विषय पर बढ़ें

जब बच्चों ने पड़ोसन को सबक सिखाया: एक शरारती बदला

दो बच्चों को उनके मोहल्ले की एक अजीब-सी दादी द्वारा खेल-खेल में परेशान होते हुए दर्शाता एनिमे चित्रण।
यह जीवंत एनिमे-शैली की छवि दो छोटे लड़कों की मजेदार शरारतों को दर्शाती है, जो अपने मोहल्ले की एक अद्भुत दादी के साथ हैं। आइए हम इस हास्यप्रद कहानी में गोताखोरी करें!

हमारे मोहल्लों में अक्सर कोई न कोई ऐसी अजीबो-गरीब आंटी या चाची होती ही है, जिन्हें हर बात में अपनी नाक घुसानी होती है। हर दिन स्कूल से आते वक्त या बहार खेलने जाते बच्चों से पूछताछ—"किसके साथ जा रहे हो, क्या ले आए हो, बैग में क्या है?" — ये तो हमारे समाज की आम बातें हैं। पर जब बच्चों का सब्र टूटता है, तो क्या होता है? आज हम ऐसी ही एक खुराफाती कहानी लेकर आए हैं, जिसमें दो बच्चों ने एक तंग करने वाली पड़ोसन को ऐसा सबक सिखाया कि वो जिंदगी भर याद रखेगी!

पड़ोसन की जिज्ञासा और बच्चों की परेशानी

कहानी के नायक हैं दो छोटे-छोटे भाई—पॉल और उसके चाचा—जिनके पिताजी और उनके भाई बचपन में अपने मोहल्ले की एक बुज़ुर्ग औरत से बहुत परेशान रहते थे। ये आंटी जी हर बार बच्चों को टोकती थीं, "अरे बेटा, बैग में क्या है, दिखाओ तो ज़रा!" अब भारतीय संस्कृति में बच्चों को बड़ों की बात मानना सिखाया जाता है, चाहे वो मन हो या न हो। बेचारे बच्चे हर बार बैग खोलकर उन्हें दिखाते। आंटी जी कभी कुछ लेती नहीं थीं, पर उन्हें बच्चों की टांग खींचने में अजीब सा मज़ा आता था।

ये तो वही बात हो गई—"न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी", यानी आंटी जी को बस तंग करने का बहाना चाहिए था।

बदले का प्लान: "जैसे को तैसा"

कहते हैं न, "अति सर्वत्र वर्जते" यानी हर चीज़ की हद होती है। एक दिन बच्चों का सब्र का बांध टूट गया। उन्होंने सोचा, "अब बहुत हो गया, आंटी जी को भी उनकी ही भाषा में जवाब देना चाहिए।"

तो बस, दोनों भाइयों ने एक अलग ही प्लान बना डाला। अगले दिन जब दादी के लिए सामान लेने गए, तो लौटते वक्त दोनों ने अपने-अपने बैग में... जी हां, वही जो आप सोच रहे हैं—एकदम असली देसी तरीका—अपना-अपना "शौच" डाल दिया!

जैसे ही आंटी जी ने हमेशा की तरह चिल्लाया, "अरे बेटा, बैग में क्या है, दिखाओ!"—बच्चों ने मुस्कुरा कर बैग उनके हाथ में थमा दिया और भाग लिए। कहते हैं, "जैसी करनी, वैसी भरनी!"

मोहल्ले की चर्चा और सोशल मीडिया का तड़का

अब सोचिए, अगर ये किस्सा हमारे मोहल्ले में होता तो अगले ही दिन चाय की दुकान पर चर्चा का विषय बन जाता—"अरे, सुना उस आंटी के साथ क्या हुआ?" और सोशल मीडिया के जमाने में तो ये वीडियो वायरल हो जाता! Reddit पर भी इस कहानी ने धूम मचा दी।

एक यूज़र ने हंसी में लिखा, "ये तो सचमुच 'शिट पोस्ट' हो गया!"—यानी शरारत भी और मजाक भी।
दूसरे ने कहा, "कभी-कभी जीतने के लिए खुद भी गंदा होना पड़ता है!"
तीसरे ने तो इस घटना का नाम ही रख दिया—"पू कॉर्नर का घर!"
किसी ने लिखा, "ऐसा लगता है जैसे बच्चों ने आंटी जी की सारी बकवास को एक झटके में खत्म कर दिया!"

वहीं, एक यूज़र ने सवाल उठाया, "बच्चों को डांट क्यों पड़ी? कम से कम आग तो नहीं लगाई थी दरवाजे पर!" इस पर एक और ने कहा, "भाई, घर में अनुशासन भी कोई चीज़ होती है!"

भारतीय समाज में बच्चों की शरारतें और बड़ों की जासूसी

हमारे समाज में बच्चों की शरारतें अक्सर मजेदार किस्सों का हिस्सा बन जाती हैं। वहीं, हर गली-मोहल्ले में एक न एक ऐसी आंटी या चाचा जरूर होते हैं, जिनका मुख्य काम दूसरों के मामलों में टांग अड़ाना होता है।

फिर भी, यहां बच्चों की मासूमियत और जबरदस्त बदले की भावना दोनों ही नजर आती हैं। एक तरफ बड़ों का सम्मान, दूसरी तरफ अपनी सीमाओं की रक्षा—यही तो है भारतीय जीवन का असली मजा!

निष्कर्ष: आपकी भी कोई ऐसी मजेदार याद है?

तो दोस्तों, इस कहानी से यही सीख मिलती है—कुछ लोग जब हद से ज्यादा परेशान करें, तो "जैसे को तैसा" वाला तरीका कभी-कभी कमाल कर जाता है। और हां, बच्चों की शरारतें भी समय-समय पर बड़ों को अपनी सीमाएं याद दिला देती हैं।

क्या आपके मोहल्ले में भी कभी ऐसी कोई घटना हुई है? या बचपन में आपने या आपके दोस्तों ने कोई ऐसी "शरारती बदला" लिया हो? नीचे कमेंट में जरूर साझा करें, और हां—कहानी अच्छी लगी हो तो दोस्तों के साथ शेयर करना मत भूलिए!

"शरारत में भी कभी-कभी जिंदगी का सबसे अच्छा सबक छुपा होता है!"


मूल रेडिट पोस्ट: Some funny shit