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जब मेहमान ने गले लगाने की ज़िद पकड़ ली: होटल रिसेप्शनिस्ट की अनोखी परेशानी

होटल की रिसेप्शन डेस्क पर काम करना कभी-कभी ऐसा महसूस करवाता है जैसे हर दिन एक नई कहानी गढ़ी जा रही हो। लोग आते हैं, मुस्कराते हैं, कुछ शिकायतें करते हैं, कुछ तारीफें—but कभी-कभार कोई ऐसी घटना घट जाती है कि दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं और दिमाग सुन्न पड़ जाता है। कुछ ऐसा ही अनुभव हमारे 22 वर्षीय मित्र के साथ हुआ, जब एक महिला मेहमान ने उनसे बार-बार गले लगाने की ज़िद पकड़ ली।

होटल की रिसेप्शन डेस्क: जहां हर दिन एक नया ड्रामा

सोचिए, आप अपने ऑफिस में हैं, फॉर्मल ड्रेस में, चेहरे पर प्रोफेशनल मुस्कान लिए। अचानक एक महिला, जो आपकी मां की उम्र की है, लिफ्ट से उतरती है और सीधे कहती है, "तुम तो बड़े प्यारे हो, क्या मैं तुम्हें गले लगा सकती हूँ?"
हमारे दोस्त ने विनम्रता से मना कर दिया, लेकिन मेहमान वहीं खड़ी रहीं, घूरती रहीं, और जाते-जाते बड़बड़ाती रहीं। पता नहीं, वो क्या कह रही थीं, लेकिन स्थिति बिल्कुल बॉलीवुड की किसी अजीब सीन जैसी हो गई थी—जहाँ हीरो-हीरोइन नहीं, बल्कि रिसेप्शनिस्ट और मेहमान के बीच 'नो मीन्स नो' की क्लासिक बहस चल रही थी!

जब 'ना' कहने पर भी न माने मेहमान

कुछ हफ्ते बाद वही महिला फिर से आईं, वही डायलॉग, वही गले लगाने की मांग। इस बार हमारे दोस्त ने फिर 'ना' कहा, पर इस बार मेहमान ने नया पैंतरा चला—"तुम ट्रांसफोबिक हो, होमोफोबिक हो, नफरत फैला रहे हो!"
अब भला, गले नहीं लगाने से कोई कैसे नफरत फैलाने लगा?
इसी पर एक पाठक ने बड़ा बढ़िया कमेंट किया—"किसी को बिना उसकी मर्ज़ी के छूना गलत है, चाहे उम्र या जेंडर कुछ भी हो।"
हमारी संस्कृति में भी यही सिखाया जाता है—"अतिथि देवो भव", पर अपनी सीमाएं (बाउंडaries) भी तो जरूरी हैं! एक और कमेंट में किसी ने मज़ाकिया अंदाज में कहा, "मैं तो बस वर्चुअल झप्पियां देता हूँ, असली वाली सबको नहीं!"
यानी, प्यार-सम्‍मान अपनी जगह, लेकिन पर्सनल स्पेस भी ज़रूरी है।

डर, असहजता और 'फाइट-ऑर-फ्लाइट' का खेल

ऐसी घटनाओं में शरीर और मन दोनों पर असर पड़ता है। हमारे दोस्त ने लिखा—"दिल की धड़कनें बढ़ गईं, सीना भारी हो गया, अजीब सा डर लगा।"
इसे अंग्रेजी में 'फाइट-फ्लाइट-फ्रीज़-फॉन' प्रतिक्रिया कहते हैं, यानी डर के वक्त शरीर या तो लड़ता है, या भागता है, या ठहर जाता है, या सामने वाले को खुश करने की कोशिश करता है।
यह उतना ही आम है जितना कि ऑफिस में चाय का ब्रेक लेना।
एक अनुभवी पाठक ने सलाह दी—"ऐसी सिचुएशन में खुद को दोषी मत समझो। ये बिलकुल नार्मल रिएक्शन है। ट्रेनिंग लो, सीनियर से बात करो, रिहर्सल करो कि ऐसे वक्त में क्या बोलोगे।"
एक और ने लिखा—"जेंडर से कोई फर्क नहीं पड़ता, ना कहने का हक सभी को है—चाहे लड़की हो या लड़का।"
यह बात भारतीय समाज में भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि अक्सर 'लड़के हो, क्या फर्क पड़ता है' जैसे तर्क सुने जाते हैं।

कंपनी की प्रतिक्रिया और सबक

खुशकिस्मती से, कंपनी ने मामले को गंभीरता से लिया और उस महिला को ब्लैकलिस्ट कर दिया। पर असली 'मसाला' तब आया जब महिला ने उलटा आरोप लगा दिया कि रिसेप्शनिस्ट ने ही उन्हें परेशान किया!
यहाँ एक पाठक ने सही लिखा—"कुछ लोग जब अपनी बात नहीं मनवा पाते, तो झूठे आरोप लगाने में भी पीछे नहीं रहते।"
ऐसी स्थिति में, कैमरे, डॉक्युमेंटेशन और साक्ष्य रखना बहुत जरूरी है।
एक और पाठक ने व्यंग्य किया, "अगर उन्हें प्यार चाहिए, तो किसी प्रोफेशनल थेरेपिस्ट से मिलें, रिसेप्शनिस्ट उनका इमोशनल सपोर्ट एनिमल नहीं है!"

भारतीय संदर्भ में: 'सीमा की लक्ष्मणरेखा'

हमारे यहाँ 'रिश्तों में मिठास' बहुत जरूरी मानी जाती है, लेकिन सीमाओं की लक्ष्मणरेखा भी उतनी ही अहम है।
चाहे ऑफिस हो, होटल हो या कोई सार्वजनिक जगह—'ना' का सम्मान करना सीखना चाहिए।
किसी का मन रखने के लिए खुद की असहजता को नजरअंदाज करना सही नहीं।
अगर आप भी ऐसी स्थिति में फँस जाएँ तो खुलकर कहिए—"माफ कीजिए, मैं असहज महसूस कर रहा हूँ," या "यह ऑफिस की नीति के खिलाफ है।"
आखिरकार, आत्मसम्मान सबसे ऊपर है।

निष्कर्ष: आपकी राय क्या है?

दोस्तों, क्या आपके साथ भी कभी किसी ने बिना पूछे आपको छूने की कोशिश की है? या किसी ने आपकी सीमाओं का उल्लंघन किया हो?
ऐसी स्थितियों से आप कैसे निपटते हैं?
कमेंट में बताइए, अपनी राय व अनुभव साझा कीजिए।
और हाँ, अगली बार किसी होटल या ऑफिस में जाएँ, तो रिसेप्शनिस्ट को मुस्कराकर "नमस्ते" कहिए—झप्पी की ज़रूरत नहीं, बस सम्मान दीजिए!


मूल रेडिट पोस्ट: Guest kept harassing me and asking for hugs. It really shook me up