जब बॉस ने बाथरूम जाने पर रोका, कर्मचारियों ने ईमेल से डुबो दिया ऑफिस
सोचिए, आप एक बैंक में काम करते हैं, वो भी प्रीमियम कस्टमर सर्विस में, जहाँ बड़े-बड़े क्लाइंट्स का ख्याल रखना रोज़ की बात है। यहाँ पर काम का तरीका आम काउंटर जैसा नहीं, बल्कि सम्मान और भरोसे वाला होता है। लेकिन एक दिन सबकुछ पलट जाता है, जब पुराने कस्टमर सर्विस मैनेजरों ने कमान संभाली और ऐसे-ऐसे अजीब नियम लागू कर दिए कि सभी हैरान रह गए।
काम का माहौल, जो अचानक बदल गया
जैसे ही नए टीम लीडर्स आए, उन्होंने पुराने भरोसे को ताक पर रखकर "टाइम थीफ्ट" (समय चोरी) के नाम पर सख्त निगरानी शुरू कर दी। दो मिनट के लिए बाथरूम जाना भी गुनाह हो गया! कर्मचारियों को धमकी दी गई कि अगर बिना बताये कुर्सी छोड़ी, या कलीग से बात की, तो नौकरी पर आंच आ सकती है। अब हर बार जब कोई बाथरूम जाए, पानी पिए, ब्रेक ले, या ग्राहक केस पर सहकर्मी से बात करे—सबका ईमेल से रिपोर्ट बनाना ज़रूरी हो गया। सोचिए, ऐसा ऑफिस जहाँ हर सांस पर हिसाब देना पड़े!
कर्मचारियों की 'मालिशियस कॉम्प्लायंस' – नियमों का जवाब नियमों से
अब भारतीय दफ्तरों में भी कई बार ऐसे 'भाई साहब' मिल जाते हैं, जो नियम का रट्टा लगाकर सबका जीना हराम कर देते हैं। Reddit पर u/ZZiggs124 की टीम ने इसका तोड़ बड़े ही मज़ेदार तरीके से निकाला – "ठीक है, बॉस! अब हम हर बार जब भी कुछ गैर-उत्पादक (unproductive) करेंगे, आपको ईमेल भेजेंगे!"
तो हुआ ये कि हर दो मिनट में, बाथरूम जा रहे हैं – ईमेल बॉस को! पानी पीने गए – ईमेल बॉस को! कलीग से केस डिस्कस किया – दोनों ने अलग-अलग ईमेल कर दी! कंप्यूटर लॉक किया – बस, एक ईमेल और! देखते-देखते प्रोजेक्ट मैनेजर्स का मेलबॉक्स इतना भर गया कि असली ज़रूरी मेल्स भी उसमें डूब गईं। बॉस लोग परेशान, असहाय, और चिढ़े हुए! और आखिरकार, वो कड़े नियम भी वापस ले लिए गए।
कमेंट्स में छुपा जनता का गुस्सा और हंसी
Reddit की जनता ने इस कहानी पर खूब मज़े लिए और कुछ बड़े काम के तजुर्बे भी बांटे। एक यूज़र ने लिखा, "ऊपरवाले हमेशा सोचते हैं कि वे सब जानते हैं, काश उन्हें छह महीने नीचे वालों की तरह काम करना पड़ता!" किसी ने Peter Drucker की मशहूर लाइन का जिक्र किया – "जो मापा जाता है, वही सुधरता है," मगर साथ ही बताया कि जब आप इंसानों को मापते हैं, तो गड़बड़ हो जाती है।
एक और टिप्पणी आई, "मैनेजर्स और वर्कर्स के लक्ष्य अलग होते हैं। कर्मचारी काम निपटाना चाहता है, और मैनेजर नंबर देखना चाहता है।" और कुछ ने तो अपने ऑफिस के किस्से भी सुनाए, जैसे किसी ने सिक्योरिटी कैमरा वाले बॉस को हर बार दरवाज़ा खुलने पर ईमेल भेजना शुरू किया, और बॉस ने डेढ़ घंटे में ही हार मान ली!
हंसी-मजाक भी खूब हुआ – एक ने लिखा, "हर बार जब मैं ईमेल भेजता हूँ कि मैं उत्पादक नहीं हूँ, तब भी तीन मिनट बर्बाद करता हूँ, और उस पर भी अलग से ईमेल कर देता हूँ।" किसी ने सलाह दी, "अगर यूनियन का नाम ले लो, तो बॉस के पसीने छूट जाएंगे!"
भारतीय संदर्भ में – 'माइक्रोमैनेजमेंट' का झोल
हमारे यहां भी कई दफ्तरों में देखा जाता है कि जब नया मैनेजर आता है, तो कुछ अलग करने की धुन में पुराने तजुर्बे को अनदेखा कर देता है। ऊपर से आने वाले 'रूल्स' नीचे वालों की असलियत से मेल नहीं खाते। जैसे एक कमेंट में किसी ने बताया, "कंपनी में नया मैनेजर आया, मैंने उसे सब सिखाया, फिर वो सारा काम मुझसे ही करवाने लगा, आखिर मैंने नौकरी छोड़ दी।"
असल में, 'माइक्रोमैनेजमेंट' यानी हर छोटी चीज़ पर कड़ी निगरानी, कर्मचारियों की रचनात्मकता और भरोसे को मार डालती है। काम का असली मज़ा तभी है, जब ऊपरवाले अपने कर्मचारियों को टूल्स, समय और भरोसा दें। एक कमेंट में किसी ने बताया, "जब मैंने खुद काम किया, तो तुरंत समझ गया कि कहां काम फालतू खर्च हो रहा है, और कैसे आसान किया जा सकता है।"
निष्कर्ष – नियम तभी अच्छे, जब समझदारी से लागू हों
इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है – दफ्तर में नियम बनाना जरूरी है, लेकिन ज़रूरत से ज्यादा कड़ा अनुशासन, उल्टा नुकसान कर सकता है। अगर कर्मचारियों को हर बारीक बात पर रिपोर्ट करने को कहेंगे, तो एक दिन ऑफिस सिर्फ ईमेल भेजने और जवाब देने का अड्डा बन जाएगा, असली काम रह ही जाएगा पीछे।
तो अगली बार अगर आपके ऑफिस में भी कोई 'माइक्रोमैनेजर' नया-नया कानून लाए, तो सोच-समझकर, हंसी और समझदारी से जवाब दें। और हाँ, अगर कहानी अच्छी लगी हो, तो कमेंट करके बताइए – क्या आपके ऑफिस में भी कभी ऐसा कुछ हुआ है? अपने अनुभव जरूर शेयर करें!
मूल रेडिट पोस्ट: You accuse us of time theft and being unproductive? Then look forward to an inbox full of unnecessary reports.