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जब मैनेजर ने गिनती गिनवाई, कर्मचारी ने खेल पलट दिया: एक मज़ेदार रिटेल कहानी

व्यस्त दुकान में होमवेयर आइटम्स के आसान पैलेट्स को कुशलता से हिलाता हुआ एक रिटेल कर्मचारी की कार्टून-3डी चित्रण।
इस जीवंत कार्टून-3डी दृश्य में, एक समर्पित रिटेल कर्मचारी होमवेयर आइटम्स को स्टॉक करने की चुनौतियों का कुशलता से सामना कर रहा है। दक्षता बढ़ाने के अपने व्यक्तिगत अनुभव से प्रेरित, यह चित्रण आसान उठाने वाले पैलेट्स के प्रबंधन की हलचल को दर्शाता है, जो रिटेल की तेज गति वाली दुनिया को उजागर करता है।

कामकाजी दुनिया में अक्सर ऐसा होता है कि बॉस कभी-कभी सिर्फ गिनती पर ही ध्यान देते हैं, असल मेहनत को नजरअंदाज कर देते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ एक रिटेल स्टोर में, जहां कर्मचारी को यह कहकर टोक दिया गया कि वो “पर्याप्त पैलेट्स” नहीं हिला रहा है। अब भारतीयों को तो वो कहावत याद ही होगी: “अंधा बांटे रेवड़ी, फिर-फिर अपने को दे।” इस कहानी में भी, जहां नियमों को आंख मूंदकर लागू किया गया, वहीं कर्मचारी ने भी अपना दिमाग घुमा लिया – और नतीजा निकला बड़ा दिलचस्प!

“संख्या” का खेल और भारतीय कार्यस्थल की हकीकत

हमारे यहां भी ऑफिसों में ये अक्सर देखने को मिलता है कि बॉस सिर्फ नंबरों का हिसाब रखते हैं – कितने फाइलें निपटाईं, कितने डिब्बे उठाए, कितनी बार चाय पी। असल में, काम की क्वालिटी या मुश्किल कितना था, ये कोई नहीं पूछता। Reddit पर u/surrenderedmale नामक यूज़र ने भी यही झटका खाया: “तुम कम पैलेट्स शिफ्ट कर रहे हो!”

अब भैया, पैलेट्स भी दो तरह के – एक वो जिसमें बड़ी-बड़ी चीज़ें जैसे माइक्रोवेव, बाल्टी, या बिन्स जिनको रखना या उठाना दो मिनट का काम, और दूसरी तरफ छोटी-छोटी चीज़ें – साबुन, मेकअप, चम्मच-कटोरी – जिनको सहेजना, गिनना और रखना किसी तपस्या से कम नहीं।

तो बॉस ने क्या देखा? बस पैलेट्स की गिनती! उधर कर्मचारी ने भी सोचा – जब सिर्फ गिनती देखनी है, तो बड़े वाले आसान पैलेट्स ही क्यों न उठाऊं? बस, वही किया। दिन-दूनी, रात चौगुनी गिनती बढ़ा दी – पैलेट्स की संख्या आसमान छू गई, पर असल में मेहनत कम हो गई।

“आंखों देखा झूठ, कानों सुनी सच्चाई” – कम्युनिटी की राय

Reddit की कम्युनिटी में इस पर खूब मज़ेदार चर्चा हुई। एक यूज़र ने लिखा, “असली दिक्कत है दूरदर्शिता की – जिनके पास है, वो समझा नहीं सकते; जिनके पास नहीं, वो समझ ही नहीं सकते।” वैसे हमारे यहां भी एक कहावत है – “दूर की कौड़ी लाना हर किसी के बस की बात नहीं।”

एक और कमेंट में बड़ा बढ़िया मज़ाकिया अंदाज था: “मैनेजर लोग केवल स्प्रेडशीट में नंबर देखकर खुश हो जाते हैं, ज़मीन पर क्या हो रहा है, उससे कोई मतलब नहीं।” सच पूछें तो, हमारे यहां भी कभी-कभी मैनेजमेंट सिर्फ रिपोर्ट देखने में ही बिज़ी रहता है, असल समस्या कर्मचारी ही झेलते हैं।

