जब रिसर्च चुराने वाले प्रोफेसर को मिली 'घर के बाहर की सजा' – एक अनोखी छात्र प्रतिशोध कथा
क्या आपने कभी सोचा है कि किसी ने आपकी मेहनत का सारा श्रेय खुद ले लिया हो? और अगर वो कोई बड़ा अफसर या 'गुरुजन' हो, तो? ऐसे में आमतौर पर लोग चुप रह जाते हैं, पर आज की कहानी का नायक कुछ अलग ही निकला। एक अमेरिकी विश्वविद्यालय के छात्र ने अपने प्रोफेसर की हरकतों का ऐसा जवाब दिया कि मोहल्ला ही नहीं, सोशल मीडिया भी वाह-वाह कर उठा!
गुरुजी के छल-बल और छात्र की मजबूरी
कहानी है ओकलाहोमा यूनिवर्सिटी के एक होनहार विद्यार्थी की, जो पीएचडी करने आया था – वह भी बड़े जोश और सपनों के साथ। लेकिन उसके गाइड साहब ने तो जैसे उसे 'मुफ्त का मजदूर' समझ लिया। हर बार डिग्री मिलने की तारीख आगे बढ़ा देते, "थोड़ा और काम कर लो, अभी तैयार नहीं हो" – ये बहाने आम थे। लेकिन असल माजरा तब खुला, जब छात्र को पता चला कि उसके गाइड साहब उसकी रिसर्च को खुद के नाम से छपवाने की फिराक में हैं।
यहाँ किसी हिंदी फिल्म के 'बदमाश मास्टरजी' की याद आ सकती है, जो बच्चों की कॉपी से सवाल चुराकर अपने बेटे को टॉप करवा देता है। पर यहाँ मामला और भी बड़ा था – अंतरराष्ट्रीय स्तर की रिसर्च चोरी!
जब छात्र ने अपनाया 'जागरूकता अभियान'
छात्र ने शालीनता से ईमेल के ज़रिए अपने गाइड को बताया कि ये रिसर्च पूरी तरह उसकी है, और बिना इजाज़त कोई पब्लिकेशन नहीं होगी। गाइड साहब आगबबूला हो गए। उल्टा छात्र के खिलाफ विश्वविद्यालय के 'रिसर्च इंटेग्रिटी' दफ्तर में शिकायत कर दी।
लेकिन छात्र भी कम नहीं था। उसने विश्वविद्यालय की नीति पढ़ी, गाइड और अफसरों की चालें समझीं और अपने हक के लिए डट गया। इस बीच, गाइड साहब ने मानसिक दबाव डालना शुरू कर दिया – रोज़ छात्र के घर के सामने से गुजरना, घूरना, ताने कसना। अब तो बात घर की चौखट तक आ गई थी!
इधर एक हंसी मजाकिया कमेंट में किसी ने लिखा, "अरे, ये तो वही गुरुजी निकले, जो हर साल गणित का सवाल बदलकर भी बच्चों को वही पढ़ाते हैं!"
'सत्य का बोर्ड' – मोहल्ले का चर्चा का विषय
और फिर आया वो पल, जब छात्र ने अपनी 'प्यारी सी बदला योजना' बनाई – वॉलमार्ट से पाँच डॉलर का बोर्ड खरीदा और घर के बाहर लगा दिया: "[प्रोफेसर का नाम] रिसर्च चुराते हैं!"
अब तो जैसे गाइड साहब की नींद ही उड़ गई। रोज़ आकर बोर्ड की फोटो खींचना, बीवी-बच्चों को दिखाना, गुस्से में चिल्लाना – ये सब मोहल्ले के लिए तमाशा बन गया। मज़े की बात, छात्र का घर स्कूल के सामने था, जहाँ हर रोज़ सैकड़ों माता-पिता गाड़ियों में इंतजार करते थे – और बोर्ड पढ़कर मुस्कराते थे।
एक कमेंट ने इसे 'न्याय का लोकल बोर्ड' नाम दिया। किसी और ने लिखा, "हमारे गाँव में तो लोग दीवारों पर 'यहाँ पेशाब करना मना है' लिखकर रोकते हैं, यहाँ छात्र ने रिसर्च चोरी रोकने का बोर्ड लगा दिया!"
विश्वविद्यालय, पुलिस और 'असली आज़ादी'
गाइड और विभाग अध्यक्ष ने मिलकर छात्र को डराने की हर कोशिश की – कभी पुलिस बुलवाई, कभी धमकियाँ दीं, लेकिन छात्र ने संविधान का हवाला देकर सबको टका सा जवाब दे दिया। एक कमेंट में किसी ने चुटकी ली, "अरे साहब! बोर्ड लगाने से अगर पुलिस आ जाए, तो अपने यहाँ तो हर तीसरे दिन पंचायत लगती!"
छात्र ने न सिर्फ़ अपने हक की रक्षा की, बल्कि पूरे सिस्टम की पोल खोल दी। बहुत से पाठकों ने लिखा – "ऐसा अन्याय भारत के कई विश्वविद्यालयों में भी होता है, पर कोई आवाज़ नहीं उठाता।" किसी ने तो अपने अनुभव साझा किए – "मेरे दोस्त की पीएचडी तो इसलिए अटक गई क्योंकि उसकी रिसर्च बड़े प्रोफेसर के विचार से मेल नहीं खाती थी!"
अंत में – आवाज़ उठाओ, वरना चुप्पी ही अपराध है
इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि चाहे कितना भी बड़ा कोई हो, अगर आप अपने अधिकार के लिए खड़े रहेंगे, तो बदलाव जरूर आएगा। आज वो छात्र तो दूसरी नौकरी में खुश है, लेकिन उसकी छोटी सी 'बोर्ड प्रतिशोध' ने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया।
जैसा एक पाठक ने लिखा – "सही के लिए लड़ो, चाहे सामने वाला कितना भी बड़ा अधिकारी क्यों न हो।" और क्या पता, आपकी आवाज़ किसी और को भी हिम्मत दे दे!
क्या आपके साथ या आपके जाननेवालों के साथ कभी ऐसा हुआ है? कमेंट में जरूर बताएं – और हाँ, अगली बार कोई आपका श्रेय चुराने आए, तो अपनी 'तख्ती' तैयार रखना न भूलें!