जब बॉस के नियम उल्टे पड़ जाएं: ब्रेक का समय और ऑफिस की राजनीति
ऑफिस की दुनिया भी किसी हिंदी फिल्म से कम नहीं! कभी-कभी छोटी-सी बात इतनी बड़ी बन जाती है कि उसका हल निकालना मुश्किल हो जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ एक ऑफिस में, जहाँ एक नए मैनेजर ने सबकी दिनचर्या में क्रांति ला दी – और फिर वही नियम उनके लिए सिरदर्द बन गया।
नया मैनेजर, नए नियम – और कर्मचारियों की खीझ
हमारे देश में अक्सर देखा जाता है कि जैसे ही कोई नया बॉस आता है, सबसे पहले वह "कड़क अनुशासन" लाने की ठान लेता है। चाहे सरकारी दफ्तर हो या प्राइवेट कंपनी, बॉस को लगता है कि सबकी लगाम कसना ज़रूरी है। ठीक यही हुआ Reddit पर साझा की गई इस कहानी में भी।
एक कर्मचारी ने लिखा, “हमारे यहाँ ज़्यादा बातचीत नहीं होती। बस काम करो, कभी-कभी मीटिंग, और घर जाओ।” सब कुछ बढ़िया चल रहा था, जब तक नई मैडम आईं। उनका आदेश – “ब्रेक और लंच हर दिन एक ही समय पर, बिना देर किए। सबकी टाइमिंग लिखकर दो।”
अब कर्मचारी ने अपना ब्रेक टीम की 15 मिनट की ‘हडल’ (यानी छोटी मीटिंग) के बाद रखा था। पर कई बार मीटिंग लंबी चल जाती। लेकिन नए नियम के मुताबिक, वो 15 मिनट पूरे होते ही उठकर ब्रेक रूम में चला जाता। मैनेजर को पहली बार लगा कि शायद वह वॉशरूम गया है, लेकिन असलियत पता चलते ही उनकी भौंहें तन गईं।
नियमों का जुगाड़: कर्मचारियों की ‘मालिशियस कंप्लायंस’
हमारे यहाँ एक कहावत है – “नियम तोड़ो मत, लेकिन घुमा-फिराकर तोड़ दो!” Reddit की दुनिया में इसे कहते हैं ‘Malicious Compliance’ – यानी नियमों का पालन इस तरह करना कि करने वाले की भलाई कम, बॉस की परेशानी ज़्यादा हो।
कर्मचारी ने नियम की चिट्ठी दिखाते हुए हर बार मीटिंग के बीच से उठ जाना शुरू कर दिया। मैनेजर ने टोका, “ऐसा भी क्या! थोड़ा समायोजन तो चलता है।” कर्मचारी बोला, “अगर आप अपने आदेश में बदलाव करें तो मैं भी लचीलापन दिखा दूँ।” लेकिन मैडम ने अपनी इज़्ज़त का सवाल बना लिया – न आदेश बदले, न कर्मचारी ने अपनी आदत।
छह महीने तक ये आंख-मिचौली चली। जैसे हमारे दफ्तरों में ‘कागज़ी घोड़े दौड़ाने’ का चलन है, वैसे ही यहाँ नियमों का खेल चलता रहा। आखिरकार, मैनेजर का ट्रांसफर हो गया और नया बॉस आते ही सब फिर पुराने ढर्रे पर आ गए – मीटिंग के लिए बुलेट पॉइंट्स, ब्रेक अपनी मर्जी से।
कम्युनिटी की राय: “सीधे-सादे नियम, लेकिन उलझी हुई हकीकत”
Reddit के कमेंट्स पढ़कर मज़ा आ गया। एक यूज़र ने लिखा, “कितनी बार बॉस पूछता है – ऐसा क्यों किया? और मेरा जवाब – चार साल पहले आपने मेल किया था, ऐसे ही करने को!”
दूसरे ने कहा, “आईटी में तो हम चेंज रिक्वेस्ट की पूरी फाइल रखते हैं – क्या, क्यों और कब करना है, सब लिखा रहता है। बाद में जब बॉस पूछता है, ‘ये क्या किया?’ तो हम वही फाइल सामने रखते हैं!”
एक कमेंट में तो हँसी ही छूट गई – “बॉस ने कहा, ‘तय समय पर ब्रेक लेना है।’ मीटिंग बीच में छोड़कर चला गया। अगले दिन बॉस बोला, ‘कोई बात नहीं, अब से अपनी मर्जी से लो!’”
यहाँ एक और गहरी बात सामने आई – कई बार बॉस ‘विथिन रीजन’ (यानी परिस्थिति के अनुसार) का बहाना बनाते हैं। असल में जब नियम उनके मुताबिक नहीं चलते, तब लचीलापन याद आता है। जैसे हमारे यहाँ अक्सर कहा जाता है – ‘कनून सबके लिए बराबर है, बस अफसर के लिए अलग।’
भारतीय दफ्तरों में ऐसे हालात क्यों आम हैं?
हमारे दफ्तरों में भी यही होता है। कभी-कभी बॉस सिर्फ अपनी “पावर” दिखाने के लिए नए नियम बना देते हैं। फिर जब वो नियम खुद ही परेशान करने लगते हैं, तो या तो चुपचाप बदल देते हैं या “मौखिक छूट” देने लगते हैं।
एक कमेंट ने बड़ी शानदार बात कही – “रूल के हिसाब से ही काम करो, यही सबसे अच्छा ‘इंडस्ट्रियल एक्शन’ है। कोई सज़ा नहीं दे सकता!”
दूसरे ने जोड़ा – “पर कभी-कभी लिखित और मौखिक आदेश में फँसा भी सकते हैं। इसलिए जब तक आदेश बदलें नहीं, अपनी चाल चलो।”
कुछ लोगों ने यहाँ तक लिखा कि कई मैनेजर ब्रेक टाइम जानबूझकर मीटिंग के साथ रखते हैं ताकि कर्मचारी को ब्रेक ही न मिले! यह वही ‘ज़ीरो सम माइंडसेट’ है – यानी अगर कोई आराम कर रहा है, तो बॉस को लगता है उसका नुकसान हो रहा है।
निष्कर्ष: नियमों के खेल में जीत आखिर किसकी?
इस पूरी कहानी से एक बात साफ़ है – नियम जितने सख्त बनाओ, कर्मचारी उतनी ही चतुराई से उनका पालन करते हैं। कामकाजी दुनिया में यह ‘चूहे-बिल्ली’ का खेल चलता रहता है।
तो अगली बार जब आपके ऑफिस में कोई नया आदेश आए, याद रखिए – “नियम तोड़ना मना है, पर घुमा-फिराकर पालन करने में कोई बुराई नहीं!” और हाँ, अपने बॉस की मेल्स और चिट्ठियाँ संभालकर जरूर रखें – क्योंकि दफ्तर की राजनीति में कब किसका कबाड़ा हो जाए, कौन जाने!
आपके ऑफिस में भी ऐसा कोई मजेदार किस्सा हुआ है? नीचे कमेंट में ज़रूर बताइए और इस पोस्ट को शेयर करें, ताकि और लोग भी दफ्तर के इन दिलचस्प खेलों का मजा ले सकें!
मूल रेडिट पोस्ट: Scheduled breaks must be taken on schedule