जब मैनेजर की जिद ने दुकान को कर दिया सूना: 'प्लानोग्राम' वाली कहानी
अगर आप कभी किसी दुकान में गए हैं और सोचा है कि रैक पर चीज़ें इतनी सलीके से क्यों लगी रहती हैं, तो जान लीजिए—इसके पीछे एक गुप्त प्लान है, जिसे 'प्लानोग्राम' कहते हैं। पर क्या हो, जब ये प्लान ज़रूरत से ज़्यादा सख्ती से लागू किया जाए? आज हम एक ऐसी ही कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसमें एक मैनेजर की जिद और एक कर्मचारी की 'मालिशियस कम्प्लायंस' ने दुकान की दुनिया में हलचल मचा दी।
'प्लानोग्राम'—दुकानों का गुप्त नियम
भारत में भी बड़े-बड़े सुपरमार्केट्स या किराने की दुकानों में आपने देखा होगा कि हर शेल्फ पर सामान एक तय तरीके से रखा जाता है। यही है 'प्लानोग्राम'—यानी कौन-सी वस्तु कहाँ रखनी है, किस लेवल पर, कितनी मात्रा में, सबकी योजना पहले से बनी होती है। मकसद होता है ग्राहक को आकर्षित करना और बिक्री बढ़ाना। लेकिन ज़्यादातर दुकानों में कर्मचारियों को थोड़ी छूट मिल जाती है कि वे ग्राहकों की पसंद के अनुसार कुछ फेरबदल कर लें।
अमेरिका की इस कहानी में भी एक डिलीवरी ड्राइवर को अपने हिसाब से केक के रैक को सजाने की छूट मिली हुई थी। पर एक छोटी-सी दुकान की मैनेजर ने एक दिन गुस्से में उसे अलग बुलाकर शिकायत कर डाली—"रैक पर कीमतें मेल नहीं खा रहीं, और हमें वही कीमत ग्राहक को देनी पड़ती है।" ड्राइवर ने कहा, "कोई दिक्कत नहीं, आप प्रोडक्ट्स स्कैन कर दीजिए, मैं नए टैग लगा दूँगा।" पर मैनेजर का जवाब था, "प्लानोग्राम के मुताबिक ही लगाना है।"
'मालिशियस कम्प्लायंस'—कर्मचारी की चालाकी
अब यहाँ शुरू होती है असली 'मालिशियस कम्प्लायंस'—यानी नियमों का पालन भी, और मैनेजर को उसकी जिद का स्वाद भी चखाना! ड्राइवर ने प्लानोग्राम के अलावा रैक पर रखी सारी चीज़ें हटा दीं। परिणाम? सबसे ज़्यादा बिकने वाले केक भी गायब हो गए! मैनेजर भागी-भागी आई, "मेरे फेवरेट केक कहाँ गए?" ड्राइवर ने हँसते हुए कहा, "मैडम, प्लानोग्राम में नहीं थे, इसलिए हटाना पड़ा।" मैनेजर मुँह लटकाए चली गई।
एक पाठक ने कमेंट में लिखा—"कभी-कभी किसी की बेतुकी मांग का जवाब यही है कि उसकी कही बातों का अक्षरश: पालन किया जाए। तब उसे खुद समझ आता है कि उसने क्या माँगा था!" सच बात है, भारत में भी कई बार बॉस या सीनियर खुद अपनी कही बातों में फँस जाते हैं। चाहे वो ऑफिस का चाय ऑर्डर हो, या स्टोर में सामान रखने का तरीका!
मैनेजर की उलझन और पाठकों की मनोरंजन
कुछ हफ्तों बाद, वही मैनेजर फिर आई और शिकायत करने लगी—"दूसरी दुकानों में इतने अच्छे केक हैं, यहाँ क्यों नहीं?" ड्राइवर ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, "मैडम, आपके प्लानोग्राम में जगह नहीं है, तो कैसे लगाऊँ?" अब मैनेजर चाहने के बावजूद भी कुछ न कर सकी। एक और मज़ेदार किस्सा तब हुआ जब नए बटर कुकीज़ आए और मैनेजर ने उनसे भी जगह माँगी, मगर ड्राइवर ने फिर वही तर्क दे दिया—"जगह नहीं है, प्लानोग्राम में नहीं है!"
कमेंट्स में कई पाठकों ने अपनी-अपनी कहानी सुनाई—किसी ने बताया कैसे उनके ऑफिस में 25 साल पुराना सामान बदलने की बात को मैनेजर ने टाल दिया, और बाद में जब वो सामान सच में खराब हो गया तो पछतावा हुआ। एक पाठक ने लिखा, "मेरी बेटी से भी यही करनी पड़ती है—उसकी ही बातों को उसी के खिलाफ इस्तेमाल करो!"
'प्लानोग्राम' की सच्चाई—जमीनी हकीकत बनाम कागजी नियम
यही कहानी सिर्फ अमेरिका की नहीं, भारत में भी आम है। चाहे वो किराना दुकान हो या मोबाइल शॉप, अक्सर सीनियर लोग कागजों पर बने नियमों को ज़िद से लागू कराना चाहते हैं, मगर जमीनी हकीकत कुछ और होती है। एक पाठक ने लिखा, "हमारे यहाँ भी प्लानोग्राम बनता है, मगर सामान आधा तो आते-आते बिक जाता है, और बाकी की जगह भरनी पड़ती है।"
दूसरी तरफ, ग्राहकों की भी अपनी परेशानियाँ हैं। "कई बार मेरा मनपसंद सामान दिखता ही नहीं, तो सोचता हूँ दुकान ने बेचना बंद कर दिया या फिर कहीं और रख दिया। ऐसा लगे तो खाली जगह छोड़ देना चाहिए ताकि ग्राहक को पता चले सामान खत्म है, छुपा नहीं है।"
निष्कर्ष: नियम अच्छे हैं, पर समझदारी ज़रूरी है
आखिर में यही कहना होगा कि हर जगह नियम ज़रूरी होते हैं, पर उनमें लचीलापन और जमीनी समझदारी भी उतनी ही ज़रूरी है। वरना कभी-कभी आपकी ही कही बात आपके खिलाफ हथियार बन जाती है! अगली बार जब आपके ऑफिस या दुकान में कोई अजीब नियम थोपे, तो ये कहानी याद करिएगा—और शायद, मौका मिले तो 'मालिशियस कम्प्लायंस' का स्वाद चखा दीजिए!
क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है कि बॉस की जिद ने काम को मुश्किल बना दिया हो? या आपने कभी किसी 'प्लानोग्राम' वाले झमेले का सामना किया हो? अपनी मजेदार या सिर पकड़ने वाली कहानियाँ कमेंट में जरूर साझा करें—शायद अगली बार आपकी कहानी यहाँ छप जाए!
मूल रेडिट पोस्ट: Manager said only by the planagram