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जब बॉस ने बढ़ाया काम का बोझ, लेकिन उल्टा पड़ गया दांव!

होम डिपो के सहायक की एनीमे चित्रण, जो गाड़ियों को संतुलित करते हुए ग्राहकों की मदद कर रहा है।
इस जीवंत एनीमे-शैली की छवि में, हमारा समर्पित होम डिपो सहायक व्यस्त पार्किंग में गाड़ियों को इकट्ठा करने और ग्राहकों की मदद करने में व्यस्त है। होम डिपो में एक दिन की हलचल और हास्य का अनुभव करें!

किसी भी काम की जगह पर जब एक ही आदमी से दो-दो काम करवाए जाएं, तो या तो चमत्कार होता है या फिर गड़बड़। आज की कहानी कुछ ऐसी ही है – जहाँ एक कर्मचारी ने बॉस की बात तो मानी, लेकिन नतीजा सबके लिए बड़ा मज़ेदार (और थोड़ी-सी शर्मिंदगी वाला) निकला।
अगर आपने कभी भीड़भाड़ वाले सुपरमार्केट में काम किया है या बस वहां खरीदारी की है, तो "शॉपिंग ट्रॉली" और उसे लौटाने की झंझट से आप भलीभांति वाकिफ़ होंगे। अब ज़रा सोचिए, जब एक अकेला बंदा पूरे पार्किंग लॉट की ट्रॉलियाँ और ग्राहकों की मदद, दोनों अकेले संभाले… और ऊपर से बॉस नया प्रोजेक्ट थमा दे!

बॉस के हुक्म और कर्मचारी की ‘सीधी-सादी’ आज्ञापालन

अमेरिका के मशहूर Home Depot में एक लॉट असोसिएट (मतलब, ट्रॉली और भारी सामान इधर-उधर करने वाला) की ड्यूटी पहले ही सिर के ऊपर थी। उसका रोज़ का काम – बाहर से ट्रॉली इकट्ठा करना, और ग्राहकों का सामान गाड़ी में लादना। अब गर्मियों की भीड़, सिर्फ वही अकेला और ऊपर से सुपरवाइजर (यहाँ नाम देते हैं – ‘करन’ जी) आकर बताती हैं कि एएसएम काइल ने नया काम थमा दिया है – स्टोर के साइड में एक गंदा इलाका है, उसे साफ़ करो और वहां सारी ट्रॉलियाँ जमा करो।

आदेश है, तो आदेश है। कर्मचारी ने बाकायदा उस ‘गंदगी के अड्डे’ को पाँच घंटे में चमका डाला। बीच-बीच में ग्राहकों के लिए भारी सामान भी उठाता रहा, लेकिन ट्रॉली लॉट? अरे साहब, वहाँ तो पांच घंटे तक कोई झाँकने भी नहीं गया। जब सफाई पूरी हुई, तो बाहर का पार्किंग लॉट किसी हाट-बाज़ार जैसा दिख रहा था – ट्रॉलियाँ इधर-उधर बिखरी पड़ीं, कोई व्यवस्था नहीं।

‘करन’ जी की नाराज़गी और कर्मचारी का सीधा जवाब

अब ‘करन’ जी को तो पार्किंग में एक भी ट्रॉली बिखरी देखना पसंद नहीं था। उन्होंने तुरंत कर्मचारी को घूरकर पूछा – "ये सब क्या है?"
कर्मचारी ने पूरी मासूमियत से जवाब दिया, "मैं तो वही कर रहा था जो आपने और काइल साहब ने कहा था।"

उधर कर्मचारी चला गया लंच पर, और बाकी डिपार्टमेंट के लोग दौड़-दौड़कर ट्रॉलियाँ समेटने लगे!
कहते हैं, इसके बाद काइल साहब ने फिर कभी उसे कोई एक्स्ट्रा प्रोजेक्ट नहीं दिया।

क्या भारत में भी ऐसी ही होती हैं आफिस की चालबाज़ियाँ?

