जब बॉस ने तकलीफ में भी ब्रेक न दी, कर्मचारी ने बीच शिफ्ट में नौकरी छोड़ दी – और जाते-जाते ग्रॉसरी भी खरीद ली!
कभी-कभी ऑफिस या दुकान में काम करते हुए लगता है कि बॉस को हमारी तकलीफ से कोई मतलब ही नहीं! और जब दर्द हद से बढ़ जाए, तो इंसान क्या करे? आज की कहानी एक ऐसे कर्मचारी की है, जो अपनी बीमारी के बावजूद कड़ी मेहनत कर रहा था, लेकिन जब इंसानियत की उम्मीद टूट गई तो उसने ऐसा कदम उठाया कि सब हैरान रह गए।
जब दर्द ने दी दस्तक, लेकिन सहानुभूति नदारद
कहानी है एक ऐसे युवक की, जिसे जनवरी में पता चला कि उसकी बाईं टांग की हड्डी में ट्यूमर है। डॉक्टर ने ऑपरेशन किया, लंबा इलाज चला और कड़ी मेहनत के बाद दो-ढाई हफ्ते पहले ही उसने फिर से नौकरी जॉइन की थी। डॉक्टर ने कह रखा था – "अब कोई पाबंदी तो नहीं, लेकिन संभलकर रहना, वरना हड्डी फिर से टूट सकती है।"
अब सोचिए, रविवार का दिन – दुकान में सबसे ज्यादा भीड़। युवक को कर्बसाइड शॉपिंग के साथ-साथ ग्राहकों के बैग कार तक ले जाने का काम मिला। एक डेढ़ घंटे बाद ही टांग में भयानक दर्द शुरू हुआ। हालत ऐसी कि चल भी नहीं पा रहा था। उसने शिफ्ट लीडर (यानि सुपरवाइजर) से विनती की – “दीदी, क्या मैं 20 मिनट पहले ब्रेक ले सकता हूँ? दर्द बहुत है, बैठना जरूरी है।”
शिफ्ट लीडर का जवाब – “मैं भी दर्द में हूँ, ये टीम वर्क है। जब तक डॉक्टर का नोट नहीं है, ब्रेक नहीं मिलेगा।” (यहाँ मज़ेदार बात ये थी कि युवक के पास डॉक्टर का नोट था!) पांच मिनट बाद शायद लीडर का दिल पसीजा और उसने ब्रेक दे दिया।
‘बस बहुत हो गया!’ – नौकरी छोड़ने का फिल्मी तरीका
ब्रेक पर बैठते ही युवक ने सोचा – “अब और नहीं! इस लीडर के साथ पहले भी कई बार दिक्कत हुई है, लेकिन सीनियर्स ने कभी कुछ नहीं किया।" ब्रेक के बाद सीधे मैनेजर के पास गया और बोला – “मैं जा रहा हूँ, अब और नहीं सह सकता।” और टाइम क्लॉक पर जाकर खुद ही छुट्टी की घंटी बजा दी!
यहाँ कहानी में ट्विस्ट ये था कि जाते-जाते साहब ग्रॉसरी भी खरीदते रहे! बाहर निकलते वक्त लीडर और मैनेजर ने ऐसे घूरा जैसे ‘दही जमाने वाली’ आँखें हो। युवक को खुद भी हँसी आ गई। असल में, दर्द के बावजूद, उसने दवाई लेनी थी, इसलिए वो ग्रॉसरी जल्दी-जल्दी खरीद रहा था।
कमेंट्स में मची धूम – 'ऐसी छुट्टी तो कोई बॉलीवुड हीरो ही ले सकता है!'
रेडिट पर इस कहानी ने धूम मचा दी। एक पाठक ने हँसी में लिखा, “भाई, नौकरी छोड़कर ग्रॉसरी लेने जाना, ये तो पावर मूव है!” दूसरा बोला, “मैं भी एक बार वेटर की नौकरी बीच में छोड़कर, अपने पुराने रेस्टोरेंट में स्टाफ डिस्काउंट से डिनर कर आया था!”
एक और पाठक ने मज़ाकिया अंदाज में कहा, “तुम्हारे पास डॉक्टर का नोट था, फिर भी ब्रेक नहीं दी? यही तो असली ‘पेटी रिवेंज’ है!” किसी ने कहा, “भाई, जाते-जाते किसी से ग्रॉसरी कार तक ले जाने के लिए मदद भी मांग लेता, मजा ही आ जाता!”
कुछ ने गंभीरता से लिखा – “ऐसे मैनेजर काम के बोझ में इंसानियत भूल जाते हैं। एक अच्छा बॉस वही है, जो अपने स्टाफ की तकलीफ को समझे। मैं खुद अपनी दुकान में ऐसे लोगों को घर भेज देता हूँ, जो बीमार हों। कर्मचारी पहले, दुकान बाद में।”
भारतीय कार्य-संस्कृति में ऐसी घटनाएँ कितनी आम हैं?
अगर भारत के सन्दर्भ में बात करें, तो ऐसे किस्से हर जगह मिल जाएंगे। कितनी बार आपने ऑफिस में देखा है – कोई बीमार है, लेकिन बॉस कहता है, “थोड़ा और रुक जाओ, मीटिंग खत्म होते ही ब्रेक ले लेना!” या फिर, “जब तक मेडिकल सर्टिफिकेट नहीं लाओगे, छुट्टी मंजूर नहीं!” यहाँ तक कि कई लोग तो बीमारी छुपाकर काम करते रहते हैं, डरते हैं कहीं नौकरी न छूट जाए।
भारतीय समाज में कहावत है – "अपना दर्द खुद ही समझना पड़ता है, दूसरों के लिए तो तुम बस एक नंबर हो।" लेकिन आजकल युवाओं को भी समझ आ गया है कि, "सेहत से बढ़कर कुछ नहीं!" जैसे-तैसे काम खींचना, सिर्फ बॉस को खुश करना, इसका कोई फायदा नहीं, अगर आपकी सेहत ही साथ छोड़ दे।
निष्कर्ष – सेहत सबसे बड़ी पूँजी, नौकरी तो फिर मिल जाएगी
इस कहानी में कर्मचारी ने ‘पेटी रिवेंज’ जरूर ली, लेकिन असल में ये सबक है – अगर आपकी सेहत खतरे में है, तो नौकरी छोड़ना भी कोई शर्म की बात नहीं। चाहे भारत हो या विदेश, हर जगह अच्छे और बुरे मैनेजर मिलेंगे। लेकिन खुद की इज्जत, आराम और सेहत सबसे ऊपर है।
आखिर में, सभी पाठकों से सवाल – क्या आपने कभी ऐसी कोई ‘पेटी रिवेंज’ ली है? या ऑफिस में किसी ने आपके साथ ऐसा सलूक किया हो, जिसमें आपको बोलना पड़ा – "बस, अब और नहीं!"? अपने अनुभव नीचे कमेंट में जरूर साझा करें!
और याद रखिए, "अपना ख्याल रखना सबसे बड़ी बहादुरी है।" नौकरी तो फिर से मिल सकती है, लेकिन सेहत एक बार गई, तो लौटेगी नहीं!
मूल रेडिट पोस्ट: My Shift Leader Tried To Tell Me I Couldn't Go On A Early Break Because I Couldn't Walk So I Quit In The Middle Of My Shift On Our Busiest Day.