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जब मँगेतर के बॉस के घमंड पर चढ़ गई पेटी रिवेंज की चाय

क्लिनिक में एक फिजिकल थेरेपिस्ट अपने मंगेतर के बॉस को चौंकाते हुए, उनके अनोखे रिश्ते को दर्शाते हुए 3D कार्टून चित्रण।
इस जीवंत 3D कार्टून चित्रण में, एक फिजिकल थेरेपिस्ट अपने मंगेतर के बॉस को क्लिनिक की यात्रा के दौरान चौंकाते हुए दिखता है! यह मजेदार पल विभिन्न पेशों के बीच की अनोखी गतिशीलता और कहानी में खेल-खेल में rivalry को दर्शाता है।

हर दफ़्तर में एक ऐसा बॉस ज़रूर होता है जिसे देखकर लगता है कि ‘यह आदमी तो मुसीबतों की जड़ है!’ और अगर बॉस के साथ-साथ उसमें घमंड और खुद को महान समझने की बीमारी भी हो, तो फिर क्या ही कहें। आज की कहानी ऐसी ही एक दफ्तर की है, जहां एक वकील मँगेतर, उसका फिजियोथेरेपिस्ट होने वाला पति और एक ‘मशहूर’ बॉस – तीनों मिलकर ऐसी कहानी बुनते हैं कि आप भी कहेंगे: “वाह! पेटी रिवेंज हो तो ऐसी!”

एक अनोखी सगाई और छूट का ऑफर

कहानी शुरू होती है एक आम-सी सगाई पार्टी से, जहां फिजियोथेरेपिस्ट दूल्हा बनने वाले ने, अपनी मँगेतर (जो खुद वकील हैं) के कुछ साथियों से मज़ाक-मज़ाक में कह दिया, “अगर आपको कभी फिजियोथेरेपी की ज़रूरत पड़े तो मेरी क्लिनिक में आ जाइए, डिस्काउंट मिलेगा।” क्या ही पता था, ये डिस्काउंट आगे चलकर बॉस की ईगो का जलेबी जैसा चक्कर काटेगा!

चार लोगों ने तो डिस्काउंट का भरपूर फायदा उठाया, लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आया जब मँगेतर के ऑफिस के पार्टनर (जो असल में बॉस ही हैं) खुद क्लिनिक आ पहुँचे। ऑफिस में कोई भी उन्हें पसंद नहीं करता, और फिजियोथेरेपिस्ट भाई साहब को भी पहली मुलाक़ात में ही समझ आ गया — साहब बहुत घमंडी और खुद को सबसे ऊपर समझने वाले हैं, मगर अंदर से तारीफ के भूखे!

बॉस की सख्ती, बीमारी की चेन रिएक्शन

एक दिन साहब क्लिनिक आए और बातचीत के दौरान डिस्काउंट माँगने लगे। फिजियोथेरेपिस्ट ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, “डिस्काउंट तो कर्मचारियों के लिए है।” बॉस का मुँह उतर गया, लेकिन किस्सा यहीं नहीं रुका।

तीन हफ्ते पहले क्लिनिक में एक कर्मचारी बीमार पड़ गया, तो डॉक्टर साहब खुद ही ज्यादा मरीज़ देखने लगे। बॉस ने सलाह दी, “बीमार लोगों से मेडिकल सर्टिफिकेट मंगवाओ, वरना लोग बहाना बनाएँगे।” डॉक्टर साहब बोले, “मुझे तो ये बेकार की नीति लगती है, बीमार को आराम करने दो, वरना सबको बीमार कर देगा।” लेकिन बॉस तो बॉस ठहरे, बोले, “ऑफिस में मैं ये नियम और सख्त करने वाला हूँ।”

कहते हैं न, “जैसी करनी, वैसी भरनी!” कुछ दिन बाद डॉक्टर साहब खुद बीमार हो गए और उनकी मँगेतर को भी ज़ोरदार सर्दी-ज़ुकाम और चक्कर (vertigo) हो गया। मँगेतर को ऑफिस से मेडिकल सर्टिफिकेट लाने का नया आदेश आया — और भेजने वाला वही बॉस!

