जब शांति की तलाश ने मचाया हंगामा: पड़ोसी की चाल उल्टी पड़ गई!
भारत में पड़ोसियों के झगड़े तो आम हैं—कभी टीवी की आवाज़, कभी बच्चों की शरारत, तो कभी छत पर होने वाली पार्टियाँ। लेकिन सोचिए, अगर किसी ने दिन के वक्त होने वाली सामान्य हलचल को भी मुद्दा बना लिया तो? आज की कहानी इसी तरह की एक ‘अनोखी शिकायत’ और उसके जबरदस्त पलटवार की है, जिसमें शांति की तलाश में लगी एक महिला खुद शोरगुल का कारण बन गई। ये किस्सा है न्यूयॉर्क जैसे शहर का, पर इसमें छुपी सीख और मज़ा तो किसी भी भारतीय मोहल्ले से कम नहीं!
पड़ोसी की शिकायतों का अंतहीन सिलसिला
एक छोटे से अपार्टमेंट बिल्डिंग की मैनेजर बताती हैं कि उनकी एक किराएदार, जिसे आप ‘शिकायत काकी’ कह सकते हैं, हर रोज़ ऊपर के फ्लैट वालों की शिकायत करती थी। ऊपर एक नवविवाहित जोड़ा और उसका भाई रहते थे—न कोई डीजे पार्टी, न बर्थडे धमाल, फिर भी हर दिन “बहुत शोर है” की फरियाद। कभी पुलिस बुलाना, कभी बिल्डिंग ऑफिस में फोन करना, तो कभी शहर की नगरपालिका को शिकायत भेज देना—शिकायत काकी ने कोई कसर नहीं छोड़ी!
मजेदार बात तो ये थी कि कई बार जब शिकायत की गई, ऊपर वाले घर में कोई था ही नहीं! एक बार तो वे विदेश घूमने गए थे, और फिर भी काकी का कहना था कि ऊपर “हलचल” है। ऐसा लग रहा था जैसे उनका कान, दीवारों के पार भी सब सुन लेता है।
दांव उल्टा पड़ गया: शिकायत से मिला ‘शोर का बम’
अब सोचिए, जब दिन के 9 से 5 बजे तक की साधारण आवाजें भी उन्हें गुस्सा दिलाती थीं, तो आगे क्या हुआ होगा? एक दिन काकी ने बिल्डिंग के सरकारी रिकॉर्ड टटोल डाले और पाया कि ऊपर वाला फ्लैट अभी भी “वन-बेडरूम” दर्ज है, जबकि वहां दो कमरे बने हैं। तुरंत उन्होंने धमकी दी—“इन्हें गैरकानूनी कब्जे के लिए निकालो!” जब मैनेजर ने इनकार किया, तो सीधा नगरपालिका में शिकायत ठोक दी।
यह चाल उनके लिए वरदान बनने की बजाय अभिशाप बन गई। नगरपालिका ने बिल्डिंग मालिक को दो रास्ते दिए—या तो फ्लैट फिर से एक कमरा बनाओ या दो कमरों का कायदे से नवीनीकरण करवाओ। मालिक ने दूसरा रास्ता चुना—पूरे फ्लैट का जीर्णोद्धार। ऊपर के किराएदारों को मुफ्त में दूसरी जगह भेजा गया, और कंस्ट्रक्शन सुबह 8 से शाम 4 बजे तक लगातार चलता रहा। अब सोचिए, दिन के शोर से परेशान काकी को लगातार पाँच हफ्ते हथौड़ों, ड्रिल मशीन और मज़दूरों की धमक सुननी पड़ी!
‘करनी का फल’—बच्चे की किलकारियों के साथ नया अध्याय
जैसे हिंदी कहावत है—“जैसा बोओगे, वैसा काटोगे!” काकी को लगा था कि उनकी शिकायत से उन्हें शांति मिलेगी, लेकिन मिला क्या? फ्लैट पूरी तरह से नया बन गया—दीवारें, तारें, सब कुछ आधुनिक। ऊपर वाला जोड़ा तो वैसे ही निकलने वाला था, लेकिन अब नया और सुरक्षित घर देख वे वापस आ गए। उनका भाई नहीं लौटा, क्योंकि अब दूसरा कमरा उनके आने वाले बच्चे की नर्सरी बनने वाला था!
अब काकी को न सिर्फ ऊपर की आवाजें सहनी पड़ती हैं, बल्कि एक नवजात शिशु की किलकारियाँ और भागते-फिरते नन्हें कदमों की धमक भी रोज़ सुनाई देती है। यानी, जिस शांति की तलाश में उन्होंने पूरा हंगामा खड़ा किया, वही हंगामा उनकी किस्मत में बढ़-चढ़ कर लौट आया!
समुदाय की राय: ‘कर्म’ और ‘मालिक की चालाकी’ का मेल
रेडिट जैसे ऑनलाइन मंच पर, इस कहानी ने लोगों को खूब गुदगुदाया। एक कमेंट में किसी ने तंज कसा—“न्यूयॉर्क जैसे शोर-शराबे वाले शहर में ‘शांत’ अपार्टमेंट ढूंढना वैसे ही है जैसे दिल्ली में ठंडी हवा ढूंढना!” एक अन्य ने बिल्डिंग मालिक की रणनीति की तारीफ की कि शिकायतकर्ता को सबक सिखाने के लिए सबसे लंबा और शोरगुल वाला तरीका अपनाया गया। खुद कहानी लिखने वाले ने भी माना—“दीवार तोड़कर एक हफ्ते में काम पूरा हो सकता था, लेकिन हमने पूरा नवीनीकरण करवाया ताकि नियमों का पालन भी हो और शिकायतकर्ता को सबक भी।”
कुछ लोगों ने यह भी कहा कि पुरानी बिल्डिंग में ‘सीसा’ (lead paint) होना आम बात है और मालिक ने समय रहते ठीक भी करा दिया। यानी, मालिक की जिम्मेदारी भी निभ गई और शिकायतकर्ता को ‘कर्म का फल’ भी मिल गया।
निष्कर्ष: पड़ोसी से पहले, खुद से रहें सावधान!
पड़ोस में रहना मतलब एक-दूसरे की छोटी-मोटी बातों को नजरअंदाज करना और मिलजुलकर रहना। अगर हर छोटी आवाज़ पर हंगामा मचाया जाए, तो कभी-कभी हालात ऐसे उल्टे पड़ सकते हैं कि “शांति” की जगह “शोर की बरसात” हो जाए! अगली बार अगर आपके पड़ोसी की कोई छोटी सी गलती आपको परेशान करे, तो सोचिए कहीं आप भी शिकायत काकी की राह पर तो नहीं चल रहे?
आपके मोहल्ले में भी कभी किसी ने इस तरह की शिकायत की है या आपने झेला है ऐसा कोई पड़ोसी? अपने अनुभव हमें कमेंट में ज़रूर लिखें, और ये कहानी अपने दोस्तों को शेयर करें—क्या पता, वे भी ‘शोर’ के नए मायने समझ जाएं!
मूल रेडिट पोस्ट: Her neighbors were too noisy!