कुछ ने तो यह भी कहा कि पुराने ज़माने में मैनेजर खुद ग्राउंड लेवल से ऊपर जाते थे, इसलिए वो असलियत को समझते थे। अब तो डिग्रियों और जान-पहचान से मैनेजर बन जाते हैं, काम की बारीकियों की समझ गायब! एक यूज़र ने तो सलाह दे डाली – “हर मैनेजर को पहले हर पोस्ट पर एक-एक महीना काम करना चाहिए, तभी असली समझ आएगी।”

“मेट्रिक” का जाल: जब टारगेट ही सब कुछ हो जाए

कई लोगों ने इसे Goodhart’s Law से जोड़ा – “जब कोई मेट्रिक टारगेट बन जाता है, तो वो मेट्रिक बेकार हो जाता है।” भारतीय दफ्तरों में भी यही हाल है – काम की असलियत से ज़्यादा, मीटिंग में दिखाने वाले नंबर मायने रखते हैं।

एक और यूज़र ने बड़ा दिलचस्प किस्सा सुनाया – “हमारे गोदाम में, जो सबसे आसान ऑर्डर थे, उन्हें जल्दी-जल्दी पूरा करके टॉप परफॉर्मर बन जाते थे, जबकि मुश्किल काम वालों की कोई कद्र नहीं थी।” ये कहानी सुनकर आपको भी अपने ऑफिस के वो “स्मार्ट” लोग याद आ गए होंगे, जो सबसे आसान काम पकड़कर हीरो बन जाते हैं!

“अरे तो फिर क्या हुआ?” – कहानी का मज़ेदार मोड़

अब असली मज़ा तब आया जब छोटे पैलेट्स, यानी छोटी-छोटी चीज़ें स्टोर में ढेर लग गईं। भीड़ के समय सारे कर्मचारी उन्हीं में उलझे रह गए, और काम की गति धीमी पड़ गई। बॉस को तब समझ आया जब सारा सिस्टम गड़बड़ा गया।

सबसे मजेदार बात – जिस कर्मचारी को “कम काम” का ताना दिया गया था, उसी को बाद में शाबाशी दी गई कि “वाह, आपने तो कमाल कर दिया!” कर्मचारी ने भी बड़े मासूमियत से बताया, “असल में मैंने कम मेहनत की, बस गिनती बढ़ा दी।”

“सीख क्या मिली?” – भारतीय दफ्तरों के लिए सबक

इस कहानी से यही सीख मिलती है कि सिर्फ नंबरों के पीछे भागना बेवकूफी है। हर काम की अपनी कठिनाई होती है – जैसे हमारे यहां शादी के समय दहेज में कांसे की थाली और स्टील की थाली गिनना एक जैसा नहीं होता!

अगर मैनेजर ज़मीन से जुड़े होते, तो समझ पाते कि बड़े पैलेट्स उठाना आसान है, पर छोटी चीज़ों को संभालना असली मेहनत है।

जैसा एक यूज़र ने कहा, “जब तक मैनेजमेंट ग्राउंड लेवल की सच्चाई नहीं देखेगा, ऐसी गड़बड़ियां होती रहेंगी।”

“आपका क्या कहना है?”

तो दोस्तों, क्या आपके ऑफिस में भी कभी सिर्फ गिनती या टारगेट्स के चक्कर में असली मेहनत को नजरअंदाज किया गया है? नीचे कमेंट में अपने तजुर्बे जरूर शेयर करें।

क्योंकि आखिरकार, नंबर तो झूठ नहीं बोलते – पर नंबरों को देखने का नजरिया अगर गलत हो, तो सच्चाई छुप जाती है!

बातों-बातों में, अगर अगली बार आपके बॉस सिर्फ गिनती पूछें, तो आप भी चाय के कप को ही गिनवा दीजिए – क्या पता, प्रमोशन मिल जाए!


मूल रेडिट पोस्ट: Not working enough pallets, so I worked more pallets (retail)