जब भाई ने दरवाज़ा बंद किया, मैंने उसका इंटरनेट बंद कर दिया: एक छोटे बदले की बड़ी कहानी
कहते हैं, “घर में सबसे बड़ी जंग अक्सर अपनों से ही होती है।” हर घर में कोई न कोई ऐसा सदस्य ज़रूर होता है, जो न सिर्फ़ आलसी होता है, बल्कि अपने हक़ को कर्तव्य समझ बैठता है। आज की कहानी कुछ ऐसी ही है—जहाँ एक बड़े भाई ने अपने इंटरनेट-आशिक़, बेरोज़गार और बदतमीज़ छोटे भाई को उसकी औकात याद दिला दी। और मज़ा देखिए, हथियार था—इंटरनेट बंद करने का!
इंटरनेट का ज़माना, भाई की मनमानी
सोचिए, एक 26 साल का नौजवान, न नौकरी करता है, न पढ़ाई में दिल लगाता है, ऊपर से घर में किसी की सुनता भी नहीं। पूरे दिन कमरे में बंद, मोबाइल या लैपटॉप पर डूबा रहता है, और जब घरवाले बुलाएँ, तो दरवाज़ा बंद कर देता है। लेखक (जो Reddit पर u/SimilarPossibility92 नाम से मशहूर हैं) का दर्द समझिए—घर का इंटरनेट भी वही भरते हैं और ये साहब मुफ्त में मज़े लेते हैं!
हमारे यहाँ भी अक्सर माँ-बाप छोटे बेटे की हरकतों को “अभी बच्चा है” कह कर टालते रहते हैं। यहाँ भी यही हाल था। माँ अकेली, भाई पर बेइंतिहा भरोसा, और भाई का रवैया? “मैं सबसे ज़्यादा जानकार हूँ, बाक़ी सब अनपढ़...” यानी, “घर का राजा मैं!”
बदतमीज़ी की हद: जब सब्र का बाँध टूटा
एक दिन लेखक अपने भाई से कुछ बात करना चाह रहे थे। भाई ने जवाब देने की बजाय मुँह फेरकर दरवाज़ा ही बंद कर लिया। यहाँ भारत में भी जब कोई छोटा भाई या बहन इस तरह बर्ताव करे, तो बड़े का खून खौलना लाज़मी है। Reddit लेखक ने किया क्या? चुपचाप मोबाइल में गया, वाई-फाई ऐप खोला और भाई के सारे डिवाइस का इंटरनेट बंद कर दिया!
अब सोचिए, इंटरनेट के बिना उसका क्या हाल हुआ होगा! यहाँ तो चाय के बिना लोगों को बेचैनी हो जाती है, वहाँ इंटरनेट के बिना बेचारा तड़प उठा। उसने माँ से शिकायत की, और माँ ने उल्टा बड़े भाई पर ही गुस्सा निकाल दिया—“तुम दोनों कभी नहीं सुधरोगे, मेरे मरने के बाद तो एक-दूसरे की जान ले लोगे!”
"सड़ा हुआ आलसी" या "माँ का लाड़ला"?—समाज की सच्चाई
Reddit पर लोगों ने खूब मज़ेदार टिप्पणियाँ कीं। एक यूज़र ने लिखा, “माँ ख़ुद ही उसे बिगाड़ रही हैं। जब तक कोई सज़ा नहीं मिलेगी, लड़का कभी बड़ा नहीं होगा।” हमारे यहाँ भी तो कई बार माँ-बाप, खासकर बेटे के मामले में, उसे ज़रूरत से ज़्यादा छूट दे देते हैं—“बेटा है, अभी संभल जाएगा”—और बेटा 30 पार भी माँ से जेब खर्च माँगता रहता है!
एक और कमेंट में लिखा गया, “जब तक ऐसे लोगों को घर से बाहर नहीं निकाला जाता, तब तक घर का माहौल जहरीला ही रहता है।” सच है, कभी-कभी ‘कचरा खुद ही बाहर चला जाए’ तो घर में सुकून लौट आता है। और यही हुआ—भाई अपना सामान लेकर मामा या किसी दोस्त के घर चला गया।
लेखक [OP] ने भी लिखा, “अब इतनी शांति है कि मेरी पॉजिटिव एनर्जी घर को फिर से जीवित कर देगी!” कईयों ने सलाह दी कि अगर भाई वापस आए, तो वाई-फाई का पासवर्ड रोज़ बदलो और तब तक मत दो जब तक वह घर की ज़िम्मेदारी न ले।
इंटरनेट ही नहीं, रिश्तों के पासवर्ड भी बदलो!
इस कहानी में सबसे बड़ा सबक यही है—माँ-बाप की ज़रूरत से ज़्यादा नरमी कभी-कभी बच्चों को ज़िम्मेदारी से दूर कर देती है। एक कमेंट में बहुत बढ़िया बात कही गई—“जो लोग हमेशा देते रहते हैं, उन्हें अपनी सीमाएँ तय करनी चाहिए; क्योंकि जो लेने वाले हैं, उनकी कोई सीमा नहीं होती।”
यहाँ यह भी देखने को मिलता है कि कई बार घर में शांति बनाए रखने के लिए बड़े लोग छोटे की हरकतें सहते रहते हैं। लेकिन जब एक सीमा पार हो जाती है, तो सख्ती ज़रूरी हो जाती है—चाहे वो इंटरनेट बंद करना ही क्यों न हो!
पाठकों से सवाल—क्या आप भी ऐसे भाई-बहन या रिश्तेदार से परेशान हैं?
कहानी का अंत सुखद है—कम से कम कुछ दिनों के लिए घर में चैन है। लेकिन कमेंट्स पढ़कर लगता है, “सावधान! भाई फिर लौट सकता है!” अब देखना यह है कि क्या लेखक की माँ सच में बदलाव महसूस करेंगी या फिर पुराने ढर्रे पर लौट आएँगी।
आपके घर में भी कोई ऐसा ‘इंटरनेट का राजा’ है? या फिर कोई और तरीका अपनाया हो आपने ऐसे लोगों से निपटने का? अपने अनुभव ज़रूर साझा करें। शायद आपका आइडिया आगे किसी और के काम आ जाए!
आख़िर में यही कहूँगा—कभी-कभी छोटे-छोटे बदले ही सबसे बड़ी सीख दे जाते हैं। इंटरनेट बंद करना सिर्फ़ तकनीकी झटका नहीं, रिश्तों की नई कसौटी भी है। सोचिए, कभी-कभी पासवर्ड बदलना ज़रूरी है—इंटरनेट का भी और रिश्तों का भी!
आपकी राय का इंतज़ार रहेगा—कमेंट में बताइए, आपने ऐसे हालात में क्या किया होता?
मूल रेडिट पोस्ट: My disrespectful leech of a internet addict brother shut his room door in my face while I was speaking so I shut the Internet off.