जब बॉस ने जबरन कारपूल करवाया, और फिर मिली 'स्पोर्ट्स कार' वाली सबक!
ऑफिस की दुनिया में बॉस की फरमाइशें तो आम बात हैं, लेकिन जब फरमाइश आपके घर-ऑफिस के सफर से जुड़ी हो, और वो भी आपकी खुद की गाड़ी में किसी अजनबी सहकर्मी के साथ... तो? सोचिए, अगर किसी दिन आपके बॉस कह दें – "टीम प्लेयर बनो, अपने पड़ोसी को रोज़ लिफ्ट दो!" तो आप क्या करेंगे?
आज की कहानी एक ऐसे इंजीनियर की है, जिसने अपने मैनेजर और जिद्दी सहकर्मी को सबक सिखाने के लिए एकदम देसी-जुगाड़ वाला तरीका अपनाया – और वो भी स्टाइल में!
ऑफिस बॉस की टीमवर्क की अजीब परिभाषा
कहानी के हीरो हैं एक सीनियर फर्मवेयर इंजीनियर, जो रोज़ एक घंटे का लंबा सफर तय कर ऑफिस जाते थे। उन्होंने एक इलेक्ट्रिक कार (EV) ली थी, जो बस-बमुश्किल घर से ऑफिस और वापसी का सफर पूरा कर सकती थी। भारत में जैसे CNG या इलेक्ट्रिक वाहनों को टैक्स में छूट मिलती है, वैसे ही वहां EV को 'कारपूल लेन' में अकेले चलाने की इजाज़त थी – मतलब ट्रैफिक जैम से राहत!
अब हुआ यूं कि नए-नवेले पड़ोसी सहकर्मी ने कारपूल का प्रस्ताव दिया – "चलो साथ चलें, टाइम बचेगा।" लेकिन दिक्कत ये थी कि उस सहकर्मी की खुद की ड्राइविंग ऐसी थी कि मानो दिल्ली की बस में बैठे हों, आंखें आधी बंद, और ध्यान कहीं और! हीरो ने साफ मना कर दिया – ना उनके साथ जाना, ना उन्हें अपनी EV में बिठाना (क्योंकि वजन बढ़ता तो बैटरी जवाब दे देती)।
लेकिन सहकर्मी ने हार नहीं मानी – सीधे बॉस के पास शिकायत लेकर पहुंच गए। बॉस ने भी वही पुरानी लाइन मारी, "टीम प्लेयर बनो, थोड़ा एडजस्ट करो!" अब क्या करें?
जुगाड़ू जवाब – 'धांसू' कारपूल का देसी फंडा
अब हीरो ने ठानी – ठीक है, मांग पूरी करेंगे... लेकिन अपने अंदाज में! शुक्रवार को उन्होंने अपनी 1971 मॉडल 'Datsun 240Z' स्पोर्ट्स कार निकाली। सोचिए, जैसे कोई अपने दोस्त को राजदूत या यामाहा RX100 पर ले जाए – झटके, शोर, रफ्तार... सब कुछ दोगुना!
जैसे ही सहकर्मी कार में बैठे, तेज़ म्यूजिक बजा, कार की स्पीड ऐसी कि लगता था रोड पर नहीं, रेसिंग ट्रैक पर हैं। कुछ ही मिनटों में सहकर्मी के चेहरे का रंग उड़ गया। शाम को ऑफिस से लौटते वक्त जनाब ने साफ कहा, "मैं तो Uber से घर जाऊंगा!" और फिर कभी कारपूल की बात नहीं की।
ऑफिस कमेंट्री: टीमवर्क या जबरदस्ती?
इस किस्से पर Reddit कम्युनिटी में खूब चर्चा हुई। एक यूज़र ने लिखा – "बॉस को क्या हक है कि वो आपकी पर्सनल लाइफ में दखल दे?" किसी ने सलाह दी, "अगर बॉस चाहते हैं कि आप ऑफिस के बाहर भी सहकर्मी को लिफ्ट दो, तो उसका खर्चा भी कंपनी से लो, और ओवरटाइम भी जोड़ लो!"
यही नहीं, एक मज़ेदार कमेंट था – "अगर बॉस इतना चाहता है टीमवर्क, तो खुद क्यों नहीं लिफ्ट दे देता?" कई लोगों ने लिखा – "अगर कोई जबरन मेरे साथ बैठेगा और फिर मेरी ड्राइविंग या म्यूजिक पर नाक-भौं चढ़ाएगा, तो अगली बार उसे खुद ही समझ आ जाएगा!"
इस पूरे मामले में एक बात तो साफ है – टीमवर्क का मतलब ये नहीं कि हर बात में समझौता किया जाए, खासकर जब बात आपकी सहूलियत और पर्सनल समय की हो। भारत में भी ऑफिस के बाहर सहकर्मियों का साथ कई बार बोझिल हो जाता है – एक तो ट्रैफिक, ऊपर से उनकी फरमाइशें!
'स्पोर्ट्स कार' वाली सीख: कभी-कभी थोड़ा 'तड़का' ज़रूरी है
हमारे इंजीनियर ने बड़े ही शातिर अंदाज में बॉस और सहकर्मी को दिखा दिया कि 'मालिकाना हक' सिर्फ ऑफिस तक ही सीमित रहना चाहिए। उन्होंने न तो झगड़ा किया, न ही मना किया – बस अपनी स्टाइल में 'मालिशियस कम्प्लायन्स' दिखा दी।
ये कहानी हमें ये भी सिखाती है कि कभी-कभी, सीधी ना कहने से बेहतर है थोड़ा रचनात्मक (और मज़ेदार) तरीका अपनाना। आखिर, हर किसी को अपनी 'ड्राइविंग सीट' खुद संभालनी चाहिए – चाहे वो गाड़ी हो या ज़िंदगी!
आपकी राय?
क्या आपके साथ भी कभी किसी सहकर्मी या बॉस ने ऐसी अजीब मांग रखी है? या फिर आपने कभी किसी को अपनी गाड़ी में बिठा कर ऐसा 'झटका' दिया है कि वो दोबारा पूछे ही नहीं? नीचे कमेंट में जरूर बताएं – और हां, अपने दोस्तों के साथ ये मज़ेदार कहानी शेयर करना न भूलें!
मूल रेडिट पोस्ट: You demand to carpool in my car? Buckle up, cupcake!