विषय पर बढ़ें

जब शरारती इंजीनियर की चालाकी पर भारी पड़ी सज्जनता – पेटी रिवेंज का देसी किस्सा

लोकोमोटिव इंजीनियरों की हास्यपूर्ण क्षण की एनिमे चित्रण, कार्यस्थल की शरारतों और भाईचारे को दर्शाते हुए।
इस जीवंत एनिमे चित्रण के साथ लोकोमोटिव इंजीनियरों की मजेदार दुनिया में डूब जाएं, जो एक क्लासिक कार्यस्थल की शरारत की खेल भावना को कैद करता है। आइए हंसी और जिज्ञासा के साथ उन अविस्मरणीय कहानियों का अन्वेषण करें जो हमारी यात्राओं को यादगार बनाती हैं!

अगर आपको लगता है कि ऑफिस में सिर्फ काम-काज ही चलता है, तो जनाब! आप बहुत बड़ी गलतफहमी में हैं। दफ्तर, चाहे रेलवे का हो या कोई और, असली रंग वहीं नज़र आते हैं जहाँ सहकर्मियों की शरारतें, बदमाशियाँ और कभी-कभी ‘पेटी रिवेंज’ की कहानियाँ जन्म लेती हैं। आज मैं आपको एक ऐसी ही किस्सागोई सुनाने जा रहा हूँ, जिसमें बेशर्मी, मासूमियत और बदले की भावना का तड़का है—और हां, इसमें कुछ ऐसा ट्विस्ट है कि पढ़कर आप भी कहेंगे, “वाह भाई, क्या चाल चली!”

दो किरदार, दो रंग – ‘ईस्ट’ और ‘मो’ की जुगलबंदी

रेलवे के इंजीनियर यानी वो लोग जो न सिर्फ ट्रेन चलाते हैं, बल्कि अपने-अपने रंग में रंगे भी होते हैं। हमारे मुख्य कलाकार हैं – ‘ईस्ट’, जो ठेठ शरारती, बदमाश और बिंदास मिजाज के हैं। ऑफिस में उनके बिना कोई पल सुस्त नहीं बीतता – कभी किसी के बैग में फार्ट पिल्स डालना, तो कभी प्लेटफॉर्म पर गोरिल्ला मास्क पहनकर हंगामा करना। उनकी शरारतें सुनकर गाँव के चुटकुले भी पानी मांगें!

दूसरी ओर हैं ‘मो’ – धार्मिक, अनुशासनप्रिय, हमेशा टाई पहनने वाले और बेहद सज्जन। उनकी दिनचर्या एकदम फिक्स – काम के बाद घर जाकर पत्नी को बैग देना, खुद नहाना और फिर बाकी दिनचर्या। एकदम ‘राम-भरोसे’ वाले, किसी भी तरह की शरारत से कोसों दूर।

शरारत की शुरुआत – ‘ईस्ट’ का मास्टरस्ट्रोक

एक दिन ईस्ट को पता चला कि मो हर दिन अपना ऑफिस बैग सीधा पत्नी को थमा देते हैं और वही उसमें से सामान निकालती है। बस फिर क्या था! ईस्ट ने अपनी आदत के मुताबिक, मो के बैग में चुपके से दो ‘अश्लील पत्रिकाएँ’ डाल दीं, सोचकर कि अब तो मो की पत्नी देखेगी और घर में बवाल मचेगा। क्या मज़ाक उड़ा है! लेकिन मज़े की बात, अगले कई दिनों तक मो की ओर से न कोई चर्चा, न कोई शिकायत, न कोई हंगामा। ईस्ट को लगा, शायद शिकार हाथ से निकल गया।

सज्जनता की वापसी – मो का अनोखा बदला

कुछ हफ़्ते बाद मो ने ईस्ट को फोन कर घर बुलाया – “शनिवार को घर आ जाइए, कुछ सहकर्मी आ रहे हैं, साथ में बीयर पिएंगे, मस्ती करेंगे।” ईस्ट तो खुशी-खुशी बीयर का पैक लेकर पहुँच गए। मो ने स्वागत किया, हँसी-मजाक की, और फिर कहा – “आइए, सब लोग अंदर हैं।”

