जब बॉस की 'मालिकाना चालाकी' पर भारी पड़ी कर्मचारी की स्वादिष्ट चालाकी!
ऑफिस की राजनीति और बॉस की मनमानी का सामना किसने नहीं किया! हम सबने कभी न कभी अपने कामकाजी जीवन में ऐसे नियम देखे हैं, जो सुनने में तो बड़े 'टीम प्लेयर' वाले लगते हैं, पर असल में बस कर्मचारियों की नाक में दम कर देते हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसमें एक महिला ने अपने ऑफिस के 'मालिकाना' नियमों को उन्हीं के खिलाफ ऐसे इस्तेमाल किया कि बॉस भी चुप्पी साध गए।
ऑफिस की चालाकी vs कर्मचारी की जुगाad
यह कहानी है एक सरकारी ठेकेदार कंपनी में फाइनेंस विभाग में काम करने वाली महिला की। कोरोना के बाद से काम ज्यादा तर घर से हो रहा था, लेकिन दफ्तर वालों ने नया फरमान जारी कर दिया – अब सोमवार और मंगलवार को सबको ऑफिस आना है, और 'कोर आवर्स' (Core Hours) यानि सुबह 8 से शाम 4 तक ऑफिस में रहना जरूरी है।
अब हमारी नायिका रोज़ की भारी ट्रैफिक से बचने के लिए सुबह 7 बजे ऑफिस आ जाती थी और 3 बजे निकल जाती थी, जिससे सफर आधा हो जाता था। लेकिन नए नियम की वजह से अब उन्हें घंटों ट्रैफिक में फंसना पड़ता था और घर देर से पहुंचना पड़ता था।
उन्होंने मैनेजमेंट को ईमेल लिखकर साफ बता दिया – अगर आप मुझसे 4-5 घंटे एक्स्ट्रा ट्रैफिक में बैठने को कहेंगे, तो मैं अब वीकेंड या शाम को 'फ्लेक्सिबल' टाइम में एक्स्ट्रा काम नहीं कर पाऊंगी।
बॉस का जवाब – 'टीम प्लेयर बनो, सबके लिए नियम बराबर हैं।'
नियमों का जवाब नियमों से – 'मालिशियस कंप्लायंस' की मिसाल
महिला ने भी सोचा – "जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा!" उन्होंने अपने हफ्ते के 40 घंटे के हिसाब से समय बांट दिया और तय कर लिया कि अब एक मिनट भी ओवरटाइम नहीं करेंगी। पहले जहां महीने के अंत में पूरी टीम देर रात या वीकेंड में काम करके टारगेट पूरे करती थी, अब वो 'कोर आवर्स' के बाद सीधा घर जातीं और अगर कोई मीटिंग या कॉल होती, तो साफ कह देतीं – "माफ कीजिए, मेरा टाइम खत्म हो गया है, अब ओटी (Overtime) अप्रूव नहीं है।"
एक कमेंट में किसी ने लिखा, "वो मीटिंग से ऐन टाइम पर लॉगआउट हो जाती हैं, क्या लीजेंड हैं!" तो दूसरे ने जोड़ दिया, "ऐसा करने की हिम्मत हर किसी में नहीं होती, लेकिन असली बदलाव ऐसे ही आते हैं।"
मैनेजमेंट का 'मंगलमेंट' और कर्मचारियों का जवाब
ऑफिस में एक नया शब्द पैदा हुआ – 'मंगलमेंट' (Manglement)। कई कमेंट्स में लोगों ने हंसी उड़ाते हुए कहा, "ये बॉस लोग तो मैनेजमेंट नहीं, मंगलमेंट कर रहे हैं – हर चीज को मसल कर ही छोड़ेंगे।"
एक और दिलचस्प कमेंट था – "बॉस सोचते हैं कि सब फ्री में ओवरटाइम करते रहेंगे, लेकिन असली टीम प्लेयर वही है जो अपने हक के लिए खड़ा हो।"
फाइनेंस टीम वैसे भी एक मेंबर कम थी, ऊपर से ओवरटाइम पर पाबंदी, तो महीने के अंत में जो रिपोर्टें पूरी होनी थीं, वो अधूरी रह जातीं। जब बॉस ने पूछा – "काम क्यों अधूरा है?" तो पूरी टीम ने एक सुर में जवाब दिया – "ओवरटाइम बिना मंजूरी के नहीं कर सकते।"
एक पाठक की सलाह थी – "बिना पेमेंट के कोई ओवरटाइम मत करो। ऑफिस वाले फ्री में काम करवाने की आदत डाल लेते हैं।"
भारत में ऑफिस की 'कोर आवर्स' और 'टीम प्लेयर' की हकीकत
विदेशी ऑफिसों में 'कोर आवर्स' का मतलब होता है – दिन के कुछ घंटे जब सबको मौजूद रहना है, बाकी समय फ्लेक्सिबल। लेकिन यहां तो पूरा दिन ही 'कोर आवर्स' बना दिया! कई पाठकों ने लिखा, "अगर मीटिंग कोर टाइम के बाहर है, तो उसका पैसा अलग मिलना चाहिए।"
भारत में भी देखा गया है कि कई कंपनियां 'हम तो परिवार की तरह हैं' बोलकर फ्री में ओवरटाइम करवाती हैं। एक पाठक ने मस्त ताना मारा – "अगर इतनी ही फैमिली वाली फीलिंग है, तो बोनस और छुट्टियां भी वैसे ही बांटो!"
कहानी से सबक: अपने हक के लिए आवाज़ उठाइए
इस कहानी से एक बात तो साफ है – ऑफिस के नियम तभी तक चलते हैं, जब तक कर्मचारी चुप रहते हैं। जैसे ही लोग अपने हक के लिए खड़े होते हैं, बॉस की सारी 'मंगलमेंट' धरी की धरी रह जाती है।
एक पाठक ने बढ़िया कहा – "अगर कंपनी फ्लेक्सिबल नहीं है, तो कर्मचारी भी क्यों हों?"
अब देखना ये है कि ऑफिस वाले इस महिला की चालाकी का जवाब क्या देते हैं, या फिर अपनी ही बनाई जाल में खुद ही फंसते हैं।
आपका क्या अनुभव रहा है ऐसे 'मंगलमेंट' से? नीचे कमेंट में जरूर बताइए। ऐसे ही और कहानियों के लिए जुड़े रहिए – और याद रखिए, ऑफिस में अपने अधिकारों के लिए बोलना कोई गुनाह नहीं!
मूल रेडिट पोस्ट: Delicious double-whammy malicious compliance