नियमों के जाल में फँसा बॉस, रिवेंज की मिठास

इत्तेफाक देखिए, उसी दिन बॉस की दोपहर 2 बजे फिजियोथेरेपी की अपॉइंटमेंट थी। डॉक्टर साहब ने अपने मँगेतर को डॉक्टर के पास ले जाने के लिए उसी वक्त की बुकिंग कर दी और बॉस को मेसेज भेजा, “माफ करिए, आपको कैंसिल करना पड़ेगा, मँगेतर को डॉक्टर के पास ले जाना है।” साथ में ये भी जोड़ दिया कि अगले 3 हफ्ते तक क्लिनिक पूरी तरह बुक है!

अब बॉस की बारी थी अपनी ही बनाई नीति का स्वाद चखने की। तुरंत मेसेज भेज दिया, “मेडिकल सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं है!” लेकिन अब देर हो चुकी थी। मँगेतर ने ऑफिस की ‘लेट कैंसिलेशन पॉलिसी’ का हवाला दिया और डॉक्टर साहब भी अडिग रहे: “बहुत जरूरी है डॉक्टर के पास जाना।”

Reddit की जनता का तड़का – ‘जैसी करनी, वैसी भरनी!’

इस कहानी ने Reddit पर तो आग ही लगा दी! एक पाठक ने लिखा, “मज़ा आ गया जब किसी को उसकी करनी का फल तुरंत मिल जाए!” (ठीक वैसे ही जैसे हिंदी फिल्मों में खलनायक का अंत होता है)।

दूसरे ने चुटकी ली, “जब तक दूसरों पर लागू हो, तब तक नियम अच्छे लगते हैं। जब खुद पर आए, तो सारी सहूलियतें याद आ जाती हैं!” यह बात हर भारतीय ऑफिस में लगभग रोज़ देखने को मिल जाती है — बॉस या सीनियर खुद के लिए नियम तोड़ने में माहिर होते हैं।

किसी ने तो यहां तक कह दिया, “ये तो ऑफिस की कर्मा स्टोरी है — जैसे को तैसा!” एक अन्य पाठक ने सलाह दी कि मँगेतर को ऐसे बॉस के ऑफिस में नहीं रहना चाहिए, मगर सौभाग्य से वह ज्यादातर अन्य पार्टनर्स के साथ काम करती हैं।

स्वास्थ्य से जुड़े कुछ कमेंट्स भी आए, जैसे एक ने लिखा, “चक्कर (vertigo) कभी-कभी गंभीर बीमारी का संकेत हो सकता है, डॉक्टर को दिखाना जरूरी है।” वहीं कुछ लोगों ने मज़ाकिया अंदाज में कहा, “बॉस के लिए ये एकदम सही सबक था, अब शायद अगली बार नियम बनाते वक्त दो बार सोचेगा!”

हमारी सीख — छोटे-छोटे बदले, बड़ी राहत!

अगर आप भी कभी ऑफिस में ऐसे बॉस के तानों और अजीब नियमों से परेशान हों, तो ये कहानी याद रखिए। ज़रूरी नहीं कि हर बदला बड़ा और ड्रामेटिक हो; कभी-कभी छोटी-सी ‘पेटी रिवेंज’ ही सबसे गहरा असर छोड़ जाती है।

आखिर में यही कहना चाहूँगा — “खुद के लिए जो नियम बनाए हैं, दूसरों पर थोपने से पहले खुद भी उन्हें निभाने की हिम्मत रखिए।”

क्या आपके ऑफिस में भी ऐसा कोई बॉस है? या आपने कभी किसी को उसकी ही चाल में फँसते देखा है? अपनी दिलचस्प कहानियाँ और अनुभव कमेंट में जरूर साझा करें!

“जैसी करनी, वैसी भरनी” — इस कहावत का मज़ा, Reddit वाली इस कहानी ने खूब चखा दिया!


मूल रेडिट पोस्ट: I out did my fiancées petty boss