अब बात करें अपने देश की – यहाँ भी दफ्तरों, दुकानों या गोदामों में अक्सर एक ही आदमी से दो-तीन लोगों का काम करवाने का चलन है। कभी बॉस कहते हैं – "ये भी कर लो, वो भी निपटा दो", और जब कुछ गड़बड़ हो जाए तो सारा ठीकरा कर्मचारी के सिर!
यहाँ भी अक्सर यही देखने को मिलता है – जब तक कर्मचारी ‘हाँ जी, हाँ जी’ करता है, बॉस खुश। लेकिन जैसे ही वह ‘आज्ञापालन’ करके दिखा दे कि ज्यादा काम एक साथ संभव नहीं, तो बॉस को खुद ही समझ आ जाता है।

एक कमेंट में किसी ने लिखा – "कभी-कभी मैनेजमेंट को अपनी गलती दिखाने के लिए, उनकी आज्ञा वैसे ही माननी चाहिए जैसी वो चाहते हैं।"
और ये बात हर भारतीय कर्मचारी ने कभी न कभी जरूर महसूस की होगी – ‘बॉस तो समझेंगे नहीं, जब तक खुद ही न भुगत लें।’

ग्राहक, ट्रॉली और अनुशासन – भारत बनाम अमेरिका

रिडिट के कमेंट्स में कई लोगों ने एक और मज़ेदार बात उठाई – अमेरिका में लोग ट्रॉली वापिस पार्किंग के ‘कोरल’ (एक तरह की खुली जगह जहाँ ट्रॉली जमा करते हैं) में छोड़ जाते हैं। लेकिन फिर भी, कई लोग अपनी ट्रॉली वहीं पार्किंग में छोड़ देते हैं।
भारत में, कुछ बड़े मॉल्स में अब ट्रॉली मिलती है, लेकिन ज़्यादातर लोग खरीदारी के बाद ट्रॉली को वहीं छोड़कर निकल जाते हैं, और स्टाफ बेचारा दौड़-दौड़कर इकट्ठा करता है।
जर्मनी, नीदरलैंड्स जैसे देशों में ट्रॉली लेने के लिए सिक्का डालना पड़ता है – ट्रॉली वापिस करो, सिक्का वापिस मिले। एक कमेंट में किसी ने लिखा, "अगर सब लोग ट्रॉली खुद वापिस करने लगें, तो ट्रॉली इकट्ठा करने वालों की नौकरी ही चली जाएगी!"
इस पर एक भारतीय कहावत याद आती है – "रोज़गार के लिए थोड़ी-बहुत गड़बड़ी भी ज़रूरी है!"

कम वेतन, ज़्यादा काम – क्या यही है सच्चाई?

Home Depot जैसी जगहों के कमेंट्स पढ़कर साफ़ लगता है कि वहाँ स्टाफ की भारी कमी रहती है, और कर्मचारियों से उम्मीद की जाती है कि वे दो-तीन लोगों का काम अकेले करें।
यहाँ भी एक पाठक ने सलाह दी – "इतना भी मत दौड़ो कि सेहत ही बिगड़ जाए। कम वेतन की नौकरी में जान खपाने का कोई फायदा नहीं।"
दूसरी तरफ़, कुछ लोगों ने अपने अनुभव साझा किए कि कैसे उनकी जिम्मेदारियाँ बढ़ाते-बढ़ाते, उन्हें खुद ही इस्तीफा देना पड़ा, क्योंकि बॉस लोग मदद मांगने पर टालमटोल करते हैं।
कहानी का मूल संदेश – काम उतना ही करो जितना संभल पाए, और जब ज़रूरत हो, बॉस को उनकी ही आज्ञा का नतीजा दिखा दो!

निष्कर्ष: आपके ऑफिस में भी ऐसा हुआ है क्या?

तो दोस्तों, इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?
अगर कोई बॉस आपको एक साथ कई काम देकर ‘सुपरहीरो’ समझ रहा है, तो कभी-कभी उनकी ही आज्ञा का ‘सीधा पालन’ करके दिखाना चाहिए – ताकि उन्हें समझ आ जाए कि हर काम का एक आदमी नहीं हो सकता।
कभी-कभी कर्मचारी के ‘मालिशियस कम्प्लायंस’ से ही बॉस को असलियत का आईना दिखता है।

क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है – जब आपने बॉस की बात मानकर ही उन्हें उनकी गलती महसूस कराई हो? कमेंट में जरूर बताइए! और हाँ, अगली बार सुपरमार्केट जाएं तो ट्रॉली वापस रखना मत भूलिए, बेचारे स्टाफ की भी लाइफ आसान हो जाएगी।
"काम का बोझ बांटिए, और मुस्कुराइए!"


मूल रेडिट पोस्ट: ASM gives me more work and it backfires spectacularly