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जब रेस्तरां के मैनेजर ने 'चुप रहो और जैसा कहूं वैसा करो' कहा... फिर जो हुआ वो यादगार बन गया!

किसी भी छोटे शहर के परिवारिक रेस्तरां में काम करना अपने आप में एक अलग ही अनुभव होता है। वहां की "हम सब एक परिवार हैं" वाली भावना सुनने में तो बड़ी प्यारी लगती है, लेकिन जब सच्चाई सामने आती है, तो कई बार लगता है कि ये परिवार नहीं बल्कि किसी बॉलीवुड फिल्म का नाटकीय ससुराल है! आज मैं आपको एक ऐसी ही मजेदार और गुदगुदाने वाली घटना सुनाने जा रहा हूँ, जिसमें मैनेजर की सख्ती, असिस्टेंट मैनेजर की मनमानी और कर्मचारियों की जुगाड़ू सोच – सब कुछ भरपूर है।

रेस्तरां का 'परिवार' और कभी ना ख़त्म होने वाली मिर्च-मसाला

यह किस्सा एक टूरिस्ट टाउन के फेमिली रेस्टोरेंट का है। वहाँ के स्टाफ की बात ही निराली थी – जैसे हर हिंदी सीरियल में घर के सदस्य अलग-अलग रंग में रंगे होते हैं! मैनेजर 'माइक' – करीब 40 साल का, तेरह साल से वहीं जमा हुआ, हमेशा गंभीर और छोटे जवाब देने वाला। उसकी असिस्टेंट 'केल्सी' – नौ साल से काम कर रही, लेकिन उसकी आदतें ऐसी कि बाकी सर्वर्स का जीना हराम। खुद दिनभर सिगरेट पीती और दूसरों को ब्रेक लेने तक नहीं देती। एकदम जैसे किसी ऑफिस में "ये मेरी कुर्सी है" वाली बुआजी!

'सॉस' की शादी – यानी 'मैरिंग' का देसी संस्करण

अब असली मसालेदार बात आती है – 'मैरिंग बोतल्स'। हमारे यहाँ अक्सर बची हुई चटनी या सॉस को एक डिब्बे से दूसरे में डाल देते हैं – ताकि बरबादी कम हो। अंग्रेजी में इसे 'marrying' कहते हैं। Reddit पर एक यूज़र ने पूछा भी, "ये marrying बोतल्स क्या है?" तो दूसरे ने समझाया – जैसे दो आधी खाली बोतलों को एक में डालना, वैसा ही।

लेकिन केल्सी को ये सब पसंद नहीं था। उसने सबके सामने डांट दिया, "ये हेल्थ कोड का उल्लंघन है, अब से हर बार छोटी-छोटी कटोरियों (ramekin) में सॉस भरो।" अब सोचिए, हमारे यहाँ तो शादी-ब्याह में भी 4-5 सॉस एक कटोरी में डाल देते हैं, लेकिन यहाँ ये सख्ती! Reddit के एक कमेंट में किसी ने मज़ाक में लिखा, "रमेकिन नाम सुन-सुनकर अब इस शब्द से ही चिढ़ हो गई है!"

मैनेजर की तानाशाही और कर्मचारी की जुगाड़ू बगावत

अगले दिन जब एक और कर्मचारी बोतलें 'मैरी' कर रहा था, तो पोस्ट लिखने वाले ने मैनेजर से पूछा – "मुझे तो मना किया गया था?" मैनेजर माइक बोला – "तुम्हें जैसा कहा गया है, वैसा करो। बाकी क्या कर रहे हैं उससे मतलब मत रखो।" यानी एकदम देसी दफ्तरों वाली 'चुप रहो और जो कहा जाए वही करो' वाली तानाशाही!

लेकिन असली मज़ा तो इसके बाद आया। कर्मचारी ने उस रात सबको बोल दिया – "जो भी सॉस है, सब ले आओ!" और फिर सब सॉस, अचार, मस्टर्ड, मेयो – 100 से ज्यादा कटोरियों में डालकर एक बड़ी बाल्टी में भर दी। सब पर एक प्यारा सा नोट – "जैसा कहा गया, वैसा किया।" अगली सुबह इन कटोरियों की हालत देख मैनेजर साहब का पारा सातवें आसमान पर! कुछ दिन बाद पता चला, सारी सॉस खराब हो गई और मैनेजर चाहकर भी कुछ नहीं कर सका। आखिरकार कर्मचारी ने नौकरी छोड़ दी।

रेस्तरां की दुनिया – हकीकत, हंसी और हताशा

रेडिट कम्युनिटी के कमेंट्स भी कम मजेदार नहीं थे। एक यूज़र ने लिखा, "रेस्तरां में जितनी राजनीति होती है, उतनी शायद हमारे मोहल्ले के चुनाव में भी नहीं!" किसी ने कटोरी (ramekin) को लेकर कहा, "सॉस वाली ये कटोरी जब भी कोई ग्राहक मांगे, तो शब्द सुनकर ही गुस्सा आ जाता है।" एक ने तो मज़ाक में कह दिया, "मैं तो अब तक समझता था रमेकिन कोई पास्ता की किस्म है!"

स्वास्थ्य कोड को लेकर भी खूब चर्चा हुई। किसी ने कहा, "बोतलें 'मैरी' करना वैसे तो गलत है, लेकिन अगर रेस्तरां में सॉस पानी की तरह बहती है, तो कौन ध्यान देता है!" एक और यूज़र ने मज़ेदार किस्सा सुनाया – "एक बार केचप की बोतल फट गई, और ग्राहक पर ऐसे गिरा जैसे होली पर रंग डाला जाता है!"

निष्कर्ष – देसी जुगाड़ बनाम अफसरशाही

कुल मिलाकर, चाहे भारत हो या विदेश, काम की जगह पर दो बातें हमेशा रहती हैं – अफसरशाही और जुगाड़। कभी-कभी बेमतलब के नियम लागू होते हैं और कर्मचारियों को बस आदेश मानना पड़ता है। लेकिन जब सब्र का बांध टूटता है, तो ऐसी कहानियां बनती हैं, जो सालों बाद भी याद आती हैं और हंसी ला देती हैं।

क्या आपके साथ भी कभी किसी बॉस ने ऐसा व्यवहार किया है? या आप खुद किसी जुगाड़ू कर्मचारी रहे हैं? नीचे कमेंट में जरूर बताइए। और हाँ, अगली बार जब रेस्तरां में जाएं, तो सॉस की कटोरी मांगने से पहले दो बार सोच लें – कहीं कोई कर्मचारी फिर से जुगाड़ पर ना उतर आए!


मूल रेडिट पोस्ट: Tell me to shut up and do as im told? Mkay