अब जो हुआ, वो शायद किसी हिंदी फिल्म के क्लाइमेक्स से कम नहीं था! ईस्ट सीधा पहुँचे मो के ड्रॉइंग रूम में – जहाँ चल रही थी दो घंटे की लंबी चर्च सभा! पूरा माहौल धार्मिक, भजन-कीर्तन, प्रवचन, और ईस्ट को सबसे आगे बैठाया गया। न बीयर, न मस्ती – सिर्फ धार्मिक गीत, उपदेश और शांति! मो ने न तो कभी पत्रिकाओं का ज़िक्र किया, न ईस्ट की शरारत पर कोई बात छेड़ी। बस, शांत मुस्कान के साथ विदा किया।

कम्युनिटी की राय – बदले का असली स्वाद

रेडिट पर इस किस्से ने धूम मचा दी। एक पाठक ने बड़े मज़े से लिखा, “भाई, ये तो प्रो-लेवल रिवेंज है! इतनी बारीकी से प्लान किया, जैसे कोई शतरंज का माहिर खिलाड़ी।” एक अन्य ने कहा, “मो ने तो शरारत का जवाब सज्जनता से देकर ईस्ट की बोलती बंद कर दी।” वहीं एक ने मज़ाकिया अंदाज़ में जोड़ा, “ईस्ट अब दोबारा कभी मो के साथ मज़ाक करने से पहले सौ बार सोचेगा।”

कुछ लोगों ने तो मो की पत्नी को भी श्रेय दिया – “पक्का ये आइडिया घरवाली का था! सोचिए, जब उसने बैग से पत्रिकाएँ निकाली होंगी, तब उसके चेहरे पर कैसी मुस्कान रही होगी!” वहीं एक पाठक ने लिखा, “यह बदला तो आत्मा को झकझोर देने वाला है – ऐसा भजन-कीर्तन, जिसकी सज़ा ईस्ट जीवन भर याद रखेगा!”

मसाला, सीख और देसी तड़का

इस कहानी में भारतीय दफ्तरों की झलक साफ दिखती है – जहाँ शरारतें होती हैं, तो जवाब भी बड़े सलीके से दिया जाता है। यहाँ ‘जैसे को तैसा’ का असली मतलब है – बिना कोई शोर-शराबा किए, अपने अंदाज़ में बदला लेना। मो ने झगड़ा नहीं किया, न ही शिकायत, बस इतनी सौम्यता से शरारती ईस्ट को ऐसा सबक सिखाया कि अब वो भी कहता है, “बाप रे! आगे से मो से मज़ाक नहीं!”

वैसे, हमारे यहाँ भी कई बार ऑफिस में कोई चुपचाप चाय में नमक डाल देता है, या किसी के बैग में प्याज छुपा देता है – लेकिन मो जैसा ‘हाई-लेवल’ बदला तो कम ही देखने को मिलता है।

निष्कर्ष – आपके ऑफिस में भी है कोई ‘मो’?

तो दोस्तो, इस किस्से से एक बात तो साफ है – बदला लेना हो, तो मो जैसी शांति से लो! न गुस्सा, न झगड़ा – बस, इतनी सौम्यता कि सामने वाला खुद ही हार मान ले। शरारतें होनी चाहिए, लेकिन कभी-कभी सज्जनता की भी जीत होती है।

आपके ऑफिस में भी कोई ऐसा ‘मो’ या ‘ईस्ट’ है? या कभी किसी ने आपको ऐसे ही सांस्कृतिक तरीके से सबक सिखाया है? अपने मजेदार अनुभव कमेंट में जरूर शेयर करें।

और हाँ, अगली बार किसी के बैग में कुछ डालने से पहले… दो बार सोच लीजिएगा!


मूल रेडिट पोस्ट: Hide something in my backpack, will you? Alright then.