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जब मालिक ने तनख्वाह में चोरी की, कर्मचारी ने भी जले पर नमक छिड़क दिया!

कामकाजी दुनिया में अक्सर हम सुनते हैं कि मालिक कर्मचारियों का शोषण करते हैं। मगर क्या हो जब कर्मचारी भी मालिक को उसी की भाषा में जवाब दे दे? आज की कहानी में जानिए एक ऐसे कर्मचारी की दास्तान, जिसने अपने मालिक की चालाकी का जवाब बड़े ही मजेदार और जुगाड़ी अंदाज में दिया।

तनख्वाह की चोरी – मालिक का ‘हाथ की सफाई’

कहानी शुरू होती है एक डॉग बोर्डिंग केनल से। यहां पर कर्मचारी रोज़ 10.5 घंटे की शिफ्ट करते थे, लेकिन तनख्वाह सिर्फ 10 घंटे की मिलती थी। मालिक हर दिन 30 मिनट की लंच ब्रेक की तनख्वाह काट लेता, जबकि कर्मचारियों को लंच के दौरान भी फोन उठाने, ग्राहकों से बात करने और कुत्तों की देखभाल करनी पड़ती थी। यानी, छुट्टी नाम की चीज़ बस कागज़ पर थी, असल में सबको काम करना ही पड़ता था।

भारत में भी कई बार छोटे कारोबारियों के यहाँ ऐसा ही चलता है—काम तो कराओ, पर छुट्टी का पैसा मत दो! एक कमेंट में किसी ने बिल्कुल सही लिखा, "मालिक पैसा बचाने के चक्कर में लाखों की बचत कर रहा था, मगर कर्मचारियों का हक मारना तो अपराध है!" पश्चिमी देशों में इसे 'वेज़ थेफ्ट' यानी तनख्वाह की चोरी कहते हैं, और कई जगह ये गैरकानूनी है।

‘जैसी करनी वैसी भरनी’ – कर्मचारी की जुगाड़ी बदला

अब कहानी में ट्विस्ट तब आया जब वही कर्मचारी शिफ्ट मैनेजर बन गया। फिर क्या था—उसने भी अपनी चलती कर ली! उसने तय किया कि जब तक असली काम निपट गया है, बाकी समय आराम किया जाए। सुबह-सुबह कुत्तों की सफाई, खाना, दवाई सब हो जाता, फिर पूरा स्टाफ ब्रेक रूम में बैठकर मोबाइल चलाता, चाय पीता, या कुत्तों के साथ खेलता। लंच ब्रेक अब 30 मिनट नहीं, सीधा 2 घंटे का हो गया! सुबह-शाम एक-एक घंटे का ब्रेक और मिल गया। स्लो दिनों में तो कई बार घंटों कुछ नहीं करना पड़ता।

यहाँ एक मजेदार कमेंट था, "मालिक ने तुम्हें जितने पैसे दिए, तुमने बस उतना ही काम किया!"—एकदम देसी तर्क! कर्मचारी ने मालिक का पैसा तो नहीं लौटाया, लेकिन मालिक की चोरी का जवाब उसी की स्टाइल में दिया—काम उतना ही, बाकी समय आराम।

कुछ लोग कहेंगे—"ये तो मालिक के साथ चोरी है!" लेकिन क्या कर्मचारी का भी मनुष्याधिकार नहीं? जब मालिक हक मारता है, तो कर्मचारी भी जुगाड़ भिड़ाता है।

मजेदार चर्चाएँ: कमेंट्स में छुपा असली मसाला

Reddit पोस्ट के कमेंट्स पढ़ना किसी मसालेदार चाट खाने जैसा है। कोई कहता है, "अरे, असली बदला तो तब होता जब तुम लेबर बोर्ड में कंप्लेंट कर देते, मालिक को जेल भिजवा देते!" (यानि भारत में जैसे लेबर कोर्ट या इंस्पेक्टर के पास शिकायत करना)। एक और कमेंट में लिखा था, "भैया, आधा घंटा चोरी करने के बदले 10–15 घंटे फोन चलाने का मौका मिल गया, कौन शिकायत करेगा?"

कुछ ने ये भी पूछा कि इतने समय में कुत्तों का क्या हुआ? तो कर्मचारी ने जवाब दिया—"अरे, काम के बाद अक्सर हम कुत्तों के साथ खेलते थे, वो तो सबसे मजेदार हिस्सा था!" यानी, जानवरों का भी ध्यान रखा गया, बस मालिक की बेईमानी में सबने थोड़ा आराम कमा लिया।

एक और भारतीय नज़रिया—"बॉस जैसा करेगा, वैसा ही पाएगा! अगर मालिक समझदार होता, तो कर्मचारियों से अच्छा व्यवहार करता, और सबका भला होता।"

सीख – दफ्तर की राजनीति और देसी जुगाड़

कहानी का सार यही है—दफ्तर की राजनीति हर जगह है, चाहे अमेरिका हो या इंडिया। कहीं मालिक शोषण करता है, तो कहीं कर्मचारी जुगाड़ भिड़ा लेते हैं। एक पाठक ने बड़ी गहरी बात लिखी, "बुरे बॉस के साथ बुरे कर्मचारी ही टिकते हैं।" यानी, जहाँ व्यवस्थाएं खराब हैं, वहाँ दोनों तरफ से ‘समझौता’ चलता रहता है।

अक्सर देखा गया है, भारत में भी जब काम ज़्यादा है, तो लोग एक्स्ट्रा काम करते हैं, और जब काम कम है, तो चाय-पानी, गप्पें, मोबाइल—सब चलता है। एक और कमेंट—"जॉब में 100% कभी मत दो, 60% तुम्हारा 100 है, जब तारीफ चाहिए तो 75% करो!"—कितना देसी ज्ञान है इसमें!

निष्कर्ष – आपकी कहानी क्या है?

इस कहानी से एक बात साफ है—अगर सिस्टम ही गलत है, तो लोग भी अपने तरीके से संतुलन बना लेते हैं। पर क्या ये सही है? क्या हमें अपने हक के लिए लड़ना चाहिए, या बस जुगाड़ से काम निकालना चाहिए?

आप क्या सोचते हैं—अगर आपके साथ कभी ऐसी तनख्वाह की चोरी हो, तो आप क्या करेंगे? क्या आप भी इस कर्मचारी की तरह जुगाड़ लगाएँगे, या फिर सीधा शिकायत करेंगे? अपनी राय नीचे कमेंट में ज़रूर लिखें, और ऐसे मजेदार किस्सों के लिए जुड़े रहिए!


मूल रेडिट पोस्ट: my employer stole from us every shift, but I kept my mouth shut