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जब बॉस ने मांगी 'पूरी पारदर्शिता', कर्मचारी ने ऐसा मज़ा चखाया कि सबक मिल गया!


"इस जीवंत एनिमे-प्रेरित दृश्य में, एक गोदाम कर्मचारी कार्यस्थल में 'पूर्ण पारदर्शिता' की अजीबताओं को दिखा रहा है। हाथ में क्लिपबोर्ड और चेहरे पर चंचल मुस्कान के साथ, वे नए रिपोर्टिंग मांगों को संभालते हैं जो सभी को हंसाने पर मजबूर कर देती हैं। इस मजेदार पल की कहानी के लिए ब्लॉग पोस्ट में डूब जाएं!"

ऑफिस का माहौल चाहे कहीं का भी हो, लेकिन बॉस की एक 'नई स्कीम' आती ही ऑफिस की हवा बदल जाती है। कभी 'टाइम ट्रैकिंग', कभी 'वर्क रिपोर्ट', तो कभी 'फुल ट्रांसपेरेंसी'—भाई, काम कब करें, ये तो कोई पूछे! ऐसी ही एक कहानी है, जिसमें एक समझदार कर्मचारी ने अपने बॉस को उसी की भाषा में ज़वाब देकर सबको हँसा दिया।

बॉस का 'फुल ट्रांसपेरेंसी' का नया फंडा

आइये, कहानी शुरू करते हैं—एक मझोले वेयरहाउस में काम करने वाले कर्मचारी की जुबानी। वहाँ के सुपरवाइजर ने हाल ही में 'फुल ट्रांसपेरेंसी' का नारा बुलंद किया। मतलब, अब ऑफिस का हर छोटा-बड़ा काम एक एक्सेल शीट में दर्ज करना ज़रूरी था। चाहे आप पैलेट उठाएँ, बॉक्स पर टेप लगाएँ या छींक भी मार दें, सबका रिकॉर्ड रखना ज़रूरी!

अब सोचिए, सुबह से शाम तक आदमी काम करे या हर दो मिनट में एक्सेल में एंट्री करे? हमारे देश में तो ऑफिस बॉय भी कह देगा—"साहब, ये तो हद हो गई!"

कर्मचारी की चालाकी—'जैसा कहा, वैसा किया'

बॉस ने फरमान जारी किया—"हर एक्टिविटी 100% डिटेल के साथ लॉग होनी चाहिए। अगर कोई एक भी एंट्री मिस हुई, तो मैं खुद पूरी शिफ्ट की जाँच करूँगा।"

अब कर्मचारियों को लगा बवाल हो गया! लेकिन एक सज्जन ने तो इस आदेश को दिल पर ले लिया और शुरू हो गया पूरा हिसाब-किताब लिखने में।

सुबह 7:02—"दस्ताने (ग्लव्स) ठीक किए, क्योंकि एक उंगली में खुजली थी।"
7:11—"जूते का फीता दुबारा बाँधा, क्योंकि वो ढीला हो गया था।"
7:24—"सहकर्मी ने पूछा—क्या वेंडिंग मशीन की कॉफी पसंद है?"

हर छोटी-छोटी बात, हर दो मिनट में नई पंक्ति। लंच तक उनकी शीट बाकी सबकी तुलना में तीन गुना लंबी!

जब बॉस की समझ में आई असली बात

करीब 2 बजे बॉस ने चैट में पूछा—"तुम्हारी स्टेशन से इतनी ज़्यादा एंट्रीज़ क्यों हैं?"
जवाब मिला—"साहब, आपने ही तो कहा था कि हर एक्टिविटी 100% डिटेल के साथ लिखो। मैं सिर्फ नियम का पालन कर रहा हूँ।"

बॉस के पास कोई जवाब नहीं था। थोड़ी देर बाद ऐलान हुआ—"अब लॉगिंग सिस्टम को रिवाइज़ किया जाएगा, क्योंकि इससे प्रोडक्टिविटी डाउन हो रही है।"
अगले ही दिन उस बेहूदी व्यवस्था को खत्म कर दिया गया। यानी 'फुल ट्रांसपेरेंसी' का बुखार उतर गया!

कम्युनिटी की राय—इस कहानी पर क्या बोले बाकी लोग?

रेडिट की इस पोस्ट पर कमेंट्स की बाढ़ आ गई। एक यूज़र ने लिखा, "PPE (सुरक्षा उपकरण) जैसे दस्ताने या जूते ठीक करना भी तो काम का हिस्सा है। अगर बिना जूते आओगे, तो काम से निकाल देंगे!"

एक और ने बढ़िया ताना मारा—"माइक्रोमैनेजमेंट का यही हश्र होता है। बॉस ने खुद सबक सीख लिया।"
भारत में भी ऑफिसों में ऐसा ही चलता है—कभी-कभी मैनेजर अपने ही बनाए नियमों में फँस जाते हैं।

एक मजेदार कमेंट था—"7:02—दस्ताना खुजला, 7:03—शीट में लिखा, 7:04—लिखने की एंट्री भी शीट में डाली, 7:05—अब असली काम भूल गया, घर चला गया!"
ऐसे-ऐसे व्यंग्य और मीम्स भारत के ऑफिस व्हाट्सएप ग्रुप्स में भी खूब चलते हैं।

कई लोगों ने सलाह दी—"अगर नियम समझ में न आए या फालतू लगें, तो टीम को समझाना चाहिए कि इससे उनका भला कैसे होता है। नहीं तो ऐसा 'मलिशियस कंप्लायंस' (नियम का ऊल्टा पालन) हर जगह हो सकता है।"

हमारे ऑफिसों में भी है ऐसी कई कहानियाँ

सोचिए, अगर किसी सरकारी दफ्तर में हर चाय की चुस्की, हर फोन कॉल, हर 'सर जी नमस्ते' भी लॉग करनी पड़े, तो क्या होगा?
हमारे यहाँ तो लोग कह देंगे—"साहब, इतना हिसाब तो घरवाली भी नहीं पूछती!"

लेकिन इस कहानी की सीख यही है—नियम बनाओ, लेकिन उसमें इंसानियत और समझदारी होनी चाहिए। नहीं तो कर्मचारी भी 'जैसा बोला, वैसा किया' वाला दांव खेल सकते हैं।

निष्कर्ष—कभी-कभी 'सीधा जवाब' भी बड़ा असरदार होता है

हर ऑफिस में एक न एक बार ऐसा मौका आता है, जब बॉस की नई नीति उल्टी पड़ जाती है। ये कहानी उसी का मजेदार उदाहरण है। कर्मचारियों की चतुराई और बॉस की हड़बड़ी पर पूरा ऑफिस ठहाके लगाता है।

क्या आपके ऑफिस में भी ऐसा कोई किस्सा हुआ है? नीचे कमेंट में जरूर बताइए। और हां, अगली बार कोई बॉस 'फुल ट्रांसपेरेंसी' मांगे, तो सोच-समझकर ही नियम बनवाइए!


मूल रेडिट पोस्ट: My boss wanted “full transparency”, so I gave him exactly that