विषय पर बढ़ें

जब मकानमालकिन को किराया चुकाया गया सिक्कों में – एक पेटी रिवेंज की कहानी!

90 के दशक की एक प्यारी एनीमे शैली की चित्रण, जिसमें बिल्ली के साथ एक आरामदायक टॉरेट अपार्टमेंट है।
90 के दशक में लौटें इस आकर्षक एनीमे शैली की चित्रण के साथ, जहां एक युवा महिला और उसकी बिल्ली एक कठिन मकान मालिक के बीच में एक आरामदायक आश्रय बनाते हैं।

किरायेदारी के किस्से तो आपने बहुत सुने होंगे – कहीं मकानमालिक परेशान करता है, तो कहीं किरायेदार। लेकिन आज जो कहानी आप पढ़ने जा रहे हैं, उसमें किरायेदार ने मकानमालकिन की चालाकी का ऐसा जवाब दिया कि मोहल्ले में चर्चा हो गई! सोचिए, अगर आपको कोई बिना वजह घर खाली करने को कहे, और आपको तरीका मिले कि आप उसका दिमाग घुमा सकें, तो आप क्या करेंगे?

मकानमालकिन की चाल और किरायेदार की समझदारी

ये किस्सा है 90 के दशक का, जब हमारे नायक (और उनकी प्यारी बिल्ली) एक शानदार अपार्टमेंट में रहते थे। घर छोटा था, लेकिन उसमें एक प्यारा सा टॉवरनुमा कमरा था – बस, एकदम फिल्मों जैसा! सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन मकानमालकिन का स्वभाव कुछ ज़्यादा ही तुनकमिजाज था।

शुरुआत में तो उन्होंने बिल्ली की इजाजत दे दी, लेकिन एक दिन जब वो कीट-नाशक वाले के साथ आईं, तो अचानक बोलीं – "बिल्ली है? अब तो पालतू जानवर का डिपॉजिट देना पड़ेगा!" नायक ने मन मार के डिपॉजिट दे भी दिया – "चलो, भई, जैसा कहो।"

कुछ महीनों बाद, मकानमालकिन बड़े गर्व से अपनी दोस्त को घर दिखाने आईं। दोनों ने घर की तारीफों के पुल बांध दिए – और हमारे नायक को भी शंका हुई कि इन दोनों के बीच कुछ 'स्पेशल' चल रहा है। लेकिन असली ड्रामा तो इसके बाद शुरू हुआ...

जब मकानमालकिन ने दिखाया असली रंग

कुछ दिन बाद, अचानक फोन आया – "महीने के अंत तक घर खाली कर दो!" नायक चौंक गए – "क्यों भला?" मकानमालकिन ने तो वही बिल्ली वाला बहाना दोहराया, जबकि डिपॉजिट तो पहले ही ले चुकी थीं! असल में, उनकी दोस्त को वो घर इतना पसंद आया कि मकानमालकिन ने पुरानी किरायेदारी की परवाह किए बिना, नायक को निकालने का फैसला कर लिया।

नीचे रहने वाले पड़ोसी ने चुपके से ये बात कान में बता दी – "दीदी की दोस्त को घर चाहिए था, इसलिए आपको निकाला जा रहा है।" अब बताइए, ऐसी बेइमानी पर किसका खून न खौले?

सिक्कों की बारिश – पेटी रिवेंज का जादू

नायक को एक और अच्छा घर मिल गया, लेकिन मन में खटास रह गई। उन्होंने तय किया कि आखिरी महीने का किराया – जो उस ज़माने में करीब $350 यानि लगभग 25-26 हज़ार रुपये था – आखिरी दिन ही देंगे और वो भी कैसे? पूरे पैसे 'पैनीज' में! अब अमेरिका में 'पैनी' सबसे छोटा सिक्का होता है – सोचिए, इतने पैसे का कितना भार होगा!

बैंक से सिक्के लाए, रोल खोलकर किराने की थैलियों में भर दिए, और मकानमालकिन के पास पहुंचे। जब किराया मांगा, तो थैले उनके हाथ में थमा दिए। मकानमालकिन की शक्ल देखने लायक थी – गुस्से में तमतमा गईं! बोलीं, "इन्हें गिनो और रोल में पैक करो!" नायक ने भी तगड़ा जवाब दिया – "मैं जानता हूं पूरे पैसे हैं, कम पड़े तो फोन कर लेना!"

इस कहानी पर Reddit पर खूब चर्चा हुई। एक टिप्पणीकार ने मजाकिया अंदाज में लिखा, "भाई, $350 पैनी में देना कोई बच्चों का खेल नहीं – लगभग 86 किलो का भार हो गया होगा!" खुद पोस्ट करने वाले ने भी माना, "सचमुच, जवान दिलों का जोश था, अब दोबारा इतना भारी काम करने की हिम्मत नहीं!"

कम्युनिटी की राय और भारतीय संदर्भ

इस पोस्ट पर कई लोगों ने अपने अनुभव और कानून की बातें भी जोड़ दीं। एक ने कहा, "किरायेदार अगर चाहता, तो कानून का फायदा उठाकर तीन महीने बिना किराए रह सकता था – लेकिन कई बार अपनी इज्जत और रिकॉर्ड बचाना भी जरूरी है, वरना भविष्य में घर मिलना मुश्किल हो जाता है।"

एक और टिप्पणी आई, "दूसरे देशों में सिक्कों से किराया देने का मामला कानूनन अलग हो सकता है, लेकिन 90 के दशक में ओंटारियो (कनाडा) में यह पूरी तरह वैध था। वैसे, भारत में भी कई बार दुकानदार, रिक्शेवाले या सरकारी दफ्तर वाले सिक्के लेने में नखरे करते हैं, लेकिन जब मामला कर्ज चुकाने का हो, तो 'कानूनी मुद्रा' को मना नहीं किया जा सकता।"

यहां एक और दिलचस्प टिप्पणी थी – "कभी-कभी छोटी-छोटी शरारतें ही सबसे बड़ा बदला बन जाती हैं।" वाकई, भारतीय समाज में भी जब कोई सरकारी अधिकारी फालतू परेशान करता है, तो लोग 1-1, 2-2 रुपये के सिक्कों में पैसे भर के ले जाते हैं – ताकि सामने वाले का दिन बन जाए!

निष्कर्ष – आपकी राय क्या है?

कहानी से यही सीख मिलती है कि गलत के सामने झुकना जरूरी नहीं – कभी-कभी थोड़ा सा 'पेटी रिवेंज' भी जायज होता है! वैसे, आप क्या करते अगर आपके साथ ऐसा होता? क्या आप भी सिक्कों की बारिश करते, या कोई और तरीका अपनाते?

नीचे कमेंट में अपनी राय जरूर बताएं – और अगर आपके पास भी ऐसी कोई मजेदार या तगड़ी बदले की कहानी है, तो हमारे साथ साझा करें। आखिरकार, जिंदगी में कभी-कभी थोड़ा सा 'मजेदार बदला' भी जरूरी है – वरना कहानियां कौन सुनाएगा?


मूल रेडिट पोस्ट: Paid in Pennies