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जब बॉस ने स्वेटर पहनने से रोका, कर्मचारी ने 'कॉरपोरेट-अनुमोदन' का पाठ पढ़ाया!

कार्यस्थल पर असामान्य जैकेट्स पर चर्चा करते जोड़े की एनिमे-शैली की चित्रण।
इस जीवंत एनिमे चित्रण में, एक जोड़ा कॉर्पोरेट फैशन के नियमों को चुनौती देते हुए मस्ती भरे पल साझा कर रहा है। जैकेट्स के बारे में उनकी मजेदार बातचीत कार्यस्थल पर व्यक्तिगतता का सही अर्थ व्यक्त करती है, जो इसे रोचक और आनंददायक बनाती है!

कभी-कभी दफ्तरों में ऐसे नियम बना दिए जाते हैं कि समझ नहीं आता – ये काम के लिए हैं या सिर्फ परेशान करने के लिए! एक छोटी-सी स्वेटर की वजह से हुए झगड़े ने एक बॉस को उसकी ही भाषा में जवाब दिलवा दिया। इस कहानी में न केवल दफ्तर की राजनीति है, बल्कि भारतीयों के लिए भी बढ़िया सबक छिपा है – ‘जैसा करोगे, वैसा भरोगे’।

स्वेटर नहीं, ‘कॉरपोरेट-अनुमोदन’ चाहिए!

कहानी है एक युवक की, जो अपने पार्टनर के साथ एक स्टोर में काम करता है। उस दिन वह अपने निजी स्वेटर में काम कर रहा था, और ध्यान रहे – वह न ग्राहक-facing था, न ही कोई दिख रहा था, बस स्टोर के पीछे ब्रेक रूम और फ्रीज़र के बीच में था। तभी बॉस आते हैं और ताने मारते हैं, “ये स्वेटर कॉरपोरेट-अनुमोदित नहीं है, हटाओ इसे!” युवक ने समझाने की कोशिश की – “बस पंद्रह मिनट के लिए पहन रहा हूँ, बाहर जाने से पहले निकाल दूँगा।” लेकिन बॉस साहब को नियम की लाठी घुमानी थी – “तुरंत हटाओ!”

अब शुरू हुई असली तकरार। बॉस को क्या पता था कि आज अपने ही जाल में फँसने वाले हैं।

नियमों की जंजीर में सब बंधे हैं!

जैसे ही बॉस ने ‘कॉरपोरेट-अनुमोदन’ का राग अलापा, युवक ने भी पूरी ‘मालिकाना आज्ञाकारिता’ (malicious compliance) के साथ जवाब देने की ठान ली।

अब जब फ्रीज़र में काम करना था, उसने न तो स्टोर के जैकेट्स पहने, न दस्ताने – क्योंकि वो भी तो ‘कॉरपोरेट-अनुमोदित’ नहीं थे! फ्रीज़र से हर पाँच-दस मिनट में काँपते हुए बाहर आना, हाथ मलना – बॉस देख रहे हैं और हैरान हैं।

बॉस पूछते हैं, “जैकेट और दस्ताने क्यों नहीं पहन लेते?” जवाब, “कर्मचारी हैंडबुक पढ़ी है? ये भी कॉरपोरेट-अनुमोदित नहीं हैं।”

बीच-बीच में कम्युनिकेशन सिस्टम से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन युवक ने जवाब नहीं दिया। फिर बॉस बोले, “कम्युनिकेशन सिस्टम क्यों नहीं उठा रहे?” उत्तर – “सर, वो भी कॉरपोरेट-अनुमोदित नहीं है!”

यह सब सात घंटे तक चला। आखिर में बॉस बोले, “समझ गया, अब से देखूँगा कि कहाँ उलझना है, कहाँ नहीं।”

दफ्तरों के नियम, और उनकी ‘चौधराहट’ : भारत में भी कुछ कम नहीं

यह कहानी जितनी अमेरिका या पश्चिम के दफ्तरों में आम है, उतनी ही भारत के ऑफिसों में भी। यहाँ भी HR के नियम, यूनिफॉर्म, या ऑफिस-सॉफ्टवेयर पर ऐसे-ऐसे फरमान आते हैं कि दिमाग घूम जाए।

रेडिट पर एक कमेंट में किसी ने कहा – “आप सचमुच इतने ‘पेटी’ होंगे?” जवाब आया – “सर, आप ही तो शुरू हुए थे, मैं तो बस नियम निभा रहा हूँ!” यह सुनकर तो कोई भी भारतीय कर्मचारी मुस्कुरा देगा – ऑफिस में छोटे-छोटे झगड़े, बॉस की बेवजह की सख्ती, और फिर उन्हीं की भाषा में जवाब देना, यह तो अपने यहाँ का भी रोज़ का किस्सा है।

एक और मज़ेदार कमेंट था – “अगर कंपनी को अपने ऐप्स या सॉफ्टवेयर अपने कर्मचारियों के फोन में चाहिए, तो खुद कंपनी फोन दे!” यानी, अपनी चीज़ों में दखल क्यों दें जब वो खुद उसका खर्च नहीं उठा रहे? भारत में भी जब ऑफिस वाले वॉट्सएप ग्रुप या किसी ऐप पर काम करवाते हैं, तो कई कर्मचारी यही सोचते हैं – ‘अपना मोबाइल निजी है, काम का नहीं!’

क्या नियम वाकई सबके लिए हैं?

कई बार नियम सिर्फ दिखावे के लिए होते हैं। जैसे, ऑफिस में ‘यूनिफॉर्म अनिवार्य’ का बोर्ड लगा है, लेकिन सीनियर या बॉस खुद कभी नहीं पहनते। यहाँ तक कि जो सामान रोज़ काम में आता है (जैसे फ्रीज़र जैकेट, दस्ताने), वो भी नियमों में नहीं लिखा। ऐसे में अगर कोई कर्मचारी नियमों का अक्षरशः पालन करे, तो बॉस खुद ही फँस जाते हैं।

एक और कमेंट में किसी ने लिखा, “हर कंपनी कहीं न कहीं नियम तोड़ती ही है, पर जब तक काम चल रहा है, कोई ध्यान नहीं देता। लेकिन जैसे ही कोई बेमतलब का झगड़ा शुरू करे, तो उसे पता चल जाता है कि नियम का डंडा दोनों तरफ चल सकता है।”

निष्कर्ष : बॉस को भी सीखना चाहिए – ‘कहाँ लड़ाई छेड़नी है’

इस कहानी का असली मज़ा तो तब है, जब आखिर में बॉस खुद मानते हैं – “समझ गया, हर जगह लड़ने की जरूरत नहीं।” भारतीय दफ्तरों में भी यही सीख लागू होती है – हर छोटी बात पर नियमों की तलवार न घुमाएँ, वरना कभी-कभी वही तलवार खुद की ओर मुड़ जाती है।

तो अगली बार अगर आपके ऑफिस में कोई अजीबो-गरीब नियम थोपे जाएँ, तो यह कहानी याद रखिए। नियम सबके लिए हैं – चाहे कर्मचारी हो या बॉस!

आपके ऑफिस में भी ऐसे नियम या मज़ेदार किस्से हुए हैं? नीचे कमेंट में ज़रूर बताइए, और शेयर करना न भूलें – क्योंकि ‘कॉरपोरेट-अनुमोदित’ हँसी सभी के लिए है!


मूल रेडिट पोस्ट: My Jacket Isn’t corporate approved? Neither are any of the other ones here.