जब बच्चे ने अपने पिता को OSCAR वाली एक्टिंग से चौंका दिया – बचपन की छोटी मगर मज़ेदार बदला कहानी
हमारे यहाँ तो कहते हैं, "बचपन की शरारतें, जवानी की यादें बन जाती हैं!" हर किसी के बचपन में कोई न कोई किस्सा ऐसा ज़रूर होता है, जिसे याद करके अभी तक हँसी आ जाती है। आज की कहानी Reddit के r/PettyRevenge से है, जिसमें एक बेटे ने अपने सख्त पिता को ऐसा झटका दिया कि बेचारे की सफ़ेद पोशाक ही सफ़ेद पड़ गई।
यह कहानी न सिर्फ़ मज़ेदार है, बल्कि हमें बताती है कि बच्चों की मासूमियत और चालाकी का मेल क्या-क्या गुल खिला सकता है। तो चलिए, जानते हैं कि कैसे एक मासूम सी दिखने वाली बदले की भावना ने एक पिता को "OSCARS" के मंच पर खड़ा कर दिया!
पिता का डर और बेटे की नटखट चाल
हमारे देश में भी पापा के हाथों थप्पड़ या बेल्ट की मार का किस्सा हर गली-मोहल्ले में मशहूर है। Reddit पर u/Starchild1968 नाम के यूज़र ने बचपन के दिनों की एक घटना सुनाई, जब उनके पापा—एक वियतनाम युद्ध के पूर्व सैनिक और स्वभाव से ज़रा रौबदार—घर लौटे और गलती से बेटे की साइकिल अपने गाड़ी से कुचल दी।
अब ज़रा सोचिए, घर में सुनसान और पापा का गुस्सा पूरे आसमान पर! उस ज़माने में ‘मार’ तो जैसे बच्चों की ज़िंदगी का हिस्सा थी। लेकिन यहाँ बेटा भी कोई साधारण खिलाड़ी नहीं था। जैसे ही पापा ने गुस्से में बेल्ट निकाली, बेटे की नज़र पड़ी कि पापा के साथ उनका कोई दफ़्तर का सहकर्मी भी आया है।
OSCAR वाली एक्टिंग और पिता की रंगत उड़ गई
अब आया असली मज़ा! बेटे ने दिमाग़ लगाया और ऐसा नाटक किया कि आज की भाषा में कहें तो ‘ड्रामा क्वीन’ भी शर्मिंदा हो जाए। ज़ोर-ज़ोर से रोना, "पापा, प्लीज़, फिर मत मारो!" और फिर तो एक कदम आगे जाकर सहकर्मी के सामने कुर्सी के पीछे छुपना और डर के मारे पैंट में पेशाब कर देना!
सोचिए, पापा की हालत! उनके चेहरे का रंग ही उड़ गया। अब सहकर्मी क्या सोचेगा? कहीं ‘बाल अधिकार आयोग’ (Child Protection Services) जैसी कोई यूनिट आ जाए तो नौकरी भी खतरे में! पापा ने एकदम सुर बदल लिया—"मैं तुम्हें मारता नहीं हूँ!" बार-बार सफाई देने लगे।
पाठक बोले– क्या मास्टरस्ट्रोक था!
Reddit समुदाय में इस कहानी पर खूब चर्चा हुई। एक यूज़र ने कहा, "मैं तो सोच रहा था, तुम यह सब अपने छोटे भाई पर थोप दोगे, क्योंकि वो तो घर का लाडला था!" भारत में भी अक्सर छोटे बच्चों को ‘माँ का दुलारा’ और बड़े को ‘सारा दोषी’ मान लिया जाता है। एक और कमेंट में मज़ाक करते हुए लिखा गया, "भाई, तू तो अभी तक अपने छोटे भाई से चिढ़ा बैठा है!"
दूसरे यूज़र ने लिखा, "यह बदला तो शानदार था, लेकिन भाई, कहानी थोड़ी एडिट कर लेता!" भारत में भी अक्सर बड़ों की कहानियाँ सुनते-सुनते लगता है, "चाचा, मुद्दे पर आओ!"
एक यूज़र ने तो OSCAR वाली एक्टिंग की तारीफ करते हुए कहा, "भाई, तेरा दिमाग़ और तेरी एक्टिंग दोनों लाजवाब!" किसी ने लिखा, "कभी-कभी बच्चों की चालाकी बड़ों पर भारी पड़ जाती है, और यही सच्चा बदला है।"
भारतीय संदर्भ और सीख
हमारे यहाँ भी अकसर बच्चों को डांट या मार पड़ जाती है, लेकिन अब ज़माना बदल गया है। आज के माता-पिता बच्चों को समझने की कोशिश करते हैं, डाँट-मार से ज़्यादा संवाद को अहमियत देते हैं। Reddit की इस घटना में भी यही देखने को मिलता है—कभी-कभी बच्चों की मासूम चालाकी बड़ों की सख़्ती पर भारी पड़ जाती है।
सोचिए, अगर यही घटना हमारे यहाँ होती, तो शायद माँ-बुआ खिचड़ी बना कर समझौता करवा देतीं या मोहल्ले में गपशप बन जाती। और हाँ, बच्चों के लिए यह सबक भी है—बुद्धि से हर मुश्किल हल हो सकती है, लेकिन शरारत में मर्यादा ज़रूर रखें!
अंत में – आपकी क्या राय है?
ऐसी शरारतें आपके घर में भी हुई हैं? क्या कभी आपने या आपके बच्चों ने ऐसे ही किसी OSCAR लेवल की एक्टिंग से घरवालों को चौंका दिया है? नीचे कमेंट में जरूर बताइए! और हाँ, बचपन की ऐसी मज़ेदार कहानियों के लिए जुड़े रहिए हमारे साथ।
क्योंकि, "बचपन का बदला—मीठा मीठा, चटपटा चटपटा!"
मूल रेडिट पोस्ट: I've been petty since I was in elementary school.