जब बॉस ने खुद को फँसा लिया: टाई के चक्कर में मिला ज़िंदगी का सबक
कहते हैं, "जो गड्ढा दूसरों के लिए खोदता है, कभी-कभी खुद ही उसमें गिर जाता है।" ऑफिस की दुनिया में भी ऐसे तमाम किस्से मिल जाते हैं, जहाँ नियमों की सख्ती और ज़िद खुद के लिए ही मुसीबत बन जाती है। आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है – एक सिक्योरिटी कंपनी के सुपरवाइज़र की, जिसने अपने ही बनाए नियमों का स्वाद चखा और जिंदगी का एक बड़ा सबक सीखा।
टाई की ज़िद और गर्मी का कहर
करीब चालीस साल पहले की बात है। एक युवा सुपरवाइज़र को सिक्योरिटी गार्ड्स की टीम की जिम्मेदारी मिली। गर्मी का ज़ोर था, मानो लू के थपेड़े पड़ रहे हों। एक बड़ा फैक्ट्री गेट था, जहाँ ट्रकों की आवाजाही होती थी, और वहीं एक गार्ड को बाहर की केबिन में ड्यूटी करनी थी।
अब कंपनी के क्लाइंट्स का बड़ा दबाव था – "गार्ड्स को टाई पहननी चाहिए! दिखावा भी जरूरी है!" सुपरवाइज़र साहब ने भी रौब झाड़ते हुए गार्ड से कह दिया, "टाई पहनो, वरना छुट्टी कर दूंगा, वो भी बिना वेतन के!"
गार्ड ने भी सीधा जवाब दे दिया, "नहीं पहनूँगा।" सुपरवाइज़र ने सोचा, धमकी चल जाएगी, पर गार्ड तो बिंदास निकला। आखिरकार, सुपरवाइज़र को खुद उसकी शिफ्ट करनी पड़ी – उसी गर्मी में, उसी केबिन में, उसी टाई के साथ!
अनुभव की मार और शर्मिंदगी का स्वाद
अब सोचिए, जो बॉस एक मिनट पहले टाई के पीछे पड़ा था, आधे घंटे भी टाई नहीं झेल पाया! पसीना-पसीना, हाल बेहाल – आखिरकार टाई उतार दी। और मज़े की बात, बाकी गार्ड्स को यह सब देख खूब मज़ा आया होगा। ऑफिस की गलियों में ऐसी फुसफुसाहटें आम हैं – "देखा, बॉस भी आखिर इंसान है!"
एक कमेंट में किसी ने मज़ेदार बात कही, "ये बिलकुल वैसे है जैसे टीवी पर 'बॉस अंडरकवर' शो में बॉस खुद नीचे आकर काम करता है और असलियत समझता है कि हकीकत में कितनी मुश्किलें हैं।" वाकई, जब ऊँची कुर्सी पर बैठा बॉस खुद नीचे उतरता है, तो बहुत कुछ सीख जाता है।
नियम और हकीकत – दोनों का मेल जरूरी!
इस पूरे वाकये ने सुपरवाइज़र साहब को बड़ा गहरा सबक दिया – "नियम तो ठीक हैं, पर हकीकत समझना उससे भी जरूरी है।" उन्होंने माना कि हर लड़ाई लड़ने लायक नहीं होती। स्टाफ का भरोसा जीतना, उनकी राय जानना, और ज़मीनी हकीकत समझना ही असली नेतृत्व है।
एक कमेंट में किसी ने बड़ा अच्छा कहा, "लोग नौकरी नहीं छोड़ते, वे बुरे मैनेजर की वजह से छोड़ देते हैं।" इस पर खुद लेखक ने जवाब दिया, "कारण कई हो सकते हैं, पर बुरा बॉस उनमें बड़ा कारण है।" सच भी है – छोटे-छोटे नियमों के चक्कर में अगर इंसानियत भुला दी जाए, तो कर्मचारी टिकते नहीं।
एक और पाठक ने 'चेस्टर्टन की फेंस' का जिक्र किया – "किसी भी पुराने नियम को हटाने से पहले ये जानना जरूरी है कि वो था क्यों?" यही बात हमारे दफ्तरों और परिवारों में भी लागू होती है।
आज का सबक: बॉस बनने के साथ इंसान बने रहना
आज ये सुपरवाइज़र खुद बिज़नेस के मालिक हैं। वे मानते हैं, "कर्मचारी आते जाते रहते हैं, लेकिन वे इस वजह से नहीं जाते कि किसी ने टाई नहीं पहनी।" असली बात है भरोसा, सम्मान और ज़रूरत की समझ।
एक कमेंट में किसी ने लिखा, "मैंने कई ऐसे बॉस देखे जो केवल परफेक्शन और टारगेट्स के पीछे भागते हैं, इंसानियत भूल जाते हैं। ऐसे ऑफिस में कोई टिकता नहीं। लेकिन अच्छे बॉस के साथ काम करने का मजा ही अलग है – जो इंसान को इंसान समझे, उसकी कद्र करे।"
शायद यही वजह है कि हमारे यहाँ भी लोग कहते हैं, "मालिक वही जो नौकर की इज्जत करे, वरना कारोबार तो हर कोई चला लेता है।"
निष्कर्ष: नियम जरूरी, पर इंसानियत सबसे ऊपर!
तो अगली बार जब आप ऑफिस में या अपने घर में कोई नियम लागू करें, तो एक बार खुद उस हालात में खुद को रखकर जरूर देखिए। हमारे यहाँ भी कहा गया है, "जिस पर बीतती है, वही जानता है।" छोटी-छोटी बातों में इंसानियत दिखाइए, नियमों में थोड़ी नरमी लाइए – तभी असली लीडरशिप की पहचान बनेगी।
आपका क्या ख्याल है? क्या आपने भी कभी ऐसे किसी नियम या बॉस की वजह से मुश्किल झेली है? अपने अनुभव नीचे कमेंट में जरूर साझा कीजिए – कौन जाने, आपकी कहानी भी किसी को बड़ा सबक दे दे!
मूल रेडिट पोस्ट: I Was The Deserving Victim of MC.