जब मेहनत पर सवाल और बिखरी हुई बिस्किट्स को सलाम मिल गया!
ऑफिस लाइफ में कुछ बातें हमेशा गले नहीं उतरतीं—खासतौर पर जब आप पूरी लगन से कोई काम करें और उसका कोई नोटिस ही न ले! सोचिए, आपने आधा घंटा लगाकर स्नैक टेबल को ऐसे सजा दिया कि देख के हर किसी का मन खुश हो जाए, लेकिन बॉस आते ही कह दें, “कुछ ज़्यादा ही परफेक्ट नहीं हो गया?” और फिर कोई रॉबर्ट साहब आते हैं, बिस्किट्स को ऐसे फेंकते हैं जैसे बारात में फूल बरसाए जा रहे हों, और सबको बड़ा अच्छा लगता है! आखिर ऐसा क्यों होता है कि मेहनत करने वाले को उल्टी सलाह और बेतरतीबी वाले को ताली मिलती है?
मेहनत की कद्र या बेतरतीबी की छूट?—एक ऑफिस का सच
बात Reddit यूज़र u/Nammmieee की है, जिन्होंने दिल से स्नैक टेबल को सजाया—छोटे-छोटे प्याले, करीने से रखी नैपकिन, हर स्नैक के लिए प्यारे लेबल। यानी, एकदम शादी-ब्याह की शान! लेकिन उनके मैनेजर ने आते ही नाक सिकोड़कर कहा, “कुछ ज़्यादा ही ऑर्गनाइज़्ड लग रहा है।” उधर, रॉबर्ट भाई ने बिना किसी झंझट के बिस्किट्स का डिब्बा ऐसे पलटा कि कागज़ इधर-उधर, टुकड़े बिखरे, लेकिन किसी को कोई शिकायत नहीं।
भाई, ऐसा तो हमारे यहाँ भी होता है! याद कीजिए, जब घर की बहू फुल पर्फेक्शन के साथ खाना बनाती है, तो सासू माँ कहती हैं, “इतना सजा-धजा किसके लिए?” लेकिन जब देवर जी आते हैं और प्लेट में सब कुछ उल्टा-पुल्टा डाल लेते हैं, तो सब हँसते हैं—“देखो, कितना क्यूट है!” शायद यही है ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’ का ऑफिस वर्ज़न!
मीटिंग का असली मुद्दा: मेहनत पर सवाल क्यों?
इस किस्से पर Reddit पर भी खूब चर्चा हुई। एक कमेंट करने वाले (u/no-thanks-thot) ने चुटकी ली, “कहीं मीटिंग का एजेंडा ‘डिटेल्स पर ध्यान देना’ तो नहीं था?” सोचिए, जब बारीकी की बात चल रही हो और बारीकी दिखाने पर उल्टा सवाल हो जाए—यह तो वही बात हो गई, जैसे टीचर होमवर्क माँगे और कॉपी में सबसे सुंदर हैंडराइटिंग देखकर बोले, “इतनी मेहनत क्यों की?”
एक और कमेंट (u/Counsellorbouncer) ने सलाह दी, “ऐसे मौकों पर ज्यादा मेहनत मत करो, मीटिंग में मिलने वाला खाना तो वैसे भी सबको मुफ्त में चाहिए होता है!” यानी, जितनी मेहनत करो, उतना ही कम दिखता है। ये तो हमारे देश के सरकारी दफ्तरों जैसा हाल है—जहाँ फाइल पर धूल न हो तो अफसर को चैन नहीं आता!
मेहनती लोगों की कदर या बेतरतीब रॉबर्ट का जलवा?
एक पाठक (u/No-Koala1918) ने बड़ा अच्छा सवाल उठाया, “अगर यही टेबल मेहमानों के लिए होता, तो मैनेजर इतना तंज कसते?” हमारे यहाँ भी तो मेहमानों के लिए अलग प्लेट, चम्मच, और मिठाइयाँ होती हैं, लेकिन घर के लोगों के लिए “चलो, सब एक ही प्लेट में डाल लो!”—इतना फर्क क्यों?
और मज़ेदार बात—जैसे ही बिखरी बिस्किट्स की बात आई, एक कमेंट (u/SpecialFeeling9533) ने कहा, “रॉबर्ट जैसे लोगों की वजह से ही हम बढ़िया चीज़ें नहीं रख सकते!” सोचिए, अगर हर जगह रॉबर्ट सा व्यवहार हो, तो कोई भी चीज़ टिकेगी ही नहीं।
प्रबंधन की सोच और मेहनत का मोल
कुछ लोगों का मानना है (u/shoggyseldom), “अक्सर ज्यादा मेहनत करने वालों को ना तो इनाम मिलता है, उल्टा उन्हें ही टोक दिया जाता है।” ऑफिस में यह बात कितनी सच्ची लगती है—जो काम जितनी ईमानदारी से करो, उतनी ही ज्यादा उम्मीदें और शिकायतें!
एक और कमेंट (u/RoyallyOakie) ने बड़ा दिलचस्प तंज कसा, “मैनेजमेंट को वही व्यवस्था पसंद आती है जो उनकी कही बात से निकली हो, आपकी पहल उन्हें चुभ जाती है।” बिलकुल वैसे ही, जैसे दादी के हाथ की रेसिपी सबको पसंद है, लेकिन बहू ने नई स्टाइल से बना दिया तो सब नाक मुंह चढ़ाने लगते हैं!
आखिर में…
तो साहब, इस कहानी से यही सीख मिलती है कि ऑफिस, घर या जिंदगी—हर जगह मेहनत की कदर कम ही होती है, जब तक कोई बड़ी वजह न हो। कभी-कभी बिखरे बिस्किट्स की तरह बेतरतीबी को सब हँसी में टाल देते हैं, और जो पर्फेक्शन दिखाए, वो ‘ओवर’ कहलाता है।
आपके ऑफिस में भी ऐसे रॉबर्ट टाइप लोग हैं या आप खुद भी कभी ऐसी स्थिति में फँस गए हैं? नीचे कमेंट में अपना अनुभव जरूर शेयर करें। क्या आप भी मानते हैं कि मेहनत का मोल कम होता जा रहा है, या फिर सब कुछ नजरिए की बात है? चलिए, मिलकर इस बहस को आगे बढ़ाते हैं!
मूल रेडिट पोस्ट: So this happened