जब बॉस ने दिया मुंहजबानी वादा, लिखित में उलझ गया करियर!
दोस्तों, ऑफिस की राजनीति और बॉस की दोहरी बातें तो आपने खूब सुनी होंगी, लेकिन जब करियर, पढ़ाई और मानसिक स्वास्थ्य एक साथ उलझ जाए तो कहानी कुछ अलग ही रंग ले लेती है। आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं Reddit पर वायरल हुई एक ऐसी कहानी, जिसमें एक कर्मचारी ने MBA की पढ़ाई के लिए ऑफिस से छूट मांगी—मुंहजबानी हाँ तो मिल गई, लेकिन लिखित की ऐसी दरकार पड़ी कि बुरा हाल हो गया!
ऑफिस का "हाँ" और "ना" का खेल
सोचिए, आप अपने करियर में फंसे हुए हैं, रोज़ नया जॉब ढूंढ़ते-ढूंढ़ते थक चुके हैं, लेकिन कोई रास्ता नहीं सूझ रहा। ऐसे में अचानक MBA में एडमिशन मिल जाए तो उम्मीद की नन्ही किरण दिखती है। हमारे आज के नायक ने भी ऐसा ही किया—करियर को नई दिशा देने के लिए पार्ट-टाइम MBA में दाख़िला ले लिया।
अब भारत में भी आमतौर पर जब कोई नौकरीपेशा पढ़ाई करना चाहता है, तो पहले बॉस का मूड देखता है—कभी चाय पर, कभी कैबिन में, कभी वॉट्सऐप पर—मुंहजबानी हाँ-ना सुनकर ही आगे बढ़ता है। यही हुआ—सब बॉस (छोटे, मंझले, बड़े, और 'बिग ब्रदर' टाइप) ने बोल दिया, "हाँ-हाँ, पढ़ लो, बस काम में दिक्कत न हो!" लिखित की किसी ने बात नहीं की, क्योंकि दो घंटे की क्लास, वो भी सुबह-शाम, कौन सा बड़ा मुद्दा है!
जब एक छुट्टी ने मचाया बवाल
फिर क्या था, MBA की पढ़ाई शुरू हो गई, काम भी चलता रहा। लेकिन भाई साहब, ऑफिस की राजनीति को कौन समझा? एक दिन मानसिक थकावट के चलते थोड़ा सा मज़ाक ग़लत जगह चला गया, ऊपर से एक सच्ची-सच्ची बीमार छुट्टी ले ली। अब यहां भारत के ऑफिसों में भी सुना है, "इतनी जल्दी छुट्टी! टीम का क्या होगा?" – बस वही हुआ।
बड़े साहब ने फोन करके पूछ लिया, "इतनी छुट्टियाँ क्यों ले रहे हो? टीम पर असर पड़ेगा!" भाई साहब, तीन महीने में दूसरी छुट्टी और इतनी पूछताछ! जब हमारे नायक ने ईमेल से लिखकर सफाई दी तो मैडम का पारा चढ़ गया—"अब तो मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं करूंगी!"
यहां एक कमेंट करने वाले ने बढ़िया तंज कसा: "भई, तुम्हें MBA के लिए लिखित में अनुमति लेनी चाहिए थी, आजकल तो घर के नौकर को भी लिखकर बुलाते हैं!" सच है, आज के दौर में 'कागज का टुकड़ा' बड़ा भारी पड़ता है।
ऑफिस के डबल स्टैंडर्ड्स और 'कमाल की न्यूज़'
पूरी कहानी में सबसे मज़ेदार बात तो ये रही कि जहां अभी तक बॉस कहते थे, "ये 9-5 की नौकरी नहीं, जब काम हो तब आओ", वहीं अब लिखित अनुमति के लिए स्टैंडर्ड ऑफिस टाइम 8 से 5 पकड़ लिया गया! यानी जब तक कर्मचारी की ज़रूरत हो, तब तक ओवरटाइम कोई गिनता नहीं, लेकिन जब कर्मचारी को एक घंटा क्लास के लिए चाहिए, तो नियम कायदे उगल दिए जाते हैं।
एक अन्य पाठक ने कमेंट में लिखा, "जब तक आप ओवरटाइम फ्री में देते रहो, सब ठीक है। जैसे ही अपने लिए कुछ मांगो, नियमों की किताब खुल जाती है!" क्या गज़ब की बात कही—ये तो हर भारतीय कर्मचारी की कहानी है!
क्या MBA से बदलेगी ज़िंदगी?
अब सवाल ये है कि क्या MBA से किस्मत पलट जाएगी? कुछ पाठकों ने तो मज़ाक में कह दिया, "इतना सब झेलकर भी अगर MBA पूरा कर लिया, तो अगली नौकरी में डबल तन्ख्वाह जरूर मिलेगी!" वहीं किसी ने चिंता जताई, "मानसिक स्वास्थ्य पहले संभालो, वरना डिग्री भी बोझ लगने लगेगी।"
यहां भारत में भी यही हाल है—बड़े-बड़े सपने, लेकिन ऑफिस की राजनीति, बॉस की मनमानी और नियमों की झड़ी के आगे कई बार हिम्मत डगमगा जाती है। ऐसे में परिवार, दोस्तों का साथ और खुद की मानसिक सेहत सबसे ज़रूरी है।
सबक और आपका अनुभव
कहानी से एक बात तो पक्की है—ऑफिस में हर बात लिखित में लेना ही समझदारी है। चाहे छुट्टी, प्रमोशन, या पढ़ाई की अनुमति—कागज़ पर दस्तखत होना चाहिए, वरना मुंहजबानी वादे हवा में उड़ जाते हैं।
तो दोस्तों, क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है, जब बॉस ने मुंहजबानी हाँ कहकर बाद में पलटी मार दी? या ऑफिस में नियमों का डबल स्टैंडर्ड झेलना पड़ा हो? अपने अनुभव नीचे कॉमेंट में ज़रूर साझा करें—शायद आपकी कहानी किसी और को हिम्मत दे दे!
शुभकामनाएँ उस Reddit योद्धा को, और आपको भी—करियर की इस जंग में जीत आपकी हो!
मूल रेडिट पोस्ट: My Attempt (Fingers Crossed)