जब बॉस ने दिया धीमा कंप्यूटर, कर्मचारी ने दिखाया समझदारी का जलवा
ऑफिस का माहौल, बॉस की तुनकमिजाजी और काम का अंबार – ऐसे में अगर आपको कोई बड़ा प्रोजेक्ट मिल जाए, वो भी बिना ढंग के संसाधनों के, तो क्या होगा? सोचिए, अगर आपके पास कंप्यूटर तक नहीं हो और बॉस कह दें – "बिजनेस केस बनाओ, तभी मिलेगा कंप्यूटर!" ऐसे में हर कर्मचारी का पारा चढ़ना तय है। लेकिन आज की हमारी कहानी का हीरो कुछ हटके है। उसने गुस्से या शिकायत के बजाय, होशियारी से काम लिया और आखिर में बॉस को ही उनकी औकात दिखा दी!
जब 'स्वागत' के नाम पर मिली जिम्मेदारी और झटका
कहानी Reddit यूज़र u/Working_Patience_261 की है, जिन्हें उनकी कंपनी में पेपर बेस्ड लर्निंग को कंप्यूटर बेस्ड बनाने की जिम्मेदारी अचानक थमा दी गई – यानी ‘वॉलनटोल्ड’ कर दिया गया! (ये शब्द हमारी सरकारी दफ्तरों की ‘फोर्स्ड वॉलंटियर’ वाली संस्कृति जैसा है – जब मर्जी से नहीं, मजबूरी में काम थमाया जाए।) मज़ेदार बात ये कि न तो उनके पास अपना डेस्क था, न कंप्यूटर। मजबूरी में उन्होंने अपना पर्सनल लैपटॉप लाया, लेकिन बॉस को ये नागवार गुज़रा। बोले – "बिजनेस केस बनाओ, तभी कंपनी कंप्यूटर देगी।"
एक हफ्ते बाद बड़ी उम्मीद से कंप्यूटर मिला, लेकिन वो भी ऐसा – जैसे किसी सरकारी दफ्तर में सबसे पुराना पंखा! बस नाम के लिए, जिसमें काम चल जाए, वो देने का एहसान कर दिया।
धीमे कंप्यूटर और बॉस की जल्दबाजी – जब धैर्य बना हथियार
अब असली मज़ा आया! प्रोजेक्ट था – PowerPoint प्रेजेंटेशन को Adobe Captivate में बदलना। जैसे-तैसे फाइल बनाई, लेकिन जब कंपाइलिंग (Final Output) की बारी आई, कंप्यूटर ने कह दिया – "तीन घंटे लगेंगे, शायद..." अब भला कोई तीन घंटे तक स्क्रीन ताकता रहेगा?
हमारे हीरो ने सोचा – चलो, ब्रेक रूम में जाकर चाय-सामोसे का मज़ा लेते हैं। तभी प्रोजेक्ट के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर टकरा गए। पूछ बैठे – "यहाँ क्या कर रहे हो?" जवाब मिला – "सर, फाइल बनने में दो घंटे और लगेंगे, तब तक झुंझलाहट से दूर रह रहा हूँ।" आखिर पांच घंटे बाद फाइल बनी!
दूसरे दिन ऑफिस आए तो डेस्क पर टॉप मॉडल कंप्यूटर और दो मॉनिटर – जैसे किसी IT कंपनी में नए जॉइनर को वेलकम गिफ्ट मिला हो। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती...
जैसे को तैसा – बॉस की चाल उल्टी पड़ी
अब बॉस साहब को जलन हुई। उन्होंने नया कंप्यूटर अपने डेस्क पर रख लिया और हीरो को फिर से सबसे पुराना, धीमा कंप्यूटर थमा दिया – जैसे हमारे सरकारी दफ्तरों में पुराने कंप्यूटर जूझते रहते हैं! इस बार फाइल बनने में दस घंटे लग गए। हीरो फिर ब्रेक रूम में – इसी दौरान डायरेक्टर फिर दिखे, हीरो ने मुस्कराकर नमस्ते किया और अपना खाना खाने लगे।
तीसरे दिन डेस्क पर दो कंप्यूटर – एक वो, जो बॉस अभी भी कंपाइल करवा रहे थे (जो फाइल कभी बनी ही नहीं, बल्कि BSOD – Blue Screen of Death पर फंस गई), दूसरा वही टॉप मॉडल। अब बॉस साहब अपना डेस्क साफ कर रहे थे, क्योंकि उन्हें फ्रंटलाइन नॉन-बॉस की पोजिशन पर भेज दिया गया। कहावत है – "जैसा बोओगे, वैसा काटोगे!"
