जब बदला लेना हो डिजिटल, तो गूगल रिव्यू बना हथियार!
क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि आप किसी ऑफिस में मेहनत से काम करें, हर काम "हाँ" में करें, और फिर भी आपको बिना किसी ठोस वजह के बाहर निकाल दिया जाए? सोचिए, अगर यही ऑफिस आपके परिवार से जुड़ा रहा हो तो दिल पर क्या बीतेगी! कुछ ऐसा ही हुआ Reddit यूजर u/Rude_Artist_4098 के साथ, और फिर शुरू हुआ डिजिटल बदले का खेल।
आजकल तो गूगल रिव्यूज का जमाना है – एक तीर और सीधा निशाने पर! लेकिन जब ये रिव्यू ही बदले का हथियार बन जाएं, तब क्या होगा? चलिए, जानते हैं इस "पेटी रिवेंज" (Petty Revenge) की मज़ेदार, चटपटी और सिखाने वाली कहानी।
ऑफिस की राजनीति और ‘दादी’ जैसी बॉस
हमारे देश में भी ऑफिस की राजनीति किसी सास-बहू सीरियल से कम नहीं होती। यहाँ भी, कहानी की नायिका (21 वर्षीय छात्रा) को एक छोटे रियल एस्टेट लॉ फर्म में इंटरनशिप मिली थी, वो भी अपने दिवंगत दादा की सिफारिश से, जो कभी उस फर्म के पार्टनर थे। लड़की ने मेहनत की, समय पर पहुँची, हर बात मानी, लेकिन फिर भी एक दिन उसकी छुट्टी कर दी गई। वजह? "हम बहुत बिज़ी हैं, और तुम्हें और ट्रेनिंग देने का टाइम नहीं है।" ऊपर से ‘Doreen’ नाम की सीनियर (जिन्हें लड़की के दादा बहुत मानते थे) ने सलाह दी — "तुम्हें थोड़ा और बातूनी होना चाहिए।"
अब सोचिए, किसी को ये बोलना कि "तुम कम बोलती हो, इसलिए नौकरी नहीं मिलेगी" — ये तो वैसे ही है जैसे भारतीय रिश्तेदार बोलते हैं, "बिटिया, थोड़ा हँस लिया करो, वरना रिश्ता कैसे आएगा!"
गूगल रिव्यू: बदला या ईमानदारी?
अब असली ट्विस्ट आया — लड़की को अपने जॉब के दौरान फेक फाइव-स्टार रिव्यू लिखने को कहा गया था, ताकि एक खराब रेटिंग छुपाई जा सके। लेकिन जब उसे निकाल दिया गया, तो उसने वही तरीका उल्टा फर्म पर आज़माया! हर बार जब उसका नेगेटिव रिव्यू हटाया जाता, वो और भी पिनप्वाइंटेड, सच के करीब और तीखा रिव्यू डाल देती — "Hi Doreen! :)" लिखना नहीं भूलती!
कई लोगों ने पूछा – "क्या ये बदला जायज़ है?" लेकिन लड़की का कहना था – "मैंने जो लिखा, वो सच था। फेक फाइव-स्टार रिव्यू लिखवाना तो खुद कंपनी का फर्जीवाड़ा था। मैं तो बस सच्चाई बता रही हूँ।"
भारत में भी, कई कंपनियाँ अपने कर्मचारियों से फेक रिव्यू लिखवाती हैं, कभी-कभी तो "ग्रोसरी गिफ्ट कार्ड" या छुट्टी के बहाने। एक मशहूर कमेंट था – "मुझे भी एक क्लीनिंग कंपनी ने फाइव-स्टार रिव्यू लिखने को कहा था, मैंने मना किया तो निकाल दिया। फिर मैंने सच्चाई का एक-स्टार रिव्यू लिख दिया, जो आज भी गूगल और ग्लासडोर पर है!"
सोशल मीडिया की पंचायत: किसकी गलती, किसका हक?
Reddit की दुनिया भी गाँव की चौपाल जैसी है – हर कोई अपनी राय लेकर हाज़िर। कुछ ने OP (original poster) का साथ दिया – "अगर कंपनी को अपने अच्छे रिव्यू के लिए पैसे देने पड़ रहे हैं, तो उसमें दम ही क्या?" वहीं कुछ बोले – "इंटर्नशिप तो वैसे भी लिमिटेड होती है, इतना बड़ा दिल पर क्यों ले लिया?"
एक यूजर ने लिखा, "पैसे तो आते-जाते रहते हैं, पर इंसानों से जैसा बर्ताव करते हो, वो हमेशा याद रह जाता है।" किसी ने सलाह दी – "अगर तुम सच्चाई ही लिखती हो, तो डर किस बात का? लेकिन ध्यान रखना, झूठा रिव्यू डिफेमेशन (मानहानि) बन सकता है।"
मजेदार बात ये थी कि कई लोगों ने माना, "हर ऑफिस में ये फेक रिव्यू वाला खेल चलता है।" एक ने तो ये भी बताया, "हमारे यहाँ तो मैंने जानबूझकर इतने ओवर-द-टॉप फेक रिव्यू लिखे, कि पढ़ने वाला खुद ही समझ जाए, ये रियल नहीं हो सकता!"
रिव्यू कल्चर: अब ग्राहक राजा ही नहीं, आलोचक भी
भारत में भी अब लोग गूगल रिव्यूज़ पर खूब भरोसा करते हैं। होटल से लेकर हॉस्पिटल और लॉ फर्म तक, हर जगह पहले ऑनलाइन रेटिंग्स देखी जाती हैं। यही वजह है कि कंपनियाँ नेगेटिव रिव्यू हटवाने या छुपाने की कोशिश करती हैं, लेकिन जैसा एक Reddit यूजर ने कहा – "हमारे पास तो बस फुर्सत में हँसी-मजाक का चांस है, असली टेंशन तो कंपनी वालों को है!"
कई लोग ये भी मानते हैं कि नेगेटिव रिव्यू से कंपनी को सुधार का मौका मिलता है, लेकिन अगर कंपनी ही फेक रिव्यूज़ में लगी हो, तो ग्राहक क्या करे? आखिरकार, "जैसा करोगे, वैसा भरोगे" — यही तो कर्म का सिद्धांत है, चाहे अमेरिका हो या इंडिया!
निष्कर्ष: आपकी राय क्या है?
तो दोस्तों, क्या आपको लगता है कि गूगल रिव्यू के जरिए बदला लेना सही है, अगर वो सच हो? या फिर, ऑफिस की पुरानी खुन्नस को भुलाकर आगे बढ़ जाना चाहिए?
क्या आपने भी कभी किसी कंपनी या ऑफिस का कच्चा चिट्ठा ऑनलाइन खोला है? या आपके साथ भी कोई दफ्तर वाली नाइंसाफी हुई हो?
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मूल रेडिट पोस्ट: I write Nasty Google Reviews At My Former Employer's Small Firm...