जब बारमैन की जिद्दगिरी पर भारी पड़ी टोपी – एक छोटी सी बदला कहानी
किसी भी दोस्ती की असली परीक्षा तब होती है जब साथ में मस्ती करने का मौका मिले, और अगर उसमें थोड़ा सा तंज़ या बदला मिल जाए तो फिर क्या ही कहना! आज की कहानी है एक ऐसे ही दोस्तों के ग्रुप की, जिसने एक बारमैन की ज़रा सी तानाशाही पर ऐसा जवाब दिया कि उस दिन की ठंडी, बरसाती शाम भी यादगार बन गई।
एडिनबरा की सर्द शाम और टोपी की जिद
करीब बीस साल पहले की बात है। सात दोस्त—दो आयरिश और बाकी स्कॉट—रग्बी मैच देखने निकले थे। भारत में जैसे क्रिकेट मैच से पहले चाय-स्नैक्स का मज़ा लिया जाता है, वैसे ही ये लोग भी पब-क्रॉल करते हुए स्टेडियम जा रहे थे। ठंड, बारिश और हवा के बावजूद, सभी ने गरम कपड़े और टोपी पहन रखी थी।
रास्ते में एक एक्स-सर्विसमैन क्लब पड़ा, जो आम दिनों में आम लोगों के लिए खुला नहीं रहता। लेकिन मैच के दिन चहल-पहल देखकर मालिक ने भी दुकानदार वाली सूझबूझ दिखाई—“भीड़ है, फायदा उठा लो!” बार के अंदर घुसना भी किसी लोकल बस में चढ़ने जैसा था—कंधे से कंधा भिड़ा हुआ, सांस लेने की भी जगह नहीं।
बारमैन की ‘हुक्म चलाने’ की आदत
अब बारी थी बियर मंगवाने की। हमारे दो दोस्त—लेखक खुद और डेव—बड़े जतन से बार तक पहुंचे। वहां एक छोटा-सा, लाल चेहरा, मूंछों वाला बारमैन खड़ा था। लेखक ने पूरे दोस्ताना अंदाज में ऑर्डर देना चाहा, लेकिन बारमैन ने तर्जनी और हथेली दिखाकर रोक दिया—“पहले टोपी उतारो!”
सच कहूं तो, हिन्दी फिल्मों में जब कोई चौकीदार अड़ जाता है “पहले आईडी दिखाओ”, तो वैसा ही सीन बन गया। बाकी सब लोग टोपी लगाए बैठे, लेकिन इन दोनों को टोपी उतारने की जिद। वहां खड़े दूसरे ग्राहकों ने भी फुसफुसाकर कहा, “ये बारमैन कुछ ज्यादा ही अकड़ दिखा रहा है।”
चालाकी से दिया मज़ेदार जवाब
अब अगर हमारे देसी होते, तो शायद बोल देते—“भैया, ज़्यादा मत बनो!” लेकिन लेखक ने सोच-समझ कर अगला कदम उठाया। टोपी उतारकर मुस्कुराये, “माफ़ करिए, सर,” बोले और सात बियर मंगवाईं। बारमैन के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी—जैसे उसने कोई बड़ी जंग जीत ली हो।
फिर लेखक ने कहा, “इतना वक्त लग गया, डबल ऑर्डर कर दूं?” चौदह बियर आ गईं। “ठंड है, एक-एक पैग व्हिस्की भी दे दो, वो भी डबल।” अब बार पर चौदह बियर, सात डबल व्हिस्की सजी थीं। फिर बोले, “टोपी वाली बात पर आपको भी एक पैग मिल जाए।” बारमैन ने बिना सोचे खुद के लिए भी एक डबल व्हिस्की गटक ली।
असली बदला—‘टोपी सलाम, बिल बकाया’
अब जो हुआ, वो वाकई मज़ेदार था। जैसे ही बारमैन का ध्यान इधर-उधर हुआ, सारे दोस्त बार छोड़कर निकल गए। बारमैन चिल्लाया, “कहाँ जा रहे हो? बिल कौन भरेगा?” लेखक ने मुस्कुराते हुए टोपी वापस सिर पर रख ली और जाते-जाते मज़ाकिया अंदाज में मुड़कर देखा।
बारमैन का चेहरा तो ऐसा हो गया जैसे किसी शादी में दूल्हे को मिठाई न मिले! और वो चिल्लाया, “हरामी!” (स्कॉटिश एक्सेंट में), लेकिन लेखक तो अपनी टोपी पहनकर, सिर ऊँचा किए निकल लिए।
रेडिट कम्युनिटी की चुटकी और देसी तड़का
इस मज़ेदार किस्से पर Reddit की जनता ने भी खूब मज़े लिए। एक यूज़र बोले, “इतने सालों तक आपने ये कहानी टोपी के नीचे छुपा रखी थी!” (हमारे यहाँ कहते हैं, ‘राज़ दिल में दबा रखा था’।) दूसरे ने कहा, “टिप ऑफ द हैट!” यानी ‘टोपी को सलाम’। तीसरे ने तो मज़ाक में पूछा, “ये किस्म किस्म की टोपियाँ, कोई बिरेटा तो नहीं थी?” (देसी अंदाज में बोले तो, ‘कहीं टोपी की जगह गांधी टोपी तो लहराई नहीं थी!’)
किसी ने बताया कि ऑस्ट्रेलिया या अमेरिका में मिलिट्री बार में टोपी पहनकर घुसो, तो पूरे बार के लिए ड्रिंक खरीदनी पड़ती है। यहाँ तो उल्टा बारमैन को ही अपनी जेब से पीना पड़ गया!
देसी सबक – अकड़ दिखाओ तो अकड़ टूटेगी!
इस कहानी में छुपा है एक देसी सबक—‘जैसी करनी, वैसी भरनी।’ सिर्फ बार या क्लब की बात नहीं, चाहे ऑफिस हो या मुहल्ला, अगर कोई बिना वजह अपनी अकड़ दिखाए तो लोग भी कभी-कभी ऐसा मजेदार जवाब दे जाते हैं कि जीवन भर याद रहता है। हमारे यहाँ भी तो कहते हैं—‘जैसा बोओगे, वैसा काटोगे।’
तो अगली बार कोई आपको टोपी उतारने को कहे, तो सोचिएगा जरूर… जवाब देने के तरीके कई हो सकते हैं, बस अंदाज देसी होना चाहिए!
अंत में – आपकी भी कोई ‘टोपी’ वाली कहानी है?
अगर आपके साथ भी कभी किसी ने बेवजह अकड़ दिखाई हो, या आपने किसी को मजेदार सबक सिखाया हो—तो हमें कमेंट में जरूर बताइए। कौन जाने, अगली बार आपकी कहानी भी इसी ब्लॉग पर छा जाए!
मूल रेडिट पोस्ट: Petty Barman Poured A Bit Too Much