जब रेस्टोरेंट के 'जुगाड़ू' कर्मचारी को मिली उसकी ही गंदगी का स्वाद
रेस्तरां की दुनिया में हर दिन कोई न कोई नया किस्सा बनता है। कभी ग्राहक की हरकतें तो कभी सहकर्मियों के बीच की तकरार – हर रोज़ कुछ दिलचस्प सुनने को मिलता है। आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिसमें एक कर्मचारी ने अपने जुगाड़ू, गंदगी पसंद सहकर्मी को, उसी की करतूत का स्वाद चखाया। विश्वास मानिए, यह किस्सा पढ़कर आप हँसी नहीं रोक पाएंगे!
गंदगी का बादशाह: ऐसा सहकर्मी हर जगह!
हमारे देश में भी आपने ऐसे लोग देखे होंगे जो खुद को बहुत अलग समझते हैं – जैसे कॉलेज के वो लड़के जो खुद को 'बाबा' या 'फकीर' बता कर घूमते हैं, बाल बिखरे, पुराने कपड़े, और हर समय अपने ही स्वैग में मस्त। रेस्टोरेंट में काम करने वाले इस 'हिप्पी' सहकर्मी का भी कुछ ऐसा ही हाल था। पुराने जमाने के 'Grateful Dead' बैंड का स्वेटर, पैबंद लगी पतलून और नाम भी ऐसा कि खुद ही बना लिया – जैसे मोहल्ले के छोरे अपने गैंग का नाम रख लेते हैं। बाल तो वैसे ही उड़ गए थे, लेकिन स्वैग कम नहीं हुआ।
सहकर्मी (जो आगे चलकर बदला लेता है) रेस्टोरेंट के 'फ्रंट ऑफ हाउस' यानी ग्राहकों से मिलने-जुलने वाले हिस्से में था, जबकि ये जुगाड़ू भाई पीछे 'बैक ऑफ हाउस' में। दोनों के बीच की अनबन कुछ वैसे ही थी जैसे ऑफिस में चाय वाले और अकाउंटेंट के बीच हो जाती है।
गंदगी की हद: तंबाकू, सिगरेट और स्प्राइट की बोतल!
अब आते हैं असली मसले पर। साहब का शौक था तंबाकू थूकना और सिगरेट के टुकड़े जमा करना। वो भी किसी और जगह नहीं, बल्कि एक स्प्राइट की प्लास्टिक बोतल में, जिसमें थोड़ा सा मीठा पेय रहता था और दिन के अंत तक उसमें तंबाकू की पिचकारी और सिगरेट के टुकड़े तैरते रहते। सोचिए, कोई आपके ऑफिस की अलमारी में ऐसी बोतल रख दे – क्या हाल होगा!
एक दिन ये 'हिप्पी' अपने वैसे ही गंदे दोस्तों को रेस्टोरेंट के बाहर ले आया। सबने मिलकर ऐसा कचरा मचाया कि सफाई वाले की भी आत्मा काँप जाए। और तो और, खाने के बाद न टिप छोड़ी, न बोतल उठाई – स्प्राइट की वही गंदी बोतल टेबल पर छोड़ दी।
बदले की पटकथा: "जैसी करनी, वैसी भरनी"
अब यहाँ से कहानी में मज़ा आता है। जिसने सफाई करनी थी (यानि हमारा नायक), उसकी आँखों में आग तो थी ही, दिमाग भी चल पड़ा। हमारे यहाँ एक कहावत है – "जैसा बोओगे, वैसा काटोगे!" बस, इसी सोच के साथ उसने वो गंदी 'स्प्राइट' बोतल उठाई और सीधा उस हिप्पी के 'Grateful Dead' स्वेटर की जेब में सारा घोल उँड़ेल दिया।
अब सोचिए, जिस तरह से बॉलीवुड में विलेन को उसकी ही चाल में फँसते देख दर्शक सीट से उछल पड़ते हैं, वैसे ही इस कर्मचारी ने मन ही मन ताली बजाई होगी। जब हिप्पी भाई स्वेटर पहनने आए और जेब में हाथ डाला – उनका चेहरा देखने लायक रहा होगा!
चर्चा-ए-कम्युनिटी: क्या सही, क्या गलत?
रेडिट पर इस किस्से को पढ़ने वालों की अलग-अलग राय रही। एक पाठक ने कहा, "ये बदला कम, नफरत ज़्यादा लगती है!" – जैसे हमारे यहाँ गली के बुज़ुर्ग कह देते हैं, "बेटा, इतना कड़वा दिल मत रखो!" वहीं कुछ लोगों को लगा कि असली वजह थी टिप न देना और गंदगी छोड़ देना। एक पाठक ने सही पकड़ा – "सजा तो इस बात की थी कि खुद कर्मचारी होते हुए भी रिस्पेक्ट नहीं दिखाई।"
किसी ने पूछा, "FOH और BOH क्या होता है?" तब लेखक ने बड़े ही प्यार से समझाया – "रेस्टोरेंट की भाषा में 'फ्रंट ऑफ हाउस' यानी ग्राहक सेवा वाले और 'बैक ऑफ हाउस' यानी किचन या स्टोर वाले।" जैसे हमारे यहाँ होटल में 'काउंटर' और 'रसोई' का फर्क बताया जाता है।
एक और दिलचस्प कमेंट आया – "ड्रेनबो क्या होता है?" इसका जवाब एक पाठक ने दिया, "ऐसा हिप्पी जो देखने में रंगीन लगता है, लेकिन असल में सबका मूड खराब कर देता है।" हमारे मोहल्ले के 'बाबा' टाइप लोगों की याद आ गई, जो बाहर से बड़े आध्यात्मिक दिखते हैं, पर गली में कचरा फैला जाते हैं।
अंत में: छोटी-सी सजा, बड़ी सीख
कहानी भले ही छोटी बदले की है, लेकिन सीख बड़ी है – चाहे ऑफिस हो या रेस्टोरेंट, दूसरों की मेहनत का सम्मान करें। टिप देना, सफाई रखना – ये छोटी बातें ही असल में बड़े फर्क लाती हैं। और हाँ, कभी-कभी किसी की 'पेट्टी रिवेंज' भी बड़ी मज़ेदार लगती है, बशर्ते वो हद से न गुजरे।
तो दोस्तों, आपके ऑफिस या कॉलेज में भी कोई ऐसा 'हिप्पी टाइप' इंसान है? या आपने कभी किसी को इसी तरह छोटी-सी सजा दी हो? कमेंट में जरूर बताइए – आपकी कहानी अगली बार हमारे ब्लॉग की शान बन सकती है!
मूल रेडिट पोस्ट: If you’re gonna be gross…