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जब बॉस ने खुद को 'प्रोडक्शन लीडर' कहलवाया और कर्मचारी बोले – 'प्लॉप्स साहब!

सूट पहने युवा प्रबंधक, घमंड से भरा, कॉर्पोरेट सेटिंग में असफल नेतृत्व का प्रतीक।
एक सिनेमाई चित्रण जिसमें एक युवा, आत्मविश्वासी प्रबंधक को दिखाया गया है, जो गलत नेतृत्व के pitfalls को दर्शाता है। यह चित्र कार्यस्थल की गतिशीलताओं और असफल प्रबंधन के प्रभावों की चुनौती को उजागर करने का आधार बनाता है।

ऑफिस की दुनिया में हर किसी ने ऐसा बॉस ज़रूर झेला है, जो खुद को बहुत बड़ा समझता है लेकिन असली काम क्या है, ये उसे पता ही नहीं होता। ऐसे बॉस के साथ काम करना जितना झंझट भरा है, उतना ही दिलचस्प भी हो सकता है—अगर टीम में थोड़ा सा देसी जुगाड़ और मिर्च-मसाला हो!

आज की कहानी है एक ऐसे मैनेजर की, जिसे "प्रोडक्शन लीडर – ऑपरेशंस" का ताज तो मिल गया, पर टीम की इज़्ज़त और भरोसा नहीं। बाकायदा साहब ने फ़रमान जारी कर दिया—"मुझे मेरे पूरे पदनाम से बुलाओ, सिर्फ़ मेरा नाम मत लेना!" अब आप सोचिए, अपने ऑफिस में अगर कोई नया सुपरवाइज़र आए और बोले, "मुझे 'हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट – ब्रांच एक्स' कहना," तो आपके चेहरे पर कैसी मुस्कान आ जाएगी?

"प्लॉप्स" कैसे बना ऑफिस का नया नाम

असल में, इस अंग्रेज़ी कहानी का सबसे मज़ेदार हिस्सा ये है कि कर्मचारी, जिन्होंने सालों तक मेहनत से काम सीखा था, उन्हें नया बॉस "अपना" नहीं, बल्कि "मेरी टीम" कहकर खुद को ऊँचा जताता था। पुराने बॉस की भाषा थी—"हमारी टीम", नए वाले की—"मेरी टीम"। फर्क छोटा लगता है, पर दिल में चुभता है।

अब टीम का जुगाड़ देखिए! बॉस का खिताब था "Production Leader – Operations"। इसे शॉर्ट में बोलो तो PL-Ops, और अब ज़रा देसी अंदाज़ में इसे बोलिए—"प्लॉप्स"! यानी हिंदी में कहें तो, जैसे कोई गिरी हुई चीज़ की आवाज़ हो... और अंग्रेज़ी में तो "plop" का मतलब ही होता है, कुछ गिरना या... खैर, शौचालय वाली आवाज़ आप समझ ही गए होंगे!

जैसे ही ये नाम चला, पूरी फैक्ट्री में आग की तरह फैल गया। 36 घंटे के अंदर हर शिफ्ट में सबको पता था कि अब "प्लॉप्स साहब" के आदेश मानने हैं। एक कमेंट में किसी ने पूछा भी—"अगर प्लॉप्स आखिरी दिन मिठाई—केक—लाते, तो क्या नाम वहीं रुक जाता?" जवाब आया—"शायद हाँ! पर वो तो अकड़ू थे, केक लाते भी नहीं।"

ऑफिस की राजनीति और देसी मज़ाक

अब सोचिए, किसी मीटिंग में तीन कर्मचारी बातें कर रहे हैं—प्लॉप्स साहब आते हैं और डाँटने लगते हैं:

प्लॉप्स: "भाइयों, ये क्या हो रहा है?"

कर्मचारी 1: "क्या बात है, प्लॉप्स?" प्लॉप्स (नाक में आवाज़): "मैं प्रोडक्शन लीडर हूँ! मशीन पर क्यों नहीं हो?" कर्मचारी 2: "काम की प्लानिंग कर रहे हैं, प्लॉप्स।" कर्मचारी 1: "24 साल से यही काम कर रहे हैं, प्लॉप्स।" कर्मचारी 3: "मामला ये है, प्लॉप्स, हमें छः टूल्स चाहिए और बस चार हैं। क्या आपके पास कोई आइडिया है?" प्लॉप्स: "न..न...नहीं, आप ही कर लीजिए।" कर्मचारी 1: "शुक्रिया, प्लॉप्स!"

अब सोचिए, ये सीन आपके ऑफिस में हो—कितना मज़ा आएगा! यहाँ तक कि एक मीटिंग में जब डायरेक्टर भी प्लॉप्स को "प्लॉप्स" कह बैठा, तो पूरी टीम हँसी से लोट-पोट हो गई। डायरेक्टर हैरान—"अरे, इसका असली नाम जॉन है?" और बेचारे प्लॉप्स का चेहरा टमाटर हो गया!

"अच्छे बॉस" की अहमियत – मज़ाक में भी सीख

कहानी यहीं खत्म नहीं होती। प्लॉप्स साहब अपनी अकड़ लेकर दूसरी साइट चले गए—वहाँ पहुँचते ही पुराने कार्मिकों ने आगे बढ़कर स्वागत किया—"स्वागत है, प्लॉप्स!" यानी नाम ने उनका पीछा नहीं छोड़ा!

पर असली ट्विस्ट तब आया, जब उनकी जगह नया प्रोडक्शन लीडर आया। आते ही खुद बनाए हुए समोसे लेकर आया, और बोला—"मैं आपके काम में दखल नहीं देना चाहता, आप जब फुर्सत हों, मेरे ऑफिस आकर मिलिए।" उसके ऑफिस के दरवाजे पर बड़े प्यार से लिखा था—"प्लॉप्स ऑफिस"! यानी नया बॉस खुद भी हँसी-मजाक समझता था, और टीम में घुल-मिल गया।

एक कमेंट में किसी ने लिखा—"असल में, अगर प्लॉप्स थोड़ी विनम्रता दिखाते, कभी-कभार मिठाई बाँटते, या मज़ाक में साथ देते, तो सबकुछ आसान हो जाता।" ये बात बिल्कुल सही है। हमारे यहाँ भी अगर कोई बॉस दिल से टीम के साथ जुड़े, तो टीम उसे सिर-आँखों पर बिठा लेती है—वरना ऐसे 'प्लॉप्स' बनते देर नहीं लगती!

"निकनेम" और ऑफिस संस्कृति – भारत में भी प्रासंगिक

अगर आप सोच रहे हैं कि ये बस विदेशी दफ्तरों की बात है—तो ज़रा अपने ऑफिस के निकनेम्स याद कर लीजिए। यहाँ भी "बब्लू भाई", "चाचा", "शेर सिंह", या "शेरनी मैडम" जैसे नाम चल जाते हैं। और कभी-कभी ये नाम प्यार से, तो कभी मज़ाक में, तो कभी बॉस की अकड़ के चलते पड़ जाते हैं।

एक कमेंट में किसी ने लिखा—"हमारे यहाँ तो जाने के बाद जश्न मनता है—'वो चला गया' पार्टी!" यानी जब कोई ऐसा बॉस जाता है, जिसे कोई मिस नहीं करता, तो टीम की खुशी देखते ही बनती है।

निष्कर्ष – बॉस बनना है तो दिल से बनो!

इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि पदनाम से नहीं, व्यवहार से इज़्ज़त मिलती है। और अगर आप टीम को साथ लेकर चलेंगे, तो वे आपके लिए समोसे भी बना लाएँगे, और अगर अकड़ दिखाएँगे, तो "प्लॉप्स" जैसे नाम भी पड़ सकते हैं!

आपके ऑफिस में भी कोई ऐसा बॉस या टीम लीडर है, जिसने अनजाने में खुद को मज़ाक बना लिया हो? या ऐसा कोई निकनेम है, जो अब तक आपके ऑफिस की पहचान बन गया हो? नीचे कमेंट में अपनी मज़ेदार दास्तान ज़रूर साझा करें—क्योंकि हर ऑफिस की अपनी कहानी होती है!


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