ऑफिस की राजनीति और 'चुप्पी' की ताकत: कमेंट्स से सीख
Reddit पर इस कहानी ने खूब वाहवाही बटोरी। एक यूज़र ने लिखा – "कभी-कभी बिना हो-हल्ला किए, नियमों का पालन करना ही सबसे असरदार होता है। समय खुद सच दिखा देता है।" दूसरे ने जोड़ा – "चुप रहकर काम करना, बड़ी ताकत है।" ये बात भारतीय दफ्तरों में भी खूब लागू होती है – कई बार ज्यादा बोलने वाले खुद फंस जाते हैं, और चुपचाप अपना काम करने वाले जीत जाते हैं।
एक और कमेंट में किसी ने अपने अनुभव साझा किए – "हमारे यहाँ बड़े-बड़े बॉस हमेशा सबसे महँगा कंप्यूटर लेते हैं, सिर्फ ईमेल पढ़ने के लिए!" और ये बात सच भी है – अक्सर ऑफिस में जो सबसे तेज़ कंप्यूटर होते हैं, वो मैनेजरों की मेज पर शोभा बढ़ाते हैं, जबकि असली मेहनती कर्मचारियों को पुराने कंप्यूटर से ही काम चलाना पड़ता है।
एक यूज़र ने बढ़िया उदाहरण दिया – "ऑफिस में कई बार, असली पावरफुल मशीनें दिखने में पुरानी लगती हैं, लेकिन अंदर से अपग्रेड रहती हैं। बाहर से दिखावा, अंदर से असलियत!" ठीक वैसी ही स्थिति हमारे सरकारी सिस्टम्स, रेलवे के पुराने कंप्यूटर या बैंक की मशीनों में भी देखने को मिलती है।
सीख और मज़ाक – भारतीय दफ्तरों के लिए सबक
इस कहानी से एक और बड़ा सबक मिलता है – "कंपनी अपने कर्मचारियों को सही संसाधन दे, वरना काम रुक जाएगा।" कई बार मैनेजर अपनी प्रतिष्ठा के लिए महँगे गैजेट्स ले लेते हैं, लेकिन असल में काम करने वालों को ही दिक्कत होती है। एक कमेंट ने तो ये भी बताया – "अगर ऑफिस में हर दिन सौ कर्मचारियों के कंप्यूटर बीस मिनट देरी से चालू होते हैं, तो कितनी प्रोडक्टिविटी का नुकसान होता होगा!"
और अंत में, जब बॉस खुद अपने ही जाल में फँस जाएं – वो भारतीय कहावत याद आती है, "उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे!" लेकिन इस बार कोतवाल ने ही चोर को रंगे हाथों पकड़ लिया।
निष्कर्ष – आपकी राय क्या है?
दोस्तों, इस कहानी में जहां चुप्पी और समझदारी की जीत हुई, वहीं ऑफिस की राजनीति का असली चेहरा भी दिखा। क्या आपके ऑफिस में भी कभी ऐसा हुआ है कि संसाधन की कमी या बॉस की बचतनीति की वजह से आपको परेशानी झेलनी पड़ी हो? या किसी ने आपकी मेहनत का श्रेय ले लिया हो? अपने अनुभव नीचे कमेंट में ज़रूर शेयर करें! और हाँ, अगली बार जब बॉस धीमा कंप्यूटर थमा दें, तो धैर्य रखिए – हो सकता है किस्मत आपके हक में पलट जाए!
मूल रेडिट पोस्ट: Use Slow Computer for Demanding Project