चालकों ने ट्रैफिक नियमों की पूरी इमानदारी से पालन किया, तो हंगामा मच गया!

कभी-कभी नियमों का पालन करना भी अपने आप में एक विरोध हो सकता है! सोचिए, अगर आपके मोहल्ले के सारे साइकिल वाले अचानक एकदम ट्रैफिक पुलिस की किताब के पन्नों जैसा व्यवहार करने लगें, तो क्या होगा? कुछ साल पहले सैन फ्रांसिस्को की गलियों में कुछ ऐसा ही हुआ, जब सैकड़ों साइकिल चालकों ने ट्रैफिक नियमों का सख्ती से पालन करते हुए सबको हैरान कर दिया।

साइकिल चालकों का अनोखा विरोध – नियमों से विद्रोह!

सन फ्रांसिस्को की "द विगल" नामक सड़क पर एक पुलिस कप्तान ने साइकिल चालकों के लिए सख्ती से नियम लागू करने की बात कही। उनका कहना था कि साइकिल चालक स्टॉप साइन पर बिना रुके निकल जाते हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ता है। इस बात से नाराज़ होकर सैकड़ों साइकिल चालकों ने विरोध का नया तरीका निकाला – उन्होंने तय किया कि आज से हम ट्रैफिक नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे।

अब हुआ ये कि हर चौराहे पर साइकिल चालक लाइन में लगकर, एक-एक कर के पूरी तरह रुकते और अपनी बारी का इंतजार करते। जैसे ही ग्रीन सिग्नल या रास्ता मिलता, हीरो की तरह आगे बढ़ते। लेकिन ये हीरोपंती ट्रैफिक के लिए विलेन बन गई! चौराहों पर लंबी-लंबी कतारें लग गईं, चालक चिल्लाने लगे, कार वाले हॉर्न बजाते-बजाते थक गए।

ट्रैफिक नियम: किताब के, या ज़िंदगी के?

यहां सवाल उठता है – क्या हर नियम का आँख मूंदकर पालन करना ही सही है? Reddit पर एक यूजर की टिप्पणी तो कमाल की थी – “अगर हर साइकिल वाला हर सिग्नल पर रुकेगा, तो मोहल्ले की रफ्तार सूखी नदी जैसी हो जाएगी।" कोई बोला, "हमारे यहां तो अगर इतनी साइकिलें एक जगह दिख जाएं, लोग समझेंगे कोई बारात निकल रही है!"

दरअसल, पश्चिमी देशों में सड़कें कारों के हिसाब से बनाई जाती हैं। साइकिल चालकों को हमेशा किनारे बैठाया जाता है, जैसे दावत में बच्चों को अलग पंगत लगती है। एक कमेन्ट में लिखा था, “कार वाले तो खुद कभी पूरी तरह नहीं रुकते, लेकिन साइकिल वालों पर सबकी नजर रहती है।”

भारत में भी यही हाल है – ट्रैफिक सिग्नल हो या स्टॉप साइन, कार वाले अक्सर इशारे को सुझाव समझते हैं, आदेश नहीं। और साइकिल वाले? कभी पैदल तो कभी सवारी बन जाते हैं, जब जैसा फायदा दिखा।

'आईडाहो स्टॉप' – नियम में लचीलापन

पश्चिमी देशों की तरह अब भारत में भी ये चर्चा शुरू हो रही है कि क्या साइकिल चालकों के लिए नियमों में थोड़ा लचीलापन होना चाहिए? अमेरिका के कई राज्यों में ‘आईडाहो स्टॉप’ नाम का नियम लागू है, जिसमें साइकिल चालक स्टॉप साइन पर पूरी तरह रुकने की बजाय धीरे होकर, अगर रास्ता साफ है तो निकल सकते हैं। इससे न ट्रैफिक जाम होता है, न साइकिल चालकों की सांस फूलती है।

एक Reddit यूजर ने बड़ा सही कहा – “नियमों का असली मतलब है – सबका अनुमान लगाना आसान हो। इधर-उधर की ‘शराफत’ सड़क पर खतरनाक हो सकती है। भाई, सड़क पर ‘अति सभ्यता’ नहीं, ‘अति अनुमानिता’ चाहिए।”

सभी की चिंता – सुरक्षा या सुविधा?

बहस का सबसे दिलचस्प पहलू ये था कि लोग असल में क्या चाहते हैं? एक ने कहा, “मुझे फर्क नहीं पड़ता कोई साइकिल वाला मुझे पांच सेकेंड देर करवा दे, लेकिन मैं नहीं चाहता कि मेरी गाड़ी से किसी की जान चली जाए।” दूसरे बोले, “सड़क पर सबसे जरूरी है – सबका व्यवहार अनुमानित हो।”

यहां भारत की सड़कें याद आती हैं – जहां ट्रैफिक नियमों की बजाय ‘जुगाड़’ और ‘होर्न’ पर ज्यादा भरोसा रहता है। जब तक सब समझदारी से चलें, थोड़ा नियम टेढ़ा-मेढ़ा भी चलेगा। लेकिन अगर सब एक साथ नियमों का सख्ती से पालन करने लगें, तो शायद चौराहों पर रामलीला का मंचन ही हो जाए!

निष्कर्ष: सड़क पर नियम, दिमाग और थोड़ा दिल – तीनों ज़रूरी!

तो जनाब, इस अनोखे विरोध ने दुनिया को दिखा दिया कि नियमों का पालन अंधे होकर करने से भी ट्रैफिक की लंका लग सकती है। साइकिल चालक हों या कार वाले – दोनों को समझदारी, सुरक्षा और दूसरों का ख्याल रखने की जरूरत है।

अगर भारतीय सड़कों पर कभी ऐसा विरोध हुआ, तो शायद अगला म्युनिसिपल चुनाव ट्रैफिक सिग्नल के रंगों पर ही लड़ा जाएगा!

आपका क्या ख्याल है – क्या साइकिल चालकों को अलग नियम मिलने चाहिए, या सबको एक ही डंडे से हांका जाए? नीचे कमेंट में अपने अनुभव जरूर साझा करें – क्या कभी आपने किसी साइकिल वाले या कार वाले की वजह से ट्रैफिक में उलझन झेली है?

चलते-चलते: सड़क पर चलिए, लेकिन दिमाग और दिल दोनों साथ लेकर!


मूल रेडिट पोस्ट: This Is What Happened When Bicyclists Obeyed Traffic Laws