जब बॉस ने सख्ती दिखाई, कर्मचारी ने दिखाया 'मालिशियस कम्प्लायंस' का कमाल!
हम सबने ऑफिस में कभी न कभी ऐसे बॉस का सामना किया है, जिनकी तानाशाही और दकियानूसी नियमों से जान ही निकल जाती है। ऐसे में कई बार मन करता है – बस, अब और नहीं! आज मैं आपको ऐसी ही एक मजेदार और सच्ची कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जहाँ एक कर्मचारी ने अपने बॉस की सख्ती का जवाब बड़े ही अनोखे अंदाज में दिया।
फ़ार्मेसी की अजीब दुनिया और 'एडविन' नाम का बॉस
कहानी है एक यूरोपीय देश की, मगर हालात ऐसे हैं कि आपको लगेगा जैसे अपने मुहल्ले के मेडिकल स्टोर की बात हो रही हो। वहाँ एक फार्मेसी में काम करने वाले कर्मचारी (मान लीजिए नाम है अर्जुन) का बॉस था 'एडविन'। अब एडविन भी वही टाइप के बॉस, जो हर बात में टांग अड़ाएँ, हर ग्राहक को 'राम-राम' कहें, चाहे दुकान में भीड़ सिर पर नाच रही हो।
एडविन की तानाशाही का आलम ये था कि जब अर्जुन अपने दोस्त की अंतिम यात्रा में जाने की इजाजत माँगता है, तो उसे मना कर दिया जाता है – "काम पहले, भावनाएँ बाद में!" लेकिन खुद एडविन अगले ही दिन 'कुत्ते को घुमाने' के बहाने छुट्टी मार जाते हैं। सोचिए, कैसा लगेगा?
जब 'मालिशियस कम्प्लायंस' बना हथियार
बात यहाँ तक पहुँच गई कि अर्जुन एक दिन बस खराब होने के कारण दो मिनट लेट हो गया। एडविन ने सबके सामने डाँट लगा दी – "ऑफिस का समय 9 से 12 और 1 से 6:30, एक मिनट इधर-उधर नहीं चलेगा।" अर्जुन को गुस्सा तो खूब आया, लेकिन उसने सीधा जवाब देने की बजाय 'मालिशियस कम्प्लायंस' का रास्ता चुना। यानी, बॉस के हर नियम का इतना सख्ती से पालन किया कि खुद बॉस की ही मुसीबत हो गई!
अब अर्जुन रोज़ एकदम 9 बजे घड़ी देखकर घुसता, ब्रेक में दिए जाने वाले बेकार 'लेसन' छोड़ देता, और जैसे ही 6:30 होता – चाहे बीच में ग्राहक भी हो – सारा काम छोड़कर निकल लेता। जब एडविन ने टोका, तो अर्जुन ने भोलेपन से कहा – "आपने ही तो कहा था, एक मिनट भी आगे-पीछे नहीं!"
कर्म का खेल और यूनियन का जोर
आखिरकार, एडविन ने अर्जुन को नौकरी से निकाल दिया। लेकिन यहाँ कहानी में ट्विस्ट आता है। यूरोप में लेबर यूनियन और कानून इतने मजबूत हैं कि गलत तरीके से निकाले गए कर्मचारी को मुआवजा देना पड़ता है। अर्जुन ने यूनियन की मदद ली, सारे सबूत पेश किए और दो साल तक बिना काम किए तनख्वाह पाई। इस दौरान उसने पढ़ाई की और आज कहीं बेहतर जिंदगी जी रहा है।
एक कमेंट करने वाले ने बढ़िया बात कही – "अगर मेरे बॉस ने मुझे किसी अंतिम संस्कार में जाने से रोका होता, तो मेरा जवाब सीधा होता – 'माफ कीजिए, ये कोई निवेदन नहीं, सूचना है। मैं जा रहा हूँ।'" अर्जुन भी मानता है कि पहली नौकरी में गलती हो जाती है, लेकिन वक्त के साथ इंसान सीख जाता है।
आखिर में बॉस का क्या हुआ?
कोरोना के समय एडविन ने कर्मचारियों को बिना सुरक्षा के काम पर बुलाया। अर्जुन ने अपने देश की FDA (खाद्य एवं औषधि विभाग) को शिकायत कर दी। परिणाम – फार्मेसी हमेशा के लिए बंद! कम्युनिटी में भी इस पर खूब मजाक बना – किसी ने लिखा, "फार्मेसी 'शिट डाउन' हो गई, लगता है दस्त की दवा नहीं मिलती थी वहाँ!"
एक और कमेंट में कहा गया – "यूनियन और मजबूत नियमों की वजह से ही कर्मचारियों को इंसाफ मिलता है।" भारत में भी अगर ऐसी यूनियनें और कानूनों की सख्ती हो, तो शायद कई एडविन जैसे बॉसों की अकड़ निकल जाए।
हमारी सीख: नियमों का पालन, लेकिन समझदारी से
कई बार ऑफिस के माहौल में ऐसे मौके आते हैं जब नियमों की आड़ में कर्मचारियों का शोषण होता है। लेकिन अगर समझदारी और हिम्मत दिखाएँ, तो नियमों को ही हथियार बनाकर अपने हक की लड़ाई लड़ी जा सकती है। अर्जुन की कहानी हमें यही सिखाती है – "बॉस कितना भी बड़ा हो, कर्म और कानून से बड़ा कोई नहीं!"
आपका क्या अनुभव रहा?
क्या आपको भी कभी ऐसे तानाशाह बॉस का सामना करना पड़ा है? क्या आपने भी कभी 'मालिशियस कम्प्लायंस' जैसा कोई तरीका अपनाया है? अपने अनुभव कमेंट में जरूर शेयर करें। और हाँ, अगली बार ऑफिस में कोई अनुचित नियम थोपे, तो अर्जुन की कहानी याद कर लेना – कभी-कभी 'नियमों का मजा चखाना' भी जरूरी हो जाता है!
मूल रेडिट पोस्ट: Can't be two minutes late?