जब बच्चे ने मां की बातों में ढूंढ लिया 'लोophole' – पेरेंटिंग के नए जमाने की जुगलबंदी
बच्चों की शरारतें तो हर घर की कहानी हैं, लेकिन जब वही शरारतें चालाकी की हदें पार कर जाएँ, तो मां-बाप के होश उड़ना लाज़िमी है। आज की दास्तान भी कुछ ऐसी ही है – जहां एक साल का बच्चा अपनी मासूमियत में ऐसी ‘मालिशियस कम्प्लायंस’ दिखाता है कि नानी भी मुस्कुरा उठती हैं, और मां को अपने भविष्य की चिंता सताने लगती है।
बच्चों की मासूम शरारत या चालाकी?
तो किस्सा कुछ यूँ है – एक मां अपने एक साल के बेटे के साथ अपनी मां (यानि बच्चे की नानी) के घर गई थीं। बच्चा हर जगह खेलना पसंद करता है, नानी भी उसे खुलकर खेलने देती हैं। बच्चा एक कॉफी टेबल के पास गया, वहाँ एक पंख के आकार की धातु की ऐश ट्रे (सिर्फ सजावट के लिए) रखी थी। उसने उसे उठाया और टेबल पर ठक-ठक करने लगा, क्योंकि उसे आवाज़ अच्छी लग रही थी।
नानी आईं और बोलीं, “नानी को अच्छा नहीं लगता जब तुम टेबल पीटते हो, याद है न? टेबल मत पीटो।” बच्चा मुस्कुराया, नानी की तरफ देखा और टेबल पीटना बंद कर दिया। फिर वह ज़मीन पर बैठ गया, नानी को देखकर शरारती मुस्कान दी और ऐश ट्रे से ज़मीन पीटने लगा! सच में, उसकी आँखों में जैसे लिखा था – “मैंने आपकी बात मानी, आपने तो ज़मीन के बारे में कुछ नहीं कहा।”
मां ड्राइंग रूम से देख रही थीं, और दंग रह गईं – बच्चा कितना ध्यान से सुनता है, पर loophole (चालाकी) भी पकड़ लेता है! नानी भी हँसी रोकने की कोशिश कर रही थीं, क्योंकि बच्चा आज्ञाकारी भी था और चालाक भी।
पेरेंटिंग में हर शब्द का मतलब – बच्चों की नजर से!
इस घटना ने मां को सोचने पर मजबूर कर दिया – आगे चलकर इंस्ट्रक्शन देते वक्त कितनी बारीकी बरतनी पड़ेगी! शायद कई पेरेंट्स को ये अनुभव हुआ होगा, पर ये उनका पहला बच्चा है, तो हैरानी तो बनती है।
रेडिट पर इस कहानी पर जबरदस्त चर्चा हुई। एक यूज़र ने अपना अनुभव शेयर किया – “हमारे ज़माने में टीवी का ट्यूनर था, जिसे छूने की मनाही थी। मेरा बेटा (तकरीबन दो साल का) अक्सर ट्यूनर के पास जाता, हाथ hovering में रखता और मुझे देखता रहता कि कब मैं रिएक्ट करूँ। जैसे ही मैं देखता, वो ट्यूनर घुमा देता – जैसे कह रहा हो, ‘अब क्या करोगे?’”
ऐसे ही एक और कमेंट में लिखा गया, “बच्चों के पास या तो रफ्तार होती है या बिलकुल सुस्ती – या तो पूरा दौड़, या फिर गहरी नींद! और जब चालाकी की बात हो, तो बच्चों का जवाब नहीं।”
‘ना’ कहना या सही दिशा देना – कौन सा तरीका है बेहतर?
एक कमेंट में बचपन के विशेषज्ञ ने बड़ी काम की बात बताई – “अगर आप हर बात पर ‘ना’ या ‘रुको’ कहते हैं, तो बच्चे उसे ज्यादा नोटिस नहीं करेंगे। बजाय इसके, उन्हें साफ-साफ बताएं कि आप क्या चाहते हैं। जैसे, ‘टेबल ना पीटो’ कहने से loophole मिल जाता है, उसकी जगह कहें – ‘ऐश ट्रे नीचे रख दो’ या ‘चीजों से प्यार से खेलो’।”
एक अन्य माता-पिता ने बताया, “अगर बच्चा फिर भी नहीं मानता, तो विकल्प दें – ‘या तो मेरी बात मानो, या फिर ये चीज छिन जाएगी/हम बाहर नहीं जाएंगे।’ धीरे-धीरे बच्चा समझ जाता है कि अच्छे व्यवहार का इनाम है, और गलत का नुकसान।”
दिलचस्प बात ये है कि हर बच्चा ‘लोophole’ ढूंढने में माहिर होता है। एक मां ने तो यहाँ तक लिखा – “मैंने कहा, घर में गेंद मत फेंको। बेटी बोली – ‘मम्मी, मैंने फेंका नहीं, टॉस किया है!’ फिर मुझे कहना पड़ा – ‘ना फेंको, ना टॉस करो, ना झटक कर, ना घुमा कर – घर के अंदर कोई भी गेंदबाजी नहीं।’ सच में, बच्चों के सामने तो शेर भी पानी भरता है!”
ये शरारती चालाकी – वरदान या सिरदर्द?
कई पेरेंट्स ने माना कि बच्चे का ये व्यवहार भले ही थका देने वाला हो, पर असल में ये उसकी समझ और दिमागी तेजी की निशानी है। कोई-कोई तो मजाक में कह गया – “भाई, तुम्हारा बच्चा बड़ा होकर वकील या नेता बनेगा, सबको घुमा देगा!”
कुछ पेरेंट्स ने सलाह दी कि बच्चों को ऐसे puzzle toys और घर के छोटे-मोटे कामों में शामिल करें, जिससे उनकी क्रिएटिविटी सही दिशा में लगे। साथ ही, उनकी बातों को नजरअंदाज करना या बार-बार डाँटना बच्चों को और ज्यादा शरारती बना सकता है।
एक और मजेदार कमेंट में लिखा गया – “हमारे घर में अगर कोई तर्क दे कर काम करवाता है, तो हम उसकी बात मान लेते हैं – बस ये देखना है कि दलील में कोई नुकसान न हो! बच्चे जो तर्क देते हैं, वो सुनकर हँसी रोकना मुश्किल हो जाता है।”
निष्कर्ष: ऐसी शरारतें, ऐसी सीख
बच्चों की ऐसी चालाकियाँ पेरेंट्स के लिए कभी-कभी सिरदर्द होती हैं, लेकिन साथ ही ये भी दिखाती हैं कि बच्चे कितने ध्यान से सुनते, समझते और नए-नए रास्ते ढूंढते हैं। असल पेरेंटिंग तो तब शुरू होती है, जब आप हर बात सोच-समझकर, साफ-साफ कहें – क्योंकि बच्चे loophole ढूंढने में उस्ताद होते हैं!
तो अगली बार जब आपका बच्चा आपकी बात ‘तोड़-मरोड़’ कर माने, तो मुस्कुरा लीजिए – शायद वो बड़ा होकर किसी बड़ी कंपनी का CEO, जज या इंजीनियर बने। और हाँ, अपनी पेरेंटिंग स्किल्स को भी हर रोज़ upgrade करते रहें!
क्या आपके घर में भी कोई ऐसा ‘नन्हा वकील’ या ‘शरारती मास्टरमाइंड’ है? नीचे कमेंट में अपने अनुभव जरूर शेयर करें – आखिर बच्चों की शरारतों की कहानियाँ कभी पुरानी नहीं होतीं!
मूल रेडिट पोस्ट: I saw my future and I'm in trouble