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जब बॉस ने सख़्त ड्रेस कोड लागू किया, दफ्तर बना 90s का टाइम मशीन!

कार्यालय में ड्रेस कोड का पालन करते हुए व्यवसायिक आकस्मिक पहनावे में कर्मचारी।
इस सिनेमाई शैली में, यह चित्र नए प्रबंधक के सख्त ड्रेस कोड नीति के प्रभाव को दर्शाता है, जिससे कर्मचारियों की मजेदार प्रतिक्रियाएँ सामने आईं।

ऑफिस की दुनिया बड़ी रंगीन होती है। कभी बॉस का मूड बदल जाता है, तो कभी कर्मचारियों की शरारतें माहौल में जान डाल देती हैं। लेकिन सोचिए, अगर आपके दफ्तर में अचानक से ऐसा ड्रेस कोड लागू कर दिया जाए जो आपकी दादी-नानी के ज़माने का हो? जी हां, आज हम एक ऐसी ही कहानी लेकर आए हैं, जिसमें एक नए मैनेजर की 'नियमप्रियता' ने पूरे ऑफिस को 90 के दशक की फिल्म का सेट बना दिया!

जब नियम बने सिरदर्द: मैनेजर का फरमान

कहानी शुरू होती है एक साधारण कंपनी में, जहां कपड़ों को लेकर कोई खास सख्ती नहीं थी—बस साफ-सुथरे दिखो, यही काफी था। कोई पोलो पहनता, कोई कार्डिगन, कोई स्लैक्स—सब चलता था। लेकिन अचानक एक नया मैनेजर आया और उसने पहले ही हफ्ते में फरमान जारी कर दिया: "अब से ड्रेस कोड नियमावली के अनुसार ही पालन होगा, बिना किसी अपवाद के।"

अब भैया, नियमावली निकाली गई, तो पता चला कि वो तो पिछली सदी की है! उसमें लिखा था—पुरुषों के लिए कोट, टाई, फुल स्लीव शर्ट और फॉर्मल पैंट, और महिलाओं के लिए घुटनों तक स्कर्ट, नायलॉन की जुराबें, ब्लाउज और बंद जूते। पोलो, कार्डिगन, खाकी—सब बैन!

सोमवार आते ही दफ्तर में लोग ऐसे सजे-धजे दिखे जैसे किसी शादी में जा रहे हों। कोई पुराने जमाने की जैकेट पहन आया, किसी ने शादी में पहना सूट निकाल लिया, तो कोई 'सस्पेंडर' लटकाए घूम रहा है। अगस्त की गर्मी में लोग पसीना-पसीना—पर बॉस के आदेश का पालन पूरा।

ऑफिस बना 90 के दशक की फिल्म का सेट

तीन दिन बीते, तो माहौल कुछ-कुछ 'हम आपके हैं कौन' के सेट जैसा हो गया। एक महिला सहकर्मी ने कंधों पर बड़े-बड़े पैड वाली जैकेट पहन ली (90s का फैशन याद है न?), नायलॉन की जुराबों में गर्मी से बेहाल। एक सज्जन तो अपनी शादी का सूट पहन लाए—सोचिए, ऑफिस में सब ऐसे घूम रहे जैसे बारात में आए हों!

यहां एक यूज़र की बात याद आई—"क्या किसी ने HR को बताया कि नियमावली 90 के दशक की है?" अरे भैया, ऐसे पुराने नियम तो जैसे गांव की पंचायत के कानून—जिसे कोई बदलना भूल गया हो। एक और कमेंट में मज़ाकिया अंदाज में कहा गया, "हमारे ऑफिस का ड्रेस कोड बस इतना था: 'कपड़े पहन कर आओ!' बाकी सब चलता है।"

'कॉमन सेंस'—जिसकी कोई गारंटी नहीं!

लोगों ने मज़े लेते हुए नियमों का फायदा भी उठाया। एक कमेंट में किसी ने लिखा—"ड्रेस कोड में सिर्फ 'टाई पहनना ज़रूरी' लिखा था, सो मैंने टाई सिर पर बांध ली।" वाह भैया, इसे कहते हैं नियमों को 'आंख मूंदकर' मानना, बिल्कुल वैसे ही जैसे भारतीय दफ्तरों में 'पेपर वर्क' में गलती पकड़ने के लिए लोग जुगाड़ ढूंढते हैं।

एक और मज़ेदार किस्सा—किसी ने 1870 के ज़माने की फ्रॉक निकालकर पहन ली, क्योंकि नियम में बस इतना लिखा था कि स्कर्ट घुटनों से नीचे होनी चाहिए। ऑफिस में दो महीने तक रंग-बिरंगे गाउन में घूमती रही, बॉस ने फिर कभी किसी के पैंट की लंबाई पर ऐतराज नहीं किया!

HR की फजीहत और 'सामान्य समझ' की वापसी

गर्मी, असुविधा और पुराने फैशन के चलते कर्मचारियों ने HR में शिकायतें करनी शुरू कीं—"यह तो शत्रुतापूर्ण कार्यस्थल बन गया है!" नतीजा, एक हफ्ते बाद ही नया ईमेल—"सामान्य समझ से ड्रेस कोड का पालन करें, जैसा पहले होता था, वही सही है।"

और देखते ही देखते, पोलो और खाकी फिर से ट्रेंड में आ गए। मैनेजर ने दोबारा नियमावली की बात नहीं की। एक पाठक की टिप्पणी का अनुवाद करें तो—"कुछ चीज़ें दफ्तर में बस एक्सेल शीट की तरह होती हैं—पुरानी, पर किसी को याद तभी आती हैं जब कोई नई मुसीबत खड़ी हो जाए!"

भारतीय दफ्तरों में 'ड्रेस कोड' का सच

हमारे यहां भी कम दृश्य नहीं। सरकारी दफ्तरों में आज भी 'सफेद शर्ट-ग्रे पैंट' का चलन है, तो कुछ कंपनियों में 'मंडे फॉर्मल, फ्राइडे कैजुअल' का रिवाज। लेकिन सच्चाई यही है—जब तक कोई नई बला न आए, पुराने नियम यूं ही चलते रहते हैं। और अगर किसी ने ज्यादा अकड़ दिखाई, तो कर्मचारी भी 'जुगाड़' निकाल ही लेते हैं—कभी 'अधखुले बटन', कभी 'सैंडल के नीचे जुराब', कभी 'दुपट्टे में मोबाइल छुपाना'!

जैसा कि एक कमेंट में लिखा था, 'सामान्य समझ एक ऐसा फूल है, जो हर किसी के बगीचे में नहीं खिलता'—यानी, नियम तो बनते ही रहेंगे, असली चुनौती है—समझदारी से काम लेना।

निष्कर्ष: नियमों की दुनिया में थोड़ा हास्य ज़रूरी है

इस कहानी से एक बात तो साफ है—अधिक सख्ती कभी-कभी उल्टा पड़ जाती है। दफ्तर हो या स्कूल, नियमों के साथ मानवीय समझ और थोड़ा हंसी-मज़ाक भी ज़रूरी है। याद रखिए, काम का माहौल तभी खुशनुमा रहता है जब उसमें इंसानियत और थोड़ी मस्ती हो।

तो अगली बार जब आपके ऑफिस में कोई पुरानी नियमावली निकालकर लहराए, तो मुस्कुराकर पूछ लीजिए—"कहीं इसमें घोड़ागाड़ी पार्किंग के नियम तो नहीं लिखे?"

आपके दफ्तर का सबसे मजेदार ड्रेस कोड या अजीब नियम कौन सा है? नीचे कमेंट में ज़रूर बताइए!


मूल रेडिट पोस्ट: Manager told us we had to do the dress code to the letter… so I did, to the letter.