जब बॉस की बनाई नई प्रक्रिया ने ऑफिस को बना दिया हास्य का अखाड़ा
क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी मेहनत की कमाई और वर्षों का अनुभव एक झटके में, सिर्फ एक "फ़ॉर्म" की वजह से बेकार हो सकता है? ऑफिसों में अक्सर ऐसा होता है – ऊपर बैठे साहब लोग सोचते हैं कि वो एक नया सिस्टम लाएँगे और सब दुरुस्त हो जाएगा। लेकिन जब ज़मीनी सच्चाई से अनजान अफसरशाही हावी हो जाए, तो क्या होता है? आज की कहानी इसी पर है, और यकीन मानिए, इसमें भरपूर मसाला, हास्य और थोड़ी सी कड़वाहट भी है।
तो चलिए, सुनिए एक ऐसे कर्मचारी की कहानी, जिसने अपने अनुभव और समझदारी से ऑफिस को सालों तक संभाला, लेकिन एक दिन छुट्टी से लौटते ही पाया कि उसकी सारी मेहनत का मोल अब एक मामूली बॉक्स गिनने जितना रह गया है!
जब अनुभव की जगह ले ली एक फ़ॉर्म ने
हमारे नायक (कर्मचारी) के ऑफिस में पहले ग्राहक सेवा का सारा दारोमदार सीधा संवाद, मेल-जोल और समझदारी पर चलता था। ग्राहक और टीम के बीच मेल-मुलाकातें होती थीं, हर छोटी-बड़ी समस्या तुरंत सुलझा ली जाती थी। पर एक दिन साहब लोगों ने, बिना किसी को बताए, एक नया सिस्टम लागू कर दिया। अब ना चर्चा, ना सलाह – बस एक चार हिस्सों वाला स्टैंडर्ड फ़ॉर्म!
सोचिए, जहाँ पहले आपको हर ग्राहक की जानकारी, उनकी पसंद-नापसंद, छूट और खास रियायतें पता होती थीं, वहां अब बस इतना करना है – 'कितने बॉक्स चाहिए, लिख दो'। बाकी सब की जिम्मेदारी अलग-अलग विभागों पर डाल दी गई – बिक्री, लॉजिस्टिक्स, और मैनेजमेंट। मगर मज़ेदार बात यह है कि ग्राहक की जानकारी अक्सर गलत होती, और अब उसे सुधारने की इजाज़त भी छीन ली गई।
"फॉर्म का पालन करो" – और फिर देखो तमाशा!
जब हमारे कर्मचारी ने इस गड़बड़ी की ओर इशारा किया, तो मैनेजर ने बड़े ठंडेपन से जवाब दिया – "फॉर्म फॉलो करो, कोई टेढ़ी-मेढ़ी बात मत करो।" अब क्या करें? साहब ने जैसा कहा, वैसा किया। हर बार अपना सेक्शन भर के फॉर्म भेज दिया और आगे बढ़ गए। कोई फीडबैक नहीं, कोई जवाब नहीं, बस सन्नाटा।
महीनों बाद जब एक ग्राहक का फोन आया कि उनका सामान खत्म होने वाला है, तब जाकर ऑफिस में हड़कंप मचा। पता चला कि इस बीच 24 फॉर्म भेजे गए थे, पर किसी ने उन पर ध्यान ही नहीं दिया! अब तीन-तीन विभाग प्रमुख परेशान – उन्हें ग्राहक का नाम नहीं पता, उत्पाद कौन सा है याद नहीं, और ऑर्डर का इतिहास भी गायब। कागजों में सिर्फ बॉक्स की गिनती है, पर असली जानकारी हवा हो गई।
जब काम की कदर नहीं, तो "घोस्टिंग" का मज़ा ही कुछ और है!
इधर कर्मचारी जी स्वस्थ होने के लिए छुट्टी पर चले गए, उधर ऑफिस में हड़बोंग मच गई। पुराने सिस्टम की जानकारी बिखरी पड़ी है – मेल, फाइलों और यादों में। अब मैनेजमेंट उन्हीं से पुराने डाटा की भीख माँग रही है। मगर कर्मचारी सोचते हैं – "अब ये मेरी जिम्मेदारी नहीं।" मज़ा देखिए, जो सिस्टम सब आसान बनाने के लिए लाया गया था, वही अब सबको उलझा गया है।
रेडिट की इस पोस्ट पर एक यूज़र ने क्या खूब लिखा – “ये बड़ा अजीब संतोष देता है जब आपके छुट्टी के दौरान ऑफिस में सब गड़बड़ हो जाए!” एक और ने लिखा, “नए सिस्टम के चक्कर में अनुभवी लोगों को किनारे कर दिया, अब भुगतो।” कोई कह रहा है, “अच्छा बॉस वही है जो काम करने वालों से पूछे कि क्या सही है, ना कि हवा में तीर चलाए।”
अनुभव की अनदेखी: भारतीय दफ्तरों की भी आम कहानी
इस कहानी में जितना झोल है, उतना ही अपने देश के दफ्तरों में भी मिलता है। चाहे सरकारी दफ्तर हो या प्राइवेट कंपनी, "ऊपर" से आए हुए फरमानों का हाल यही होता है – "फाइल घुमाओ, नियम निभाओ, बाकी भगवान मालिक!" अफसर लोग सोचते हैं, नया सिस्टम बना देंगे तो सब सुधर जाएगा, मगर ज़मीनी हकीकत वही रहती है – जो लोग असली काम करते हैं, उन्हें पूछता कौन है?
एक कमेंट में लिखा गया – “अरे भाई, जो लोग फील्ड में काम करते हैं, असली समाधान वही जानते हैं, मगर अफसर लोग खुद को ही सबसे बड़ा समझते हैं।” एक और ने चुटकी ली – “मैंने देखा है, जब पुराने कर्मचारियों को हटाते हैं, तो पूरा ऑफिस ताश के पत्तों की तरह बिखर जाता है।”
सबक: समझदारी की जगह नकलचियों का राज चलेगा तो अंजाम यही होगा!
यह कहानी सिर्फ एक ऑफिस की नहीं, बल्कि हर उस जगह की है जहाँ अनुभव और संवाद की जगह सिर्फ कागजी खानापूर्ति और "ऊपर से आए आदेश" हावी हो जाते हैं। जब तक काम करने वाले लोगों की बात नहीं सुनी जाएगी, तब तक ऐसे ही गड़बड़झाला चलता रहेगा। और जो कर्मचारी हर मुसीबत में ऑफिस को संभालते हैं, अगर उनको दरकिनार कर दोगे, तो एक दिन ऑफिस की हालत भी वैसी हो जाएगी जैसी इस कहानी में हुई – बॉक्स तो गिन लिए, पर असली काम का कोई अता-पता नहीं।
अंत में – आपकी राय?
आपके ऑफिस में भी कभी ऐसा हुआ है? क्या आपको भी कभी "फॉर्म फॉलो करो" जैसी सलाह मिली है? नीचे कमेंट में अपनी कहानियाँ जरूर शेयर करें। हो सकता है, अगली बार आपके अनुभव भी किसी की आँख खोल दें!
मूल रेडिट पोस्ट: Ghosting and loving it...