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जब मेहमान ने होटल का कारपेट बदलवाने की ठान ली: एक हास्यास्पद फरमाइश की दास्तां

निराश होटल मेहमान हॉलवे के कालीन की ओर इशारा कर रही है, सुरक्षा समस्या को उजागर करते हुए।
रिसेप्शन पर एक तनावपूर्ण क्षण में, एक मेहमान हॉलवे के कालीन के बारे में अपनी चिंताओं को व्यक्त कर रही है, इसकी संभावित सुरक्षा खतरों पर जोर देते हुए। यह यथार्थवादी छवि स्थिति की नाटकीयता को दर्शाती है, जिससे उसकी शिकायत की तात्कालिकता का अंदाजा लगाना आसान हो जाता है।

होटलों में काम करने वाले कर्मचारियों की जिंदगी जितनी रंगीन लगती है, असल में उतनी ही रंगबिरंगी फरमाइशों से भरी रहती है। कभी किसी को कमरे की खिड़की से बाहर का नज़ारा पसंद नहीं आता, तो कोई तकिए की ऊँचाई को लेकर बहस छेड़ देता है। लेकिन आज की कहानी, जो एक अमेरिकी होटल की है, आपको हंसी के साथ-साथ सोचने पर मजबूर कर देगी कि आखिर लोग मांगने में कितनी दूर तक जा सकते हैं!

जब गेस्ट ने होटल के कारपेट से लड़ाई मोल ली

कहानी शुरू होती है होटल के फ्रंट डेस्क से, जहाँ लेखक (जिसे हम ‘रिसेप्शनिस्ट’ मान लें) रोज़ की तरह ड्यूटी पर था। तभी अचानक, एक ‘फुल करन पावर’ के साथ महिला गुस्से में फूली हुई रिसेप्शन पर आ धमकी। उसकी शिकायत कुछ ऐसी थी कि सुनकर बड़े-बड़े मैनेजर भी माथा पकड़ लें – “मुझे होटल की गली का कारपेट देखकर चक्कर आ गया! ये बहुत बड़ा सेफ्टी इश्यू है।”

अब भारतीय होटल में अकसर लोग टीवी के चैनल, पानी के स्वाद या रूम फ्रेशनर की खुशबू पर सवाल करते हैं, पर कारपेट के डिज़ाइन से चक्कर आना? ये तो वही बात हो गई, जैसे कोई रेलवे स्टेशन पर जाकर कहे – “भइया, प्लेटफॉर्म की टाइल्स बदल दो, आंखों को चुभ रही हैं!”

जनरल मैनेजर की ‘डेडपैन’ शैली और मेहमान का टशन

रिसेप्शनिस्ट ने बड़े अदब से पूछा – “क्या हुआ मैडम?” महिला ने ऐसे इशारा किया जैसे कारपेट ने उसकी इज्जत पर हमला कर दिया हो। उसने सीधा आरोप लगाया – “इस पैटर्न से मुझे चक्कर आ रहा है। और सुनिए, मैं 15 साल से OSHA (वहां की सरकारी सेफ्टी संस्था) में काम कर चुकी हूं, मुझे सेफ्टी वॉयलेशन पहचानने आते हैं!”

अब भारत में कोई खुद को ‘सरकारी अफसर’ बताकर धमकी देता है, तो होटल स्टाफ की सांस अटक जाती है। लेकिन उस होटल के जीएम (जनरल मैनेजर) बड़े शांत स्वभाव के थे। उन्होंने बगैर पलक झपकाए पूछ लिया – “मैडम, क्या आपको लगता है कि हम इस बिल्डिंग या कारपेट के डिज़ाइन को रोज़-रोज़ बदल सकते हैं? चाहें तो अभी के अभी उखड़वा दूं?”

इतना सुनते ही महिला का चेहरा देखना बनता था – जैसे अचानक बिजली चली गई हो। उसने झट से कहा, “मुझे आपसे ऊपर किसी से बात करनी है।” मैनेजर ने मुस्कराकर जवाब दिया, “मैडम, मैं ही सबसे ऊपर हूं, मैं GM हूं।” महिला गुस्से में बड़बड़ाती हुई चली गई, और जाते-जाते धमकी दी कि “OSHA में रिपोर्ट करूंगी!” फिर, आखिर में एक स्टार की ‘ग्रैंड’ रेटिंग छोड़ गई – वजह: कारपेट!

मेहमानों की फरमाइशें – कहाँ तक जायज, कहाँ से मज़ाक?

अब आप सोच रहे होंगे कि क्या वाकई लोग इतने अजीब हो सकते हैं? यकीन मानिए, Reddit के कमेंट्स पढ़कर तो लग रहा था जैसे सभी होटल वर्कर रोज़ ऐसी ‘फुल ड्रामा क्वीन’ डील करते हैं। एक कमेंट में किसी ने लिखा – “कुछ लोग तो मानते ही नहीं कि दुनिया उनकी मर्जी से नहीं चलती। किसी को कमरे का तापमान बदलवाना है, किसी को ब्रेड की खुशबू चुभ रही है, कोई कहता है साबुन में एलर्जी है, और सब कुछ बदलवाने की जिद ठान लेते हैं!”

एक अन्य यूज़र ने मजेदार किस्सा शेयर किया – “हमारे होटल में एक मेहमान ने रेनोवेशन के बाद पुराना फर्नीचर फिर से लगाने की डिमांड कर दी!” कोई कहता है, “मुझे पुराने बेड पर ही नींद आती है!” तो कोई होटल के विंडो ग्लास की मोटाई पर बहस करता है ताकि न्यू ईयर की आतिशबाज़ी की आवाज न आए!

एक ने तो फिरकी लेते हुए लिखा – “OSHA सिर्फ कर्मचारियों की सेफ्टी देखती है, कस्टमर की नहीं! मैडम चाहें तो कांटे पर बैठ जाएं!” (हंसिए मत, यह कमेंट हैं!)

कारपेट डिज़ाइन: सिर्फ सजावट या सेहत का सवाल?

वैसे तो होटल के कारपेट्स भारत में भी अकसर इतने रंगीन-भड़कीले होते हैं कि सिर घूम जाए – लगता है डिजाइनर ने ‘होश उड़ाने’ की कसम खाई हो! कुछ कमेंट्स में लोगों ने माना कि खास पैटर्न वाकई कुछ लोगों को चक्कर या सिरदर्द दे सकते हैं, पर इसका इलाज ये नहीं कि पूरी बिल्डिंग की सजावट आपके मुताबिक बदल दी जाए। एक सज्जन ने बढ़िया लिखा – “अगर अच्छा न लगे, अगली बार मत आइए, या फीडबैक कार्ड पर लिख दीजिए। होटल का घर, उनके नियम!”

कुछ ने तो होटल की ‘डेथ स्टेयर्स’ (सीढ़ियाँ जिनकी डिज़ाइन से गिरने का डर हो) की तस्वीरें भी शेयर कीं, जिनकी वजह से सचमुच दुर्घटना हो सकती है। भारत के कई पुराने होटलों में भी ऐसी सीढ़ियाँ या फर्श देखे होंगे, जहाँ सफेद-सफेद टाइल्स में किनारा ही नहीं दिखता – वहाँ सचमुच हादसा हो सकता है। लेकिन महज डिज़ाइन पसंद न आना, क्या ये शिकायत वाजिब है?

निष्कर्ष: होटल वाले भी इंसान हैं, जादूगर नहीं!

ये किस्सा हमें यही सिखाता है – चाहे भारत हो या विदेश, कुछ मेहमानों की फरमाइशें कभी खत्म नहीं होतीं। होटल स्टाफ दिन-रात सिर झुकाकर आपकी सेवा में लगे रहते हैं, पर हर छोटी-बड़ी शिकायत पर जादू की छड़ी घुमाना उनके बस में नहीं। कहीं न कहीं, हमें भी समझना होगा कि हर चीज़ हमारी मर्जी से नहीं चल सकती – थोड़ा सब्र और सलीका रखें तो होटलिंग अनुभव खुद-ब-खुद बेहतर हो जाएगा।

तो अगली बार जब आप होटल जाएँ, अगर कारपेट या पर्दे का रंग पसंद न आए, तो बस मुस्कुरा के कमरे में चले जाइए – क्या पता, रिसेप्शनिस्ट भी मन ही मन ‘पॉपकॉर्न’ लेकर आपके अगले डायलॉग का इंतजार कर रहा हो!

आपका क्या कहना है? क्या कभी आपको होटल में ऐसी अजीब फरमाइशें या घटनाएँ देखने-सुनने को मिली हैं? नीचे कमेंट में जरूर शेयर करें – और हाँ, होटल स्टाफ को धन्यवाद कहना न भूलें!


मूल रेडिट पोस्ट: Guest wants me to change the hall carpet