जब बॉस की चहेती परस्ती का हुआ बुरा अंजाम: एक सिक्योरिटी गार्ड की छोटी सी बदला कहानी
कभी-कभी ऑफिस में ऐसा लगता है जैसे बॉस ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध रखी हो और सिर्फ अपने खास कर्मचारियों को ही देख पा रहे हों। बाकी सबके लिए तो जैसे उनका दिल और दरवाजा दोनों बंद! ऐसे में अगर मेहनती कर्मचारी को बार-बार नीचा दिखाया जाए, तो उसके मन में भी "चलो, अब दिखाते हैं असली रंग" जैसा कुछ तो आ ही जाता है। आज की कहानी एक ऐसे ही सिक्योरिटी गार्ड की है, जिसने अपनी सूझबूझ और छोटे से बदले से सबको चौका दिया।
ऑफिस का असली 'फेवरिटिज़्म' और नींद में सोते कर्मचारी
हमारे कहानी के हीरो—माने सिक्योरिटी गार्ड—ने हमेशा ईमानदारी से अपना काम किया। लेकिन बॉस साहब ने जैसे कसम खा रखी थी कि हर गलती का ठीकरा उसी पर फोड़ेगे, चाहे असली गलती किसी और की हो। आप भी जानते हैं, बड़े-बड़े दफ्तरों में अक्सर ऐसे "चहेते" होते हैं जो काम कम, बॉस की जी-हुज़ूरी ज़्यादा करते हैं। यहां तो हद ही हो गई! एक सहकर्मी हमेशा अपने दिन की छुट्टी पर भी ऑफिस में आकर सो जाता था, और बॉस उसके बचाव में दीवार बन जाते थे।
जैसे बॉलीवुड के पुराने विलेन अपने 'शेरू' को बचाते हैं, वैसे ही ये बॉस अपने "स्लीपी को-वर्कर" के पीछे खड़े रहते थे। सिक्योरिटी गार्ड साहब जब भी इस पर आवाज़ उठाते, बॉस उन्हें डांट देते—"तुम्हें हर किसी की शिकायत करनी है?" भाई, आखिर ऑफिस है या कोई पार्लर, जहां सिर्फ चापलूसी चले!
बदले की तैयारी: जुगाड़ और जॉब हंटिंग
अब हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। सिक्योरिटी गार्ड साहब ने सोचा—"अब बहुत हो गया, अब तो कुछ करना ही पड़ेगा!" चुपके से उन्होंने उस सोते हुए सहकर्मी का वीडियो रिकॉर्ड कर लिया। दिमाग़ की बत्ती जली—"अब इसे ऊपर वालों को दिखाऊंगा।" पर भारतीय जुगाड़ का असली नमूना तो ये था कि पहले नई नौकरी ढूंढ ली, ताकि अगर कहीं उल्टा पड़ जाए तो घर बैठे बेरोज़गारी न झेलनी पड़े। आखिर, 'नौकरी और बरसात की छतरी—कभी भी बदल सकती है!'
नई नौकरी मिलते ही उन्होंने बॉस को इस्तीफा थमा दिया, वो भी ऐसे अंदाज में जैसे कोई हीरो अंत में विलेन को सबक सिखाकर चला जाता है—"जब मैं आपके लिए बेकार हूं, तो अब मेरा काम आपके 'फेवरिट' के हवाले। बधाई हो!"
तीन महीने बाद: किस्मत का खेल और ऑफिस की राजनीति
अब किस्मत भी कभी-कभी बड़ा मज़ेदार खेल खेलती है। तीन महीने बाद खबर आई कि बॉस साहब और उनका "सोता हुआ हीरा"—दोनों की नौकरी चली गई। वाह! कहते हैं न, "जैसी करनी, वैसी भरनी।" पुराने ऑफिस से फोन आया—"भैया, वापस आ जाओ!" लेकिन अब सिक्योरिटी गार्ड साहब ने कह दिया—"माफ करिए, अब दिल नहीं करता।"
यहां सोशल मीडिया की राय भी कम दिलचस्प नहीं है। एक यूज़र ने लिखा, "भाषा कोई भी हो, इंसानियत और ईमानदारी सबसे बड़ी है।" तो दूसरे ने मज़े लेते हुए कहा, "अगर कोई फ्रेंच या जर्मन में पोस्ट करता, तो अंग्रेज़ों की भी बोलती बंद हो जाती!" एक और साहब ने चुटकी ली—"ऑफिस की राजनीति तो हर देश में एक जैसी ही लगती है।"
सीख क्या है? चुप रहना हमेशा सही नहीं!
इस कहानी से क्या सीख मिलती है? दफ्तर में अगर आपको कोई बार-बार नीचा दिखा रहा है, तो ज़रूरी नहीं कि हमेशा चुपचाप सह लिया जाए। सही वक्त पर सही कदम उठाना भी ज़रूरी है। और सबसे जरूरी—खुद की काबिलियत पर भरोसा रखिए। काम की दुनिया में 'फेवरिटिज़्म' की उम्र बहुत छोटी होती है, असली जीत मेहनती लोगों की ही होती है।
कहानी के अंत में सिक्योरिटी गार्ड की मुस्कान देखकर यही कह सकते हैं—"अंत भला तो सब भला!"
आपकी राय क्या है?
क्या आपके साथ भी कभी ऑफिस में ऐसा हुआ है? या आपने कभी किसी चापलूस को उसकी सही जगह दिखाई है? अपने अनुभव नीचे कमेंट में जरूर साझा करें। और हां, अगर कहानी पसंद आई हो तो दोस्तों के साथ शेयर करें, ताकि अगली बार कोई बॉस अपना 'फेवरिट' चुनने से पहले सौ बार सोचे!
मूल रेडिट पोस्ट: Enjoy the favorism while it last