जब रूममेट की 'जंगल कॉल' पर हुई असली जानवरों की दहाड़ – एक मज़ेदार बदला
दोस्तों, कभी-कभी जिंदगी हमें ऐसे हालात में डाल देती है जहाँ सब्र का बाँध भी टूट जाता है। वो भी तब, जब आप अपने ही घर में चैन से बैठ नहीं सकते, क्योंकि आपके रूममेट को अपनी 'रोमांटिक लाइफ' दिखाने का शौक है और वो भी पूरे मोहल्ले को!
सोचिए, आप पढ़ाई या आराम करने की कोशिश कर रहे हैं और बगल के कमरे से ऐसी आवाज़ें आ रही हैं कि लगता है जैसे डिस्कवरी चैनल का 'मेटिंग सीजन' लाइव चल रहा हो। और ऊपर से, दीवारें हैं पतली – मतलब प्राइवेसी तो दूर की बात, अब तो कानों को भी दुखाने लगीं।
जब सब्र का बाँध टूटा, आया 'जानवरों का मेला'
अब इस कहानी की नायिका (रेडिट यूज़र u/sassypaprika) की भी यही हालत थी – हफ्तों से रूममेट के शोरगुल ने उसके दिमाग का दही बना दिया था। कभी इग्नोर करने की कोशिश, कभी हेडफोन लगा लिए, पर आह! वो आवाज़ें तो जैसे दीवारें चीरकर बॉम्बे लोकल के अनाउंसमेंट की तरह गूंजती रहीं।
एक रात, जब उसके कुछ दोस्त घर आए हुए थे, रूममेट ने फिर से वही 'जंगल का माहौल' बना दिया। सब बैठे थे, पर माहौल में ऐसी अजीब सी चुप्पी कि कोई चाय का कप भी ज़ोर से रख देता तो वो भी गुनाह लगता। तभी, अचानक सबका धैर्य जवाब दे गया। और हुआ कुछ ऐसा, जो शायद 'तारक मेहता' के भिड़े साहब भी न करें – सबने मिलकर कुत्ते की तरह हाउलिंग, तोते की चीख, बंदर की आवाज़ें, मतलब पूरा चिड़ियाघर खोल दिया!
मज़े की बात, जैसे ही ये जानवरों का ऑर्केस्ट्रा शुरू हुआ, रूममेट की सारी 'फिल्मी' आवाज़ें एकदम बंद!
इंटरनेट वालों की राय – "कभी-कभी थोड़ा पागलपन ज़रूरी है!"
इस किस्से पर रेडिट कम्युनिटी फूट-फूटकर हँस पड़ी। एक यूज़र ने लिखा, "भैया, दीवार पर ऐसे थपकी दो जैसे कोई बर्तनवाला आया हो – और बोलो, 'अब बस करो, मैं तो आ गया!'"
एक और मज़ेदार कमेंट – "अरे, उसके बाहर आने पर दोस्त लाइन में खड़े हो जाएँ, हाथ में स्कोर कार्ड लेकर – 10 में से 7, आवाज़ तेज़, पर टाइमिंग कमजोर!"
कुछ लोगों ने कहा – "इतना मत सोचो, जिसने शुरुआत की, उसे फिनिश भी मिलना चाहिए।"
एक कमेंट था, "मेरे हॉस्टल में भी एक कपल था, जिनका नाम ही पड़ गया था 'पॉर्नो' – एक दिन सबने मिलकर खिड़की से तालियाँ बजाईं, सीटी मारी, फिर कभी उनकी आवाज़ नहीं आई।"
एक अनुभवी सदस्य ने सलाह दी – "रूममेट को सीधा बोलो कि तुम्हारे दोस्तों के सामने ये सब सुनना कितना शर्मनाक है। मज़ाक से बात शुरू करने से बात की गंभीरता महसूस नहीं होती।"
वहीं कुछ ने कहा, "कभी-कभी ऐसे लोगों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना ज़रूरी है – तभी समझ आता है।"
क्या सच में ये सही तरीका था? – 'गुस्से का इलाज हँसी से?'
अब सवाल उठता है – क्या जानवरों की आवाज़ें निकालना सही था? या पहले सीधे बात करनी चाहिए थी?
हमारे देश में भी डबल-शेयरिंग या पीजी जैसी जगहों पर ऐसी दिक्कतें आम हैं – कोई तेज़ गाने सुनता है, कोई फोन पर घंटों बात करता है, कोई रूममेट की प्राइवेसी की कदर नहीं करता। ऐसे में कभी-कभी सीधी बात करना सबसे अच्छा रहता है, पर जब पानी सिर से ऊपर चला जाए, तो थोड़ा 'मस्तीभरा बदला' भी जायज़ है।
जैसे कि एक यूज़र ने कहा, "कभी-कभी पागलपन ही पागलपन का इलाज है – और लगता है, तुम अपनी रूममेट से ज़्यादा पगली साबित हुईं!"
कई लोगों ने यह भी माना कि अगर सीधी बात पहले हो जाती तो शायद इतनी नौबत ही नहीं आती, लेकिन सबने एक राय रखी – ऐसे 'लाउड' लोगों को, जो दूसरों की प्राइवेसी का ध्यान नहीं रखते, कभी-कभी उन्हीं का अंदाज़ दिखाना ज़रूरी है।
आपकी राय क्या है? – "जंगल में मोर नाचा, किसने देखा?"
कुल मिलाकर, ये कहानी बताती है कि कभी-कभी हल्के-फुल्के पागलपन और हंसी-मज़ाक से भी बड़े मुद्दों पर बात हो सकती है। अगली बार अगर आपके रूममेट की वजह से घर 'जंगल' बन जाए, तो आप क्या करेंगे – सीधी बात? या कोई मज़ेदार बदला?
नीचे कमेंट में ज़रूर बताइए – आपके साथ कुछ ऐसा हुआ है क्या? या आपके पास ऐसे ही कोई देसी जुगाड़ हैं, जिनसे रूममेट को सबक सिखाया जा सके?
आखिरकार, जिंदगी है झमेले की, और हर झमेला मांगता है थोड़ा हँसी का तड़का!
मूल रेडिट पोस्ट: Using Animal Sounds to Interrupt My Roommate